"तुम हो न"
"आज हमारे बच्चे जिस ऊंचाई पर हैं उस तक पहुंचाने में तुमने अकेले बहुत संघर्ष किया है सुधा .. "
मैं तो तुम्हें किसी भी रूप में सहयोग नहीं दे पाया...वह चाहे मेरी पुरातन पारिवारिक पृष्ठभूमि हो या इस संकीर्ण और दकियानूसी समाज का मामला हो । "
" ऐसा क्यों सोचते हैं आप? यदि आप मुझे आकाश सा छत्र न देते तो अब तक मैं इस भीड़ में कहीं गुम हो चुकी होती..
कई बार सोचती हूँ गगन ...आपके होने भर से जीवन के संघर्ष का पहाड़ जैसा बोझ भी कागज के गोले से हल्का लगता है मुझे ।"
"आपकी नौकरी दूसरी जगह होने की वज़ह से आप घर परिवार को समय नही दे पाते और धीरे धीरे यह जिम्मेदारी अधिकतर मुझ पर आन पड़ी ..
और लोग भी कह देते हैं कि देखो..कैसी मर्द औरत है अकेली सब कुछ सम्भाल लेती है..इसके पति को तो केवल पैसे कमाने से मतलब है ।"
"परन्तु मैं जानती हूँ आपका मुझ पर विश्वास ही मुझे यह सब करने की प्रेरणा देता रहा है ।"
वास्तविकता से दूर ....लोगों को यह केवल एक उंगली भर सहारा ही दिखेगा परन्तु हमारे दायित्वों को पूर्ण करने में मुझे जो साहस देता है वह केवल और केवल... मुझ पर .. आपका विश्वास करना ही है ..
'तुम हो न ' ।"
कुसुम पारीक
मौलिक,स्वरचित
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
No comments yet.
Be the first to express what you feel 🥰.
Please Login or Create a free account to comment.