आग
पिता ने नाम रखा ज्वाला;
पर सौतेली माँ ने, ना खिलाया निवाला;
पति संग अग्नि के लिए फेरे;
पर वो दिल की बात ना जान पाए मेरे;
समाज ने ना जाने क्या दी शिक्षा;
कदम-कदम पर देती रही मैं अग्निपरीक्षा;
दहेज की आग में जलती, कभी झुलसती रही;
पर इस समस्या का मिल ना पाया समाधान;
और अंत में भी इस अग्नि के हवाले कर;
कर दिया मेरा अंतिम संस्कार...
Paperwiff
by manjrisharma