"सुनो रोहित! मुझे कुछ पैसे चाहिए, वो बच्चों के लिए कुछ शॉपिंग करनी है। आज ज़िद कर रहे थे कि बाहर मॉल में झूले झुलवाने ले जाऊं तो प्लीज ऑफिस जाने से पहले कुछ पैसे रख जाना।"
सुबह के नौ बजे रसोई के कामों में व्यस्त पूजा रोहित को यह सब बोलते हुए इस बात से अंजान थी कि रोहित का दिमाग कुछ अलग ही दिशा की ओर चल रहा था।
"पैसे! अरे यार, अभी पिछले हफ्ते ही तो दिए थे तुम्हें दो हज़ार रुपये! ऊपर से हमारी एनीवर्सरी वाले दिन भी तुम्हें दो हज़ार दिए थे| यानि कुल मिलाकर चार हज़ार रुपये होने चाहिए तुम्हारे पास वो सब कहाँ गए?"
"सब घरख़र्च में लग गए रोहित!"
"चार हज़ार रुपये ख़र्च हो गये वो भी सिर्फ़ एक हफ़्ते में! हद है तुम्हारी पूजा। कितनी खर्चीली हो तुम यार, ज़रा भी देखकर ख़र्च नहीं करती। लगता है तुम्हारे हाथों में छेद है या फिर तुम पैसे खाती हो। नौकरी में सैलरी नहीं बढ़ती लेकिन तुम्हारे ख़र्चे जरूर बढ़ जाते हैं। मैं कैसे कमा कर लाता हूं तुम्हें ज़रा पता नहीं। खैर! अभी मेरे पास कैश तो नहीं लेकिन ऑफिस जाकर एकाउंट ट्रांसफर कर दूँगा निकाल कर कर लेना इस्तेमाल"।
रोहित की कटाक्ष रूपी बातें सुनकर पूजा का मन आज फिर दुःखी हो गया था। हर बार रोहित की यह बातें उसे बहुत कुछ समझा जाती थीं। पूजा गुस्से को शांत कर व कड़वा घूट पीते हुए बोली "तुमनें सही कहा रोहित, मैं बहुत खर्चीली हूं तो चलो क्यों न इस बार कुछ अलग हटकर किया जाए। जो तुम मुझे हर हफ़्ते पैसे देते हो ना, जिन्हें मैं जल्दी-जल्दी ख़र्च कर देती हूं वो आज से तुम मुझे देना बंद कर दो।"
"मतलब! फिर तुम कैसे करोगी सारा खर्चा?"
"मैं नहीं रोहित, अब से तुम करो सारा ख़र्चा खुद। मैं तुम्हें हर हफ़्ते बच्चों के सारे सामान की लिस्ट दूँगी जो तुम मुझे इतवार अपनी छुट्टी वाले दिन ला कर दे देना। मुझे तो सामान से मतलब है, फिर क्या फ़र्क पड़ता है वो मैं लाऊँ या तुम"। कहते हुए पूजा बर्तन धोने लगी।
"ठीक है! ऐसा ही करते हैं।" रोहित ने खुशी-खुशी पूजा की बात मान ली। अगले दिन ही इतवार था पूजा ने रोहित के हाथ में एक लिस्ट थमा दी जिसमें वो सारा सामान व ख़र्चा लिखा था जो इस पूरे हफ़्ते रोहित को करना था।
"छोटी बेटी के डायपर, दवाइयां, बड़ी बेटी के स्कूल में फंक्शन के पैसे, स्टेशनरी का सामान, चाय-नाश्ते का सामान, रोहित का खुद का डिओडरेंट" इसके अलावा भी कुछ अन्य चीज़े जिनकी रोज़मर्रा के जीवन में अहमियत होने के कारण रोहित सब मार्किट से ले आया था। तीन हफ़्ते बीत चुके थे, हर इतवार रोहित लिस्ट लेता व सामान ले आता पूजा भी खुश थी कि अब उसे ज्यादा खर्चीली होने का ताना नहीं सुनने को मिलेगा।
आज फिर इतवार था,पूजा द्वारा दी जाने वाली लिस्ट को लेने से नकारते हुए रोहित तपाक से बोल पड़ा "मुझसे नहीं होगा! जिसका काम उसी को साजे। मेरा काम कमा कर लाना है और तुम्हारा हमारी गृहस्थी को चलाना। मैं गलत था पूजा मुझे माफ़ कर दो प्लीज। मुझे लगता था कि तुम एक्स्ट्रा ख़र्चा करती हो लेकिन जब से यह सब मैंने अपने हाथ में लिया तब जाना कि इसमें कोई एक्स्ट्रा ख़र्च है ही नही। सारे पैसे तो घर का सामान, बेटियों का सामान खरीदने में ख़र्च हो जाते है तो तुम्हारे खुद के लिए भी कुछ नहीं बचता होगा। ऊपर से मंहगाई इतनी की मैं तो हर बार लूटकर ही आ जाता हूं लेकिन तुम तो फिर भी मोलभाव करके बचत कर लेती हो। यह लो पैसे और तुम ही संभालो सब कुछ। जब ज़रूरत हो और मांग लेना।" कहते हुए रोहित ने पूजा के हाथ में पैसे दे दिये।
रोहित की बातें सुनकर पूजा ने कुछ ज्यादा रिएक्ट नहीं किया क्योंकि वह जान गई थी कि रोहित को अपनी गलती का एहसास हो चुका है।
"अब पता चला रोहित मैं खाना खाती हूं,पैसे नहीं"?
पूजा की यह बात सुनकर जहां एक ओर रोहित को शर्मिंदगी महसूस हो रही थी, वहीं दूसरी ओर पूजा की हल्की मुस्कान खुशनुमा वातावरण बनाने के लिए काफी थी।
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