क्वेरेन्टाइन का दसवां दिन

लाॅकठाउन के दौरान एक नेपाली लड़की की कहानी

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Moumita Bagchi
Moumita Bagchi 13 Apr, 2020 | 1 min read

डियर डायरी,
मेरा नाम रश्मि सुब्बा है। उम्र 24 वर्ष। मैं नेपाल की रहने वाली हूँ। यहाँ  दिल्ली में एक स्कूल की एडमिन स्टाॅफ हूँ। और नीलगगन बिल्डिंग के एक 3 बी एच के अपार्टमेंट में मेरी जैसी दो और अविवाहित एवं नौकरीशुदा लड़कियों के साथ पीजी रहती हूँ। मेरी दोनों रूममेट का नाम - मोणिका और रितिका है। वे दोनों ही काॅपोरेट सेक्टर में कार्यरत हैं।

इनमें से मोणिका पंजाबन है और उसकी उम्र है लगभग 28 वर्ष। और रितिका, जिसकी उम्र 26 वर्ष है, एक कुमाऊंनी ब्राह्मण है। वे दोनों ही बहुत स्मार्ट है और आपस में फर्राटेदार अंग्रेजी बोलती हैं। मेरी नेपाली लहजे के साथ बोली अंग्रेजी सुनकर वे हँसती हैं और कहती हैं, " हाउ स्वीट, यू स्पीक!"

दोनों ही काफी सालों से दिल्ली में रह रही हैं। शायद काॅलेज मे पढ़ने के लिए यहाँ आई थे।और तब से यहीं हैं। इसलिए, दिल्ली की महानगरीय संस्कृति में वे दोनों पूरी तरह से रम गई हैं। मेरा तो दिल्ली में ये दूसरा ही वर्ष है। सच कहूँ ? मुझे यहाँ बिलकुल अच्छा नहीं लगता! मेरा गाँव कितना सुंदर था। वहाँ के लोग कितने सीधे- सरल थे।

दोनों लड़कियाँ मेरे सामने तो मुझसे हँस-हँसकर खूब बातें करती हैं, परंतु , जानती हूँ कि वे मुझे दिल से पसंद नहीं करती। एक तो दोनों नर्थ इंडियन हैं और कहाँ मैं नर्थ इस्ट की रहने वाली! मैंने कई बार उन्हें मेरे पीठ -पीछे मुझे चिंकी कहते हुए अपने कानों से सुना हैं।

यहाँ, दिल्ली के लोग, भारत के सभी उत्तरी पूर्वी राज्य से आए हुए को चिंकी कहकर पुकारते हैं और हमें नफरत की निगाहों से देखते हैं। कुछ वर्ष पहले तो नाॅर्थ इस्ट के लोगों के प्रति खुले आम हिंसा की खबरें सूर्खियों में थी। आजकल  हिंसा की वारदातें, थोड़ी कम जरूर हुई है,

परंतु पूरी तरह से  मिटी नहीं है।

तीन वर्ष पहले जब मेरे पिताजी के गुज़र जाने के बाद मुझे नौकरी की तलाश में अपने देश से बाहर निकलना पड़ा। दिल्ली आने से पहले मैं एक वर्ष कलकत्ता भी रही। वहाँ एक प्राइवेट कंपनी मे नौकरी करती थी। परंतु उस कंपनी में मेरा जो बाॅस था वह ठीक नहीं था। मुझे देर तक ऑफिस में रुकने को कहता। कभी- कभी अपनी केबिन में बुलाकर बदतमीजी भी करता था!

फिर, मुझे यह वाली नौकरी मिली। सैलरी भी इसकी अच्छी है। काम भी मुझे पसंद आ गया। हालाँकि दिल्ली का लाइफस्टाइल महंगा है। परंतु रूम का किराया और खाने के खर्चे निकालकर  माँ और भाई की पढ़ाई के लिए काफी पैसे भेज सकती हूँ।

शाम को एक पार्लर में पार्ट टाइम काम भी करती हूँ, उससे भी हाथ- खर्च  लायक कुछ पैसे निकल आते हैं।

जबतक काम करती हूँ, ठीक है।

मेरी दोनों रूममेट के घर आने - जाने का कोई भी  समय नहीं है। घर पर भी जब  वे दोनों रहती हैं तो पूरे समय या तो कंप्यूटर के सामने बैठी रहती हैं, नहीं तो अपने बाॅय फ्रेन्डों से जोर जोर से बातें किया करती  है।और जब कुछ काम नहीं होता तो दोनों आपस में खुसर फुसर करती रहती हैं। उनकी बातों में वे दोनों मुझे कभी शामिल नहीं करती।

पड़ोस की टिया नाम की लड़की ही एकमात्र ऐसी है जिसके साथ बातें करके मुझे अच्छा लगता है। छोटी सी, गुड़िया सी है वह। बिलकुल मेरी बड़ी बहन की बेटी नैन्सी की तरह! हमेशा हँसती  खिलखिलाती रहती है। आजकल अपने दादाजी के साथ  टैरेस गार्डन कर रही है, वह।  मेरे बाॅलकनी से दिखता है।

अभी लाॅकडाउन के कारण सबकुछ बंद है। स्कूल भी और काम भी। घर बैठै अच्छा नहीं लग रहा है। कभी -कभी स्कूल के काम कर लेती हूँ। बाकी समय करने को कुछ नहीं होता।

पहले अप्रैल को घर जाने वाली थी, मैं। स्कूल में छुट्टियाँ शुरु होने वाली थी। दो साल से गाँव नहीं गई। माँ और भाई को देखे हुए बहुत समय हो गया। पता नहीं, वे लोग  कैसे होंगे इस समय। बहुत मिस करती हूँ उनको।

वे लोग भी शायद इतना ही मिस कर रहे होंगे मुझे, है न?
बोलो मेरी प्यारी डायरी?


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