सौम्या घर लौटी तो देखा कि घर मे एक अजीब सा सन्नाटा पसरा हुआ है ,जिसे उसकी बेली की खट- खट ही चीर रही थी।
भाभी, डरी सिमटी सी किचन में लगी है और भाई अपने लैपटॉप पर ।
सौम्या के पूछते ही मां का मन गुब्बारे की तरह फट पड़ा ।
सौम्या समझ गई कि यह सब
"शशांक भैया ने अपनी नवविवाहिता को नया फ़ोन लाकर दिया तो उसके बाद से ही घर में घटित हो रहे थे।
मां ,पापा को शिकायत रहती है ,
"थोड़े दिन पहले ही दोनों १० दिन के लिए घूमफिर कर भी आए हैं ।"
"आए दिन शाम को बाहर खाने के लिए चले जाते हैं ।"
"कल ही दोनों बैठे आगे की पढ़ाई के लिए ऑनलाइन फॉर्म भर रहे थे "
थोड़ी देर बाद सौम्या ने सबको डाइनिंग टेबल पर आने के लिए कहा व जब सब अपनी अपनी कुर्सी पर बैठ चुके थे तो सौम्या ने सब्जी का डोंगा उठाते हुए ,मां की प्लेट में डालते हुए कहा," देखो मम्मी ,"भाभी की बनाई सब्जी कितनी जायकेदार लग रही है ।" ,
जब वहां से कोई प्रत्युत्तर नहीं आया तो सौम्या ने मां का हाथ अपने हाथ में लेकर कहा ,
"मां क्यों भूल जाती हो आप ,हमारे समाज में लड़कियों को किस तरह ठोक पीटकर, बंदिश में पाला जाता है।"
, तुम भूल गई क्या ? वो सब ,जो नौकरी लगने से पहले तक "मुझे" सुनाती थी।
तुम्हीं कहती थी न कि
अरे ,"सौम्या,तुम इस तरह के कपड़े पहन कर कहाँ जा रही हो? गली मौहल्ले में चार जने ताकेंगे ।
' भई," हमारे पास तो इतने पैसे नहीं हैं जो तुम्हारे शौक पूरे करें। आगे जाकर अपने घर पर पूरे करियो।"
जब देखो, टांगे ऊंची किए किताबों में या लैपटॉप में घुसी पड़ी रहती है ,उठकर दो काम ही करले ," ऐसे शौक अपने पति के साथ रह कर पूरे करियो।"
इस ऊंची डिग्री कोर्स में तो बहुत खर्चा आएगा ,ऐसा करो ," तुम डिप्लोमा ही कर लो,आगे की पढ़ाई आपने पति के घर करियो।"
आंखों में आई तरलता को पोंछते हुए सौम्या आगे बोली ,
" इतना बनना-सँवरना ठीक नहीं है ,आगे अपने घर जाकर अपने शौक पूरे करियो। "
बस यही कारण है कि हर लड़की को उसके बचपन से ही अपनी इच्छाएं दबाना सिखाया जाता है और जब उसे कोई सुनने वाला मिल जाता है तो उसकी दबी इच्छाएँ बाहर निकलने लगती हैं ।
पापा ,आप ही बताइए ,
"क्या लड़की एक सामान्य इंसान नहीं है ? "
क्या उसके कोई शौक व अरमान नहीं हो सकते ?
यह सब तो आपको," उस समय सोचना चाहिए" जब आप लोग एक लड़की की इच्छाओं को "कुचलते "हैं ।
सौम्या ने देखा कि माँ "भाभी" को अपने पास बैठाकर ,उनकी थाली में खाना परोस रही थी व पापा भैया की पीठ थपथपा रहे हैं ।
कुसुम पारीक
स्वरचित मौलिक
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