सन्नाटा
सुनो,मेरा नी कैप कहाँ है ? आज अद्वैत की स्कूल में स्पोर्ट्स डे है ,वहाँ चलना है ना !
हाँ ,चलना तो है ही क्यों नहीं जाएंगे आखिर हमारा पोता जो है,यह लीजिये आपका नी कैप ,
गुप्तजी को नई कैप पकड़ाती हुई शर्मिला जी अपनी कलप लगी डोरिया की साड़ी को ठीक करने लगी ।
हालांकि उनके भी सर्वाइकल का दर्द था ,लेकिन सब कुछ भूल कर दोनों अपनी जरूरत का सामान व पोते का बैग जो पहले से ही तैयार था ,लेकर स्कूल के लिए निकल पड़े ।
अद्वैत दौड़ रहा है और दोनों अपनी अपनी जगह खड़े होकर तालियां बजा रहे हैं ।
पोते को जब मेडल मिला तो गुप्ता जी लगभग दौड़ते हुए पहुंच गए ,पोते को गोदी में लेकर ।
वहां से लौटते हुए दोनों उसके पिता विवेक का बचपन याद कर रहे थे जब वह ऐसे ही मेडल लेकर आता था लेकिन तभी फ़ोन की घण्टी घनघना उठी ।
गुप्ता जी ने हंसते हुए फ़ोन उठाया ,
हाँ ,स्वाति ! अद्वैत फर्स्ट आया है अपनी रेस में ।
मैं और तुम्हारी मम्मी घर जा रहे हैं वापिस ।
धीमी आवाज में ---- लेकिन तुम शाम को ले जाना उसको !
ठीक है ।
ठी ठी क^^ है ।
अब तक आवाज एकदम दब चुकी थी ,"ड्राइवर गाड़ी को डे केअर सेंटर की तरफ मोड़ लो" ।
और पनियाई आँखों से शर्मिला जी को देखते हुए अद्वैत को इस तरह छाती से लगा लिया ,मानो अमूल्य निधि को कोई छीन कर ले जा रहा हो ।
कुसुम पारीक
स्वरचित ,मौलिक
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