क्वेरेन्टाइन का तीसरा दिन

डायरी के माध्यम से रिश्तों की पहचान

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Moumita Bagchi
Moumita Bagchi 02 Apr, 2020 | 1 min read

क्वेरेन्टाइन का तीसरा दिन

02/04/2020

प्रिय डायरी,

मैं मंजू,  टिया की दादी। एक महीने के लिए पति के साथ  बेटे-बहू के घर आई थी, पर अभी करोना वाइरस के प्रकोप के चलते यहाँ 21 दिन के लिए और फँस गई हूँ। घर नहीं जा पा रही हूँ। बेटे तरूण ने वापस गाँव जाने का टिकट कटा तो दिया था, पर गाड़ियाँ ही चलनी बंद हो गई है।

इतने बड़े शहर से तो हमारा गाँव ही अच्छा है। कितना खुला खुला हुआ है। यहाँ नौवी मंजिल के इस छोटे से फ्लैट में तो मेरा दम घुटता है।

दिनभर बात करने के लिए कोई होता है ही नहीं है इस घर में। समय निकालना इसलिए बड़ा मुश्किल होता है। पड़ोसी भी मिलने पर सिर्फ "हैलो" कहकर कन्नी काट लेते हैं। किसी के भी पास दो मिनट की फुरसत भी नहीं है। सब भागे जा रहे हैं। तरूण और श्रेया तो अपने ऑफिस के काम से इतने विजी रहते हैं कि शनिवार और इतवार को ही केवल घर में दिखाई देते हैं।

एक पोती टिया ही है जिसके साथ बात करके थोड़ा चैन मिलता है। परंतु वह भी अंग्रेजी में इतनी फटर फटर करती है कि उसकी आधी बात तो मेरो समझ से बाहर होती हैं।

तरूण लेकिन हमारा बहुत खयाल रखने की कोशिश करता है। परंतु वह जैसे ही हमारे पास बैठता है, श्रेया उसे बाहर से सामान लाने को कहती है या कोई दूसरा काम पकड़वा देती हैं। वह बेचारा भी क्या करता?

श्रेया को तरूण ही पसंद करके लाया था। आजकल के बच्चे अपनी माँ- बाप की कहाँ सुनते हैं? वरना, मैं तो ऐसी बहू कभी न लाती। हमारी जात की भी तो नहीं है वह। ऊपर से घर के काम- काज बिलकुल नहीं जानती। टिया तक को संभाल नहीं पाती है।

एक मालती के भरोसे घर, बच्चे सबकुछ को छोड़ रखा है। अब देखो, वह नहीं आ पा रही है तो घर की कैसी हालत हो गई है?

क्वेरेन्टाइन के चलते  सभी नौकरों को छुट्टी देना पड़ा। देखो, घर की क्या दशा हो गई है? कहीं टिया के काॅपी- किताब पड़े हैं तों कहीं अनधुले गंदे कपड़े, किचन- सिंक में झूठे वर्तन, उफ्फ।

नौकरी करती है तो क्या? औरत है, घर के कामकाज भी तो आने चाहिए, है कि नहीं बोलो मेरी प्यारी डायरी?

वह तो अच्छा है कि श्रेया के ससुर जी कुछ नहीं कहते।  दिन में उन्हें सिर्फ आठ- नौ बार चार पीला दो, बस। वे और कुछ नहीं चाहते। और एक हमारे ससुर जी थे।

उनकी मांगे पूरी करते- करते हम तो थक ही जाते थे।

फिर भी हमने तो चार- चार बच्चे अकेले ही संभाले हैं , सास- ससुर की पूरी देखभाल की है। खेती में भी हाथ बँटाया है, ऊपर से घर के सारा काम भी करना पड़ता था। नौकर- चाकर कहाँ होते थे, गाँव में। हमारे जमाने में इतना आराम कहाँ था?

आजकल की बहुओं को जरा पैर दबाने को कहकर तो देखो?

कैसा मुँह बनाती हैं। अब जब दिनभर घर में रहती हैं, इतनी सेवा की उम्मीद तो एक सास अपनी बहु से रख ही सकती है, है कि नहीं? बोलो डायरी।


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