यशोगान

गलत कामो में लिप्त इंसान अपनी आत्मा तक को गिरवी रख देता है

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Kusum Pareek
Kusum Pareek 24 May, 2020 | 1 min read

"यशोगान"

गहराती शाम के हल्के धुंधलके में सेठ जी से ,मिश्रा जी हलक का थूक गटकते हुए कहते हैं,

" गोदाम में अनाज की कुछ बोरियों में कीड़े पड़े हैं,क्या करना है?"

"तुम इनको दूसरे अनाज में मिला दो और सारा माल मंडी में भेज दो ।"

दूसरे वाले कारखाने में जो लड़के काम करते है उनकी तनख्वाह का क्या करना है ,दो महीने से बाकी पड़ी है ।

उन सबकी १०० ,१०० रुपये काट कर हिसाब कर दो ,और हाँ! जो ड्रग्स वाला पैकेट आया था उसे लड़कों के छात्रावास में भिजवा देना ।

सेठ साहब,"आपकी सहायतार्थ चल रहे महिला छात्रावास के मैनेजर का फ़ोन आया है ,लीजिए बात करिए।

हाँ, दुबे जी ,हॉस्टल से चार लड़कियों को आज रात गेस्ट हाउस में भेज दीजिएगा ।

एक जोरदार अट्टहास गूंजा -----

देखो! चारों तरफ जो मेरा यशोगान हो रहा है वह मेरी काबिलियत के कारण ही है ।

गहराते अंधकार के साथ गहरी निःश्वास छोड़ते हुए मिश्रा जी बड़बड़ा रहे थे ,

"हाँ ,---- दया ,करुणा, ममता ,इंसानियत ,श्रद्धा व नम्रता की लाशों पर ही आपने अपना भव्य साम्राज्य खड़ा किया है ।"

कुसुम पारीक

मौलिक ,स्वरचित

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Kusum Pareek

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