हाय रे!यह कैसा जमाना आ गया
जब औरत ही औरत की दुश्मन बन बैठी,
एक दूजे का सहारा बनने की बजाय
अभिशाप की राह पकड़ बैठी।
औरत तेरे अनेकों रूप हर पड़ाव को
कर पार नए रूप में उतरती हो,
कोई दुर्गा सा कैसे पूजे तुम्हें
एक दूजे को ईष्या की आड़ में परिहासित करती हो।
क्या दे!आदमी को दोष
जब तुम आपस में खिलाफ हो जाती हो,
करके एक दूसरे को लज्जित
आत्मसम्मान के लिए लड़ने की पहल सिखाती हो।
सुन औरत निकल इस संकीर्ण सोच
बदल मानसकिता रख नई राह पर चरण,
क्योंकि तू दुश्मन नही एक औरत है
दूसरी औरत की उम्मीद की पहली किरण।
धन्यवाद
©मोना कपूर
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