राह में मिला एक राहगीर था थोड़ा घायल वो,
देख जान पड़ता की भीड़ा कहीं पागल वो,
जाना जरूरी था मेरा वहां से दिमाग ने कहा तू भी छोड़,
दिल के कोने से मेरा फ़र्ज़ पुकारा घायल है वो,
याद आयी वो शपथ जो मैंने ली थी सेवा की,
ख़ुद से ऊपर रखूंगी घायलों की सेवा को,
वो देख बहता खून और वो तड़पती आहें,
जाग जाता है मेरा अंदर का इंसान जो खुदा कहलाता है,
ज़ख्मी पड़े मौत के द्वार खड़े मुसाफिर को ,
ऐसे हीं नहीं एक इंसान में भी भगवान नज़र आता है।
इंसान ने दी भगवान की उपाधि एक सेवक इंसान को,
कैस फ़र्ज़ को भुला दूं जब मर रहा वहीं इंसान हो।
दिल के हर एक चप्पे चप्पे से आवाज में आती है,
उठ और जा मदद कर यह बात ही तुझे डॉक्टर बनाती है।
ज्योति अग्रवाल
Comments
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डॉक्टर को इंसान ही समझिए, भगवान से तुलना न करें।। हम डॉक्टर्स अब बस सर्विस प्रोवाइडर बन के रहना चाहते हैं। भला कौन तथाकथित भगवान बनकर मार खाना चाहेगा।
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