म्हारे राजस्थान में होळी रो त्योहार आवणं र् बख्त बड़ा बूढ़ा बालका रे हिवड़े में जिण भांत रो हरख देखण ने मिलै बिण जितरो कोई भी त्योहार पर न दिखै ।
फागण आयो नि आयो,दो महीना पहल्या सयूँ ढोलक ,चंग र् नगाड़ा र् ऊपर थाप सुणन लाग ज्यावै ।
म्हारे शेखावाटी क्षेत्र र् मांय गींदड़ खेली जै।
एक ऊंचे सै लकड़ी रो बणायो डो चबूतरे रे ऊपर बडो सो नगाड़ो रखीजै और फेर घर घर सयूँ छोरा अरे आदमी भांत भांत रा कपड़ा लुगाया रा लेरे पेहर लेवे ,बाने मैहरी बोले ।
काढ घुँघटियो र् ले चंग हाथ मे ,जद गांवन लागे धमाल तो चारयु मेर आदमी लुगाया टाबरां की इतरी भीड़ हो ज्यावै ,जाने कृष्ण जी रो रास ही रचिजे है ।
रात रा नौ बजे सयूँ सुरु होयोडो कार्यकरम रात रा तीन चार बजे तक चालतो रहवे ।
एक धमाल जकी महने भोत सुथरी लागे थाने भी सुणानी चाहबू।
"उड़ती कुंजलिया संदेसो म्हारो लेती जाइजे रे उड़ती कुंजलिया
एक सन्दसो म्हारे सुसरो जी ने दीजै रे,सासु जी ने पगा लागणी कहती जाजे रे उड़ती कुंजलिया।"
होली रा गीत भी जग्या जग्या छोरियां गांवती दीखीजै रात ने ।
होली रा गोबर रा बदकुला बणा बणा र् मोटी सी माला बना लेवे औऱ जद होली मंगलाई जै बी बख्त बड़कुला री पूजा कर होली में चढ़ा देवे ।
होली मंगल र् दुसरे दिन सगळा टाबर टिकर ,लोग लुगाई,गीली सुखी भांत भांत रे रंग गुलाल रे साथै होली खेले ।
होली रो त्योहार राजस्थान रो जबरो होवे ।
दूसरा राज्य में जका राजस्थान रा निवासी है बे भी बैठे होली री धमाल गावै बी बख़्त सगळा परदेसी भी सुनण ने आ ज्यावै।
राजस्थान री परम्परा में होली रो भोत घणो उछाव रहवै।
इन याद करता ही सगळा मुळकण लाग ज्यावै ।
कुसुम पारीक
मौलिक,स्वरचित
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