धूल

पति पत्नी कब रिश्तों में आई संवादहीनता को दूर करती हुई कहानी

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Kusum Pareek
Kusum Pareek 20 Jun, 2020 | 1 min read

" धूल " 


दीप्ति के जीवन में अमावस की काली रात के बाद धीरे-धीरे बढ़ते हुए चाँद की चांदनी काफी समय बाद ही आई थी । वह विभोर की बांहों में लेटी ,खिड़की से झांकते हुए दूज के चाँद को निहार रही थी व विभोर धीरे धीरे उसकी काली घटाओं के समान, चेहरे पर आई लटों को दूर करते हुए उसके सुंदर मुखड़े में ही खोया हुआ था।

काफी समय से वह लगभग भूल ही गई थी कि अंतिम समय में कब उसने विभोर के साथ खाना खाया था ? या कब दोनों साथ साथ बाहर गए हों! 

जो शामें दोनों की एक दूसरे के सानिध्य में बीतती थीं, वे काफी समय से एक अबोला पन और अकेलेपन के भयाक्रांत वातावरण में बीतने लगी थीं।


 आज शाम का खाना भी दीप्ति ने डरते डरते ही तैयार किया था ,पता नहीं विभोर खाएंगे या नहीं । लेकिन जब विभोर अपने भाई मुकुल के साथ ऑफिस से वापिस आए और उसने खाना परोसा तो दोनों भाई खाने पर बैठ गए ।

दीप्ति ने संतोष की सांस ली और चपाती सेकने लगी ।लेकिन सुबह वाली घटना उसके दिमाग से निकल नहीं रही थी ,जब वह बेटी अनन्या को तैयार करके बाहर आई तो उसे पति की गुस्से भरी आवाज़ सुनाई दी कि मुकुल के लिए चाय दुबारा बना दो। 

दीप्ति ने सधी हुई आवाज़ में जवाब दिया ,"अनन्या की बस आने वाली है ,उसे छोड़कर आती हूँ ,फिर बनाती हूँ "

फिर भी पति के गुस्से की तेजी का भान होते ही उसने पतीले में पानी दूध डालकर गैस पर चढ़ा दिया और गैस सिम पर करके बेटी को छोड़ने चली गई ।


वापिस आई तो पति नहाने चले गए थे ।

मतलब वे ऑफिस जाने वाले हैं । अफरा तफरी में उसने फटाफट सब्जी बनाई और रोटी सेकने लगी,लेकिन तब तक दोनों भाई तैयार होकर बाहर निकलने ही वाले थे ।

दीप्ति ने साहस बटोर कर पति से कहा , " खाना खाकर चले जाइएगा।"

विभोर का पारा पहले ही सातवें आसमान पर था ,बोला ," बाहर भी मिलता है खाना ",और इसी के साथ दोनों भाइयों के कदम बाहर पड़ चुके थे ।

यह सब दीप्ति के साथ पिछले डेढ़ वर्षों से चला आ रहा था ,जब से मुकुल उनके साथ रहकर नौकरी ढूंढने आया था । जब तब भाई के कान भरता रहता था कि मुझे आज खाना नहीं दिया या चाय ठंडी दी । उसका एक वाक्य दीप्ति के जीवन में ५,७ दिन तक अबोलापन का तूफान ला देता ।

विभोर भाई की बातों को सच मान कर दीप्ति पर गर्म हो उठते व मुकुल उनको लड़ते हुए देख कर मन ही मन खुश होता ।

दीप्ति ने कई बार समझाने की भी कोशिश की, लेकिन विभोर कह देते ," तुम्हारी ही गलती है तभी मुकुल ऐसा करता है ,मैं तो मेरी भाभी के साथ ऐसा व्यवहार नहीं करता ।"

जब अविश्वास का ऐसा आवरण चढ़ा हो तो कोई माई का लाल नहीं जो इसको हटा सके ।

 धीरे धीरे दीप्ति मुरझाने लगी थी ।

खाने से उठकर विभोर जब सोने के लिए कमरे में आया तो उसकी नज़र पहली बाहर दीप्ति के क्लांत हो आए चेहरे पर पड़ी ।वह बहुत कमजोर भी लग रही थी । उसने उसे पूछा कि तुमने खाना खाया क्या?  

पति के काफी दिनों बाद सुने इन सहानुभूति पूर्ण शब्दों को सुनकर दीप्ति की आँखें डबडबा आई, उसने ना में सिर हिला दिया ।यह' न' विभोर की आत्मा को चीरकर निकल गया ।

वह सोचने लगा ,जिसको मैं जिंदगी भर के लिए  हमसफ़र बना कर लाया था उसके साथ मैं क्या करता जा रहा हूँ ? जो मेरी एक मुस्कुराहट के लिए सारे दिन भाग सकती है उसके लिए मेरा दायित्व क्या इतना ही है?

मुझे जीवन-संगिनी के रूप में एक शांत ,सौम्य, प्रेयसी व अपने कर्तव्यों के प्रति समर्पित एक सन्त का सा जीवन जीने वाली पत्नी मिली और मैं अभागा मेरे ही भाग्य को दुर्भाग्य में बदलने चला था ।

 एक तरफ यह है ,जो मेरे ऐसे तिरस्कारपूर्ण रवैये के बावजूद अपने सारे कर्तव्य पूरे करती है। यह सोचते हुए वह कब रसोई में पहुंच गया और कब खाना लाकर दीप्ति को कौर देने लगा --भान ही नही हुआ ।

अब उसकी आँखों से निकले आंसूओं को दीप्ति ने अपने आंसूओं में मिला दिया।

रिश्तों पर छाई धूल छंट चुकी थी ।


कुसुम पारीक 


मौलिक ,स्वरचित 


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Kusum Pareek

kusumu56x

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Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

  • Sushma Tiwari · 4 years ago last edited 4 years ago

    वाह! कितनी बढ़िया तरह से प्रस्तुत किया है

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