आज की शबरी
शाम का धुंधलका बढ़ चुका है,चारों तरफ बादल उमड़ घुमड़ कर आ रहे हैं ,बारिश कभी भी आ सकती है ; शबरी ,तुम अपनी कुटिया में चली जाओ।" मतंग ऋषि ने आसमान में छाई बादलों की कालिमा को देखते हुए कहा।
"ऋषिवर अब चौमासे में यज्ञ व जलावन हेतु समिधा और ईंधन की व्यवस्था करनी पड़ेगी न ।
आप चिंता मत करिए ,मैं यूं गई और यूं आई,"
कहती हुई पगडंडी को फलांगते हुए पलक झपकते हुए वह जंगल में गुम हो गई।
"यह लड़कीं भी न, छोटी सी कन्या से प्रौढ़ हो चुकी है लेकिन अपनी सेवाभव व चपलता से किसी को शिकायत का अवसर नहीं देती ।
अपने शिष्य की ओर देखते हुए बात आगे बढ़ाते हुए बोले," कितनी संघर्षशील है यह, अपने समाज की हर उस कुरीति का विरोध इसने किया है जो स्त्री को कमतर आंकते हैं और प्रत्येक उस पीड़ित के साथ खड़ी हो जाती है जिसका जाति विशेष का होने के कारण उत्पीड़न किया जाता है ।
आज अपने संकल्प से इसने वन में भी इतनी बड़ी सेना गठित कर ली जो सामाजिक अन्याय के विरुद्ध लड़ने को तत्पर है।"
अचानक बिजली की तेज गड़गड़ाहट सुनाई दी और उसके साथ ही एक धमाका,शायद कहीं गिरी होगी बिजली ।
मतंग ऋषि ने चिंतातुर होकर जैसे ही आवाज लगाई,"शबरी बेटी,तुम ठीक हो न!'
हाँ ऋषिवर ,आपके रहते मुझे क्या हो सकता है? कहते हुए उसने सिर पर से गठरी नीचे पटकी ,बिजली की रोशनी में अनार सी दाँत पंक्ति उसके सांवले चेहरे पर और चमक उठी।
अचानक एक शिष्य दौड़ता हुआ आया और बोला,"ऋषिवर राजा राम शबरी से मिलने आपके आश्रम में पधार रहे हैं।"
अच्छा वत्स, उनके लिए बाहर की अतिथि कुटिया में आसन लगाओ और जलपान की व्यवस्था करो।"
शबरी की तरफ मुखातिब होकर बोले," बेटी आज तुम्हारे संघर्ष का अंतिम दिन है जो कुछ राजा पूछें ,उनका सही-सही आकलन करके उत्तर दे देना, मुझे नहीं लगता कि तुम्हारी कोई भी मांगे नकारी जाएंगी क्योंकि उनमें कोई भी अनुचित माँग नहीं है।"
इतने में ही राम की पदचाप सुन ऋषि व शबरी अपनी कुटिया से बाहर आते है और शबरी उनको प्रणाम कर एक तरफ खड़ी हो जाती है ।
राम ने देखा कि शबरी के संकल्प का तेज उसे अन्य स्त्रियों से विशेष बना रहा था ।
"शबरी ,तुमने जिन जिन माँगों का पत्र हमें लिखा है वे सब उचित जान पड़ती है लेकिन मुझे कुछ बातों में संशय है इसलिए मैंने तुम सबसे मिलकर उनका समाधान करने का सोचा ।
वह समाधान राजधानी के महलों में बैठकर नहीं हो सकता,उसके लिए बीहड़ों की समस्याओं से जूझते हुए संघर्षों में तपना पड़ता है इसलिए मैं मेरे एक दो मंत्रियों के साथ तुम सबसे मिलने यहीं आ गया हूँ।
आदिवासी समाज के लिए जिस जीवटता से तुम जीवन भर संघर्ष शील रही हो वह अतुलनीय है ।सरकार ने इस नए कानून में तुम सबको मुख्यधारा में शामिल होने का आमंत्रण दिया है ।
तुम लोगों की शिक्षा के लिए कुछ ही दूरी पर विद्यालय खोले जाएंगे और कई दुकानें भी ,जहां तुम लोगों की जरूरत का सामान मिल जाएगा ।
जगह जगह पक्की सड़कें बनाई जाएंगी जो तुम्हारे आवागमन को आसान बनाएंगी और सबसे बड़ी बात --जंगलों को काटने से बचाने हेतु तुम्हारे अतुलनीय प्रयास को देखते हुए ,सरकार ने इस बार गणतंत्र दिवस पर तुम्हें पदम् श्री से सम्मानित करने का फैसला किया है ।"
आँखों मे अश्रु लिये शबरी अपने मीठे बिल्ब शर्बत को श्री राम को पिला रही थी ।
कुसुम पारीक
कुसुम पारीक
मौलिक,स्वरचित
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
👍
बेहतरीन
bahut badiya
हार्दिक आभार आप सबका
कितना सुंदर लिखा आपने। लगा जैसे वही शबरी वही राम
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