हिन्दी भाषा का इतिहास
उद्भव और विकास
क्या आप जानते हैं कि आजकल हम जिस हिन्दी में बात करते हैं, वह सिर्फ हिन्दी की एक बोली है? "हिन्दी" दरअसल कोई एक भाषा नहीं है, बल्कि कई बोलियों का एक समूह है। आज हम चर्चा करेंगे कि जिस हिन्दी में हम सभी लिखते हैं, पढ़ते हैं, और गर्व से कहते हैं कि " हिन्दी है हम" उसकी उत्पत्ति कहाँ से हुई थी।
क्या संस्कृत हिन्दी की जननी है?
यह तो आपलोगों ने कई बार सुना होगा कि संस्कृत को हिन्दी की माँ कहा जाता है। परंतु यह सही नहीं है। जबकि यह सच हैं कि सभी आधुनिक भारतीय भाषाओं की उत्पत्ति संस्कृत से ही हुई है ( केवल द्रविड़ भाषाओं यथा - तमिल, तेलगु, मलायलम और कन्नड़ को छोड़कर), परंतु इनके बीच और भी कई रिश्तेदार थे। आइए इसे जरा विस्तार से समझते हैं।
संस्कृत काल दो भागों में बँटा हुआ था- वैदिक संस्कृत, लौकिक संस्कृत।
जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है-- वैदिक संस्कृत वह काल है जब वेदों, उपनिषदों, पुराणों आदि धार्मिक ग्रंथों का सृजन किया गया था।
लौकिक संस्कृत वह समय है जब संस्कृत साहित्य का सृजन हुआ था, जैसे कालिदास, अश्वघोष, वाणभट्ट आदि की रचनाएँ इस काल की देन हैं।
वैदिक संस्कृत के पश्चात् का समय गौतम बुद्ध के धर्म प्रचार का समय है। उस समय भगवान बुद्ध ने जनसाधारण के लिए एक सामान्य भाषा का गठन किया। जिसका नाम पालि रखा गया। यह संस्कृत का ही आसान रूप था।
उदाहरण, धर्म ( संस्कृत) = धम्म ( पालि)।
पालि भाषा में मूलतः बौद्ध धर्म के सभी शिक्षाएँ, शिलालेख, त्रिपिटक आदि मिलते हैं।
पालि काल के पश्चात् प्राकृत और अपभ्रंश का काल आया।
ज्ञात रहे, कि संस्कृत केवल सुसंस्कृतों अर्थात् पढ़े- लिखे शिष्ट जनों की भाषा थी, जबकि उस जमाने में स्त्रियाँ एवं अन्य लोग प्राकृत भाषा में ही वार्तालाप किया करते थे।
प्राकृत और अपभ्रंश भाषाओं में अनेक साहित्य मिलता है। सिद्धों, नाथों का समूचा साहित्य इसी भाषा में रचित है। अपभ्रंश शब्द संस्कृत के "अपभ्रष्ट" से अपभ्रंशित होकर आगे चलकर कहीं कहीं अवहट्ठ, अवहट, अवहट आदि भी बन गया है। इन्हीं अपभ्रंश के विभिन्न भेदों से आधुनिक भारतीय भाषाओं का उद्भव माना जाता है। निम्न सूची से इस बात को स्प्ष्ट रूप से जाना जा सकता है:-
अपभ्रंश आधुनिक भारतीय भाषाएँ
1) शौरसेनी - पश्चिमी हिन्दी, राजस्थानी, गुजराती, पहाड़ी
2) पैशाची -- लहँदा, पंजाबी
3) ब्राचड़ -- सिन्धी
4) महाराष्ट्री -- मराठी
5) मागधी -- बिहारी, बंगला, उड़िया, असमिया
6) अर्धमागधी - अवधि, बघेली, छत्तीसगढ़ी ।
हमारी हिन्दी, पश्चिमी हिन्दी की एक बोली, खड़ी बोली है, जिसकी उत्पत्ति शौरसेनी अपभ्रंश से मानी जाती है। हिन्दी की अन्य बोलियों की हम विस्तार से चर्चा करेंगे अगले ब्लाॅगों में।
इस प्रकार हम देखते हैं कि संस्कृत से लेकर हिन्दी का सफर काफी लंबा रहा है, जिसे हम यूँ लिख सकते हैं--
वैदिक संस्कृत< लौकिक संस्कृत< पालि< प्राकृत< अपभ्रंश
( अवहटठ) < हिंदी एवं अन्य भाषाएँ।
क्या अब भी आपको लगता है, कि संस्कृत हिन्दी की माँ हैं? नहीं जी वे तो परनानी की भी परनानी है, हैं न?
यह लेख समाप्त करने से पहले हिन्दी के विषय में एक और तथ्य-- क्या आप जानते हैं कि " हिन्दी" शब्द हिन्दी का न होकर ईरानियों की देन हैं? ईरानी भाषा में "ह" शब्द नहीं हैं, अतः हिन्दु उनके लिए "इन्दु" हुआ करता था। यही इन्दु आगे चलकर हिन्दू और हिन्दी में परिवर्तित हो गया था।
( क्रमशः)
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