व्यग्रता

बढ़ते संचार माध्यमों व सुविधाओ के कलते मानव मन भी इतना ही अधीर हो उठा है।सहनशीलता समाज मे खत्म होने को है।

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Kusum Pareek
Kusum Pareek 11 Jun, 2020 | 1 min read



मेरे सामने वाली बर्थ पर एक पच्चीस छब्बीस वर्षीया युवती लगभग साल भर के बच्चे के साथ सफर कर रही थी ।

बच्चा आराम से सीट पर सो रहा होता है कि उसके फोन की घण्टी बज उठती है , और बच्चा भी चौंक कर उठ जाता है ," हाँ मम्मी जी ,बेबी सो रहा है ,उठेगा तो पिला दूँगी है,अल्ले,अल्ले राजा बेटा रोते नहीं है ,"  

जी मम्मी जी ,रखती हूँ ,बाबा उठ गया है ।


बच्चे को गोद में लेते हुए एक कान पर फ़ोन लगा कर, दूसरे हाथ से उसे बोटल निकाल कर दूध पिलाने लगी ।


बच्चा किसी तरह दुबारा सोया कि फ़ोन की घण्टी घनघना उठी , " हाँ,"थोड़ी देर में खिचड़ी खिला दूँगी,याद है मुझे कि कब , क्या-क्या खिलाना है?"

मैंने देखा कि वह बहुत थकी हुई सी लग रही थी परन्तु बच्चे की चिंता व क्षण क्षण में बजने वाले फोन उसे आराम करने से रोक रहे थे ।

मुझे याद आ रही थी ,मेरी बेटी जो अभी १२वीं में है, उसके लिए मुझे कभी भी इतने चोचले नहीं करने पड़े क्योंकि उस समय हम मिनट मिनट पर फ़ोन नहीं करते थे । 

इतने में बच्चा उठ गया ," बैग में हाथ डालते हुए एक एयर टाइट डिब्बा निकाला ,जिसमे खिचड़ी जैसा कुछ था ।"


खाले बेटा ,जल्दी खा ले ,राजा बेटा हो न आप! 

 इतने में एक बार फिर बज उठा फ़ोन 

हाँ जी,पहना दूँगी नाईट ड्रेस ,साथ में लाई हूँ मैं "  

"मुझे क्या बेवकूफ समझ रखा है आपने?"

बात थोड़ी बढ़ती गई ," क्या मैं पागल हूँ ,जो कुछ याद नहीं रहता" (चम्मच मुंह के आगे है लेकिन खाना खिलाए कौन?)


सब मैंने ही सम्भाल रखा है ,तुम कितना देखते हो बच्चे हो?

सुबह ऑफिस के लिए निकलते हो और घर आकर वही टीवी का रिमोट ( बच्चा खाने के लिए इंतज़ार कर रहा है कि मम्मी मेरे मुँह में खाना डाले)


बस रहने दो ,अपना बखान करना ,सब जानती हूं ,तुम्हारी माँ को भी और तुम्हें भी ( बच्चा होंठ निकाल कर रोने लगे जाता है)


धीरे -धीरे आवाज़ में आवेश समा रहा था ,"जब मेरे घर रह जाऊंगी ,तभी पता चलेगा माँ बेटे को ,नानी न याद दिला दी तो देख लेना ।"


"समझते क्या हो अपने आप को?" तब तक एक दम चेहरा लाल हो उठा था गुस्से में ।

और इसी के साथ बच्चा धड़ाम से सीट से नीचे गिर जाता है ।


कुसुम पारीक 


मौलिक ,स्वरचित

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