लघुकथा

कई शातिर लोग ,अपना उल्लू सीधा करने हेतु सरल लोगो का शोषण करते हैं।

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Kusum Pareek
Kusum Pareek 07 Mar, 2020 | 0 mins read

"दिखावा"

शिल्पी तुम मुझे देदो यह प्लेट ,मम्मी पापा को ब्रेड पकौड़े मैं दे आती हूँ ,तब तक तुम थोड़ा सुस्ता लो ।

अरे दीदी! आप नाहक परेशान हो रही हैं ,मैं कहाँ थकी हुई हूँ ,थोड़ा सर में ही तो दर्द है ,वैसे टेबलेट ले ली थी मैंने ,तभी तो नाश्ता बना पाई हूँ ।मैं ही दे देती हूँ ।

परन्तु कृति प्लेट को लगभग छीनते हुए ,सास ससुर के पास पहुंच गई ।

आंखों को मटकाते हुए शानदार मुस्कुराहट के साथ ," लीजिए पापाजी , मम्मी जी खाइए ,गर्मा गर्म पकौड़े , बताइएगा कैसे बने हैं ?

वाह बहू! बहुत टेस्टी पकौड़े बने हैं ,खाकर दिल खुश हो गया, वैसे शिल्पी कहाँ है?

थोड़ा हकलाते हुए पर पूरे आत्मविश्वास से ," मम्मी जी वह आराम कर रही है ,वैसे आपका ख्याल तो मैं अच्छी तरह रख ही लेती हूं ना !

अरे ! मैं तो भूल ही गई थी ,जो मम्मी ने कल गाजर का हलवा भेजा था ,वह भी लाती हूँ ।

कहकर कृति रसोई घर की तरफ मुड़ गई ।

ससुर जी ,सास को देखकर कहते हैं ," देखो भागवान !हम लोग कितने भग्यशाली हैं जो इतनी सेवाभावी बहू मिली है और एक शिल्पी है हर समय काम का रोना लिए रहती है ।

कुसुम पारीक

मौलिक ,स्वरचित

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Kusum Pareek

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