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शीर्षक-“पंख होते तो “(हास्य कविता) स्वरचित कविता सेवा करती हूँ बरसों से,पति देव की मैं एक दासी संग रहे साया भी उसका,उनसे कहती बात जरा सी सुनिये प्राणनाथ जी मेरे!मन में रहे एक अभिलाषा पंख होते तो उड़ जाती मैं,होता बहुत तमाशा भोजन कौन बनाता?किसको बच्चे मम्मी कहते? सासु जी का मन बहलाकर,मेरे वाले क़िस्से गढ़ते? पूज्य ससुर जी की हालत मेरे बिन पतली हो जाती- कौन बनाता आलू मेथी,कौन जलाता दीया बाती? हर दिन मायके उड़ जाऊँ,सुंदर ड्रेस पहन इतराऊँ माँ के हालचाल जानूँ और खुशनसीब कहलाऊँ मेरे बिन अटपटा हो जीवन,फ़ोन करें ये,हों बेताब हाल फ़क़ीरों सा हो जाए भूल जाएँ सब ठाठ नवाब —— डा.अंजु लता सिंह गहलौत,नई दिल्ली

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by anjugahlot

“पंख होते तो”(हास्य कविता)