"ठसका"
"आजकल आपने देखा क्या? दीदी कितनी चिड़चिड़ी हो गई हैं! हर बात पर बुरा मान जाती हैं।"
थोड़ी भौंहे चढ़ाती हुई पल्लवी मुझे दाल परोसने लगी।
"अब कोई जीजाजी क्या हमेशा के लिए ही थोड़े ही नहीं कमाएंगे ,बाहर गए हैं--- कहीं न कहीं नौकरी ढूंढ ही लेंगे ।"
मैंने कहा," हां काबिल हैं जीजाजी ।"
"अब देखिए न! मैंने कल ऐसा कुछ भी नहीं कहा था ,केवल यही कहा था कि दीदी ,रोहन को दूध पिलाने की बजाय खाना खिला दिया करो --उसका पेट भी भरा रहे ।"
मेरा मूक समर्थन पाकर वह थोड़ी और आगे बढ़ी," अब आप ही बता दीजिए दस साल का हो गया रोहन--- उसे दो बार दूध पिलाना जरूरी है क्या ?
मुंह में लिया ग्रास जैसे गले में अचानक से अटक गया हो और मुझे जोर-जोर से खांसी आने लगी ।
मुझे लगा--जैसे मेरे गले में ठसका लगा है । मैं और जोर से खाँसा ,पल्लवी जल्दी से खड़ी हो गई व पानी का गिलास मेरे मुंह के आगे कर दिया ।
लेकिन मेरे गले की फांस निकलने का नाम नहीं ले रही थी ।खाँसी के साथ- साथ आँखों से आंसू भी आ गए ।
मेरी खांसी सुन दीदी भी बाहर आ गई लेकिन जब मुझे पल्लवी से घिरा देखा तो एक तरफ खड़ी देखती रही व थोड़ी देर बाद अपने कमरे में चली गईं ।
मेरे गले का ठसका मुझे बहुत चुभ रहा था ।
मैं उठकर मेरे कमरे में जाने के लिए दीदी के कमरे के आगे से गुजरा --- देखा कि वह वहां किसी पेपर में अपनी आँखें गड़ाए बैठी थीं ।इतने में ही पल्लवी की आवाज़ आई ," जानू किधर जा रहे हो --- सन्नी ने सुसु कर दी, इसका नैप्पी चेंज कर दो ।"
मैं नैप्पी चेंज करते हुए भी महसूस कर रहा था कि मुझे ठसके के मारे थूक गटकने में भी परेशानी हो रही है ।
मैं उस समय में पहुंच गया ---जब मेरा कॉलेज था और दीदी मुझे अपनी ससुराल से हर महीने दो पत्र अवश्य लिखती थी जो मेरे लिए किसी सम्बल व प्रेरणा से कम नहीं होते थे ।
दीदी मेरी, बड़ी बहन कम, दोस्त या मां ज्यादा होती थी --जो मेरी हर अनकही बात समझ लेती थीं ।
दो दिन भी यदि मैं पत्र का जवाब न दे पाता या फोन नहीं करता तो अपनी बचत के पैसे फट से मेरे खाते में ट्रांसफर कर देती थी ।
एक बात और थी जहां मुझे दीदी ही बचाती थी --- वह था पापा के सवालों का जवाब देना क्योंकि मैं पापा से बहुत डरता था-- वहां दीदी हर वक़्त मेरी ढाल बनी रहती थी ।
सन्नी को गोद में लेकर मैं मेरे कमरे में गया व उसको सुलाने के बहाने कमरा बन्द कर लिया ।
देखा कि सन्नी सो चुका है ,आहिस्ते से उठा और धीरे से दीदी के कमरे की ओर रुख किया, वह अपनी सूटकेस में सामान जमा रही थी ।
मैं "अन्ह-अन्ह" खाँसा । दीदी बोली ,"क्या हो गया है तेरे गले को? कब से फंसा पड़ा है ,गर्म पानी कर देती हूं--गरारे कर ले ।"
मैंने उनका हाथ अपने हाथ में लिया और एक ब्लेंक चेक उनके हाथ पर रख दिया ।
"दीदी मना मत करना ,जीजाजी को बोल देना जितनी जरूरत हो रकम भर कर काम आगे बढ़ा लें।"
दीदी की आंखों से झर-झर आंसू बह रहे थे। अचानक एक जोर की खाँसी आई और गले का ठसका भी निकल गया ।
कुसुम पारीक
मौलिक,स्वरचित
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