कहानी का शीर्षक: "मिट्टी के साथी"

"मिट्टी और मनुष्य" एक मार्मिक कहानी है जो शहरी जीवन की भागदौड़ और प्रकृति से अलगाव के बीच, मिट्टी और उसके सबसे छोटे जीवों — केंचुओं — के महत्व को दर्शाती है। कहानी फ़ज़ल एसाफ नाम के एक युवा, संस्कारी किसान के बेटे के इर्द-गिर्द घूमती है, जो अपनी गाँव की मिट्टी और उसके अनदेखे नायकों के प्रति गहरी समझ रखता है। कहानी की शुरुआत ठाणे के एक छोटे से कस्बे में बारिश के बाद की सुबह से होती है, जहाँ फ़ज़ल सड़क पर रेंगते केंचुओं को देखकर विचलित हो जाता है, क्योंकि लोग उन्हें बिना सोचे-समझे कुचल रहे हैं। वह एक केंचुए को उठाकर सुरक्षित स्थान पर रखता है और मन ही मन बुदबुदाता है कि लोग इस "कीड़े" की अहमियत नहीं समझते, जबकि यही उनकी "रोटियों" से जुड़ा है। आगे चलकर, फ़ज़ल का सामना तीन अलग-अलग राहगीरों से होता है: एक तेज़-तर्रार कॉर्पोरेट महिला, अदिति मैडम; एक अनुभवी बुज़ुर्ग, शास्त्री जी; और एक नन्हा लड़का, आर्यन। सबसे पहले, अदिति मैडम अनजाने में एक केंचुए को कुचल देती हैं। फ़ज़ल उन्हें रोकता है और विनम्रता से समझाता है कि यह "कीड़ा" नहीं, बल्कि "किसान का दोस्त" है जो मिट्टी को साँस देता है और ज़मीन को उपजाऊ बनाता है। अदिति शुरुआत में झिझकती हैं, लेकिन फ़ज़ल के शब्दों में छिपी सच्चाई उन्हें सोचने पर मजबूर कर देती है। इसके बाद, शास्त्री जी फ़ज़ल की बात का समर्थन करते हैं और अपने पुराने दिनों को याद करते हैं जब केंचुए को खेत में देखना अच्छी फसल का संकेत माना जाता था। वे आधुनिक समाज में मिट्टी से बढ़ती दूरी पर चिंता व्यक्त करते हैं। फ़ज़ल उन्हें समझाता है कि लोग मिट्टी को गंदगी समझते हैं, जबकि वही "गंदगी" उनकी थाली में गेहूं बनकर आती है, और केंचुए ही बिना किसी स्वार्थ के ज़मीन को जोतते हैं। कहानी में एक मार्मिक मोड़ तब आता है जब आर्यन, एक छोटा लड़का, केंचुए को "साँप जैसा कुछ" समझता है। फ़ज़ल धैर्य से उसे बताता है कि यह एक अर्थवर्म है जो मिट्टी को अंदर से जोतता है, हवा, पानी और बीज को पनपने में मदद करता है। वह आर्यन को समझाता है कि वह जो सब्ज़ियाँ खाता है, वे कहीं न कहीं केंचुए के कारण ही उगती हैं, जिससे आर्यन केंचुए को अपना दोस्त समझने लगता है। आर्यन की माँ भी इस छोटे लेकिन गहरे सबक के लिए फ़ज़ल को धन्यवाद देती हैं। एक छोटी सभा में, फ़ज़ल अदिति, शास्त्री जी और आर्यन को संबोधित करते हुए कहते हैं कि भले ही वे शहर में रहते हों और वह गाँव से हो, लेकिन "मिट्टी" ही वह धागा है जो उन सबको जोड़ता है। वह शहरी लोगों से मिट्टी के प्रति संवेदना रखने और छोटे जीवों को बचाने की अपील करता है। शास्त्री जी भावुक होकर कहते हैं कि जो समाज ज़मीन से रिश्ता तोड़ता है, वह रिश्तों की अहमियत भी भूल जाता है। कहानी का चरमोत्कर्ष तब आता है जब फ़ज़ल अपने झोले से एक मुट्ठी मिट्टी उठाता है जिसमें एक केंचुआ रेंग रहा होता है। वह भावनात्मक स्वर में समझाता है कि यह मिट्टी केवल मिट्टी नहीं, बल्कि "जीवन" है, जिसमें "मेहनत" और "उम्मीद" है। वह चेतावनी देता है कि जिस दिन केंचुए कम हुए, उस दिन रोटी भी महंगी हो जाएगी, मिट्टी बंजर हो जाएगी, और दिल भी। यह सुनकर आर्यन अब हर केंचुए को ध्यान से देखता है और वादा करता है कि वह उन्हें कुचलेगा नहीं। कहानी एक शक्तिशाली मोनोलॉग के साथ समाप्त होती है, जिसमें फ़ज़ल की आवाज़ बताती है कि शहर भले ही चमकता हो, लेकिन उसकी नींव वही मिट्टी है जो गाँवों में साँस लेती है। वह जोर देता है कि अगर हम मिट्टी को मारते रहेंगे, तो हम भी धीरे-धीरे मरेंगे, "बिना आवाज़ के, बिना मिट्टी के।" अंतिम पंक्तियाँ एक काव्यात्मक संदेश देती हैं: "जो रेंगता है ज़मीन पर, वो थामे है आसमान को। न कुचलिए उसे, क्योंकि वो पालता है हमें… चुपचाप।" संदेश: यह पटकथा एक सरल लेकिन गहन संदेश देती है: "ज़मीन पर चलिए, मगर ज़मीन को समझकर चलिए। क्योंकि वहीं से जीवन उगता है।" यह कहानी हमें प्रकृति के सबसे छोटे सदस्यों के महत्व को पहचानने और उसके साथ हमारे संबंध को फिर से स्थापित करने के लिए प्रेरित करती है।

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fazal Esaf
fazal Esaf 18 Jun, 2025 | 1 min read
Earthworm farmers friend look before you walk Earthworm soil friend

कहानी का शीर्षक: "मिट्टी के साथी"


दृश्य 1 – ठाणे के एक छोटे से कस्बे की सुबह

(कैमरा गीली ज़मीन पर घूमता है। बारिश अभी-अभी रुकी है। सड़क पर कीचड़, पानी की हल्की परत और उसके बीच रेंगते हुए कुछ मिट्टी के कीड़े — यानी केंचुए। कुछ मरे हुए, कुछ ज़िंदा, और कुछ पाँवों तले कुचलने के कगार पर।)

(एक सादा मगर तेज नज़रों वाला नौजवान सामने आता है — फज़ल एसाफ। किसान का बेटा। सिर पर गांधी टोपी, कंधे पर कपड़े की झोली, आँखों में गांव की मिट्टी की समझ और दिल में कुछ बेचैनी।)

फज़ल (आहिस्ता-सा):

"ज़मीन पर जीवन रेंग रहा है... और लोग हैं कि सिर उठाए, मोबाइल में घुसे हुए आगे बढ़े जा रहे हैं... इन्हें क्या पता कि इन्हीं रेंगते कीड़ों से हमारी रोटियाँ जुड़ी हैं।"

(वो झुककर एक केंचुए को उठा लेता है और उसे धीरे से गीली मिट्टी के कोने में रख देता है।)



दृश्य 2 – तीन राहगीर आते हैं

  1. अदिति मैडम – कॉर्पोरेट में काम करने वाली तेज़-तर्रार महिला, हाथ में लैपटॉप बैग
  2. शास्त्री जी – बुज़ुर्ग, धोती-कुर्ता पहने, छड़ी के सहारे चलते हुए
  3. आर्यन – नन्हा लड़का, स्कूल बैग लिए, मम्मी का हाथ थामे

दृश्य 3 – टकराव और बातचीत

(अदिति मैडम चलती-चलती एक केंचुए पर पाँव रख देती हैं। केंचुआ मसल जाता है। तभी फज़ल आवाज़ लगाता है।)

फज़ल (तेज़ आवाज़ में):

"मैडम! ज़रा रुकिए..."

(वो चौंक कर रुकती हैं।)

अदिति:

"हाँ? क्या हुआ?"

फज़ल:

"आपके क़दमों तले एक ज़िंदगी चली गई... आपने देखा नहीं?"

(वो नीचे देखती हैं – कुचला हुआ केंचुआ। एक पल के लिए झिझकती हैं।)

अदिति (थोड़ा खिन्न होकर):

"ओह... मुझे लगा कीड़ा है कोई। पर क्या करें? रास्ता तो देखना पड़ता है।"

फज़ल (मुस्कुराकर):

"जी, रास्ता ज़रूर देखिए। लेकिन ज़रा ज़मीन भी देख लीजिए।

ये 'कीड़ा' नहीं है... किसान का दोस्त है।

ये मिट्टी को सांस देता है।

जहाँ ये हैं, वहाँ ज़मीन ज़िंदा है।

और जहाँ ज़मीन ज़िंदा है, वहीं से खाना आता है।"

(अदिति झिझककर सिर हिलाती हैं। फज़ल आगे बढ़ जाता है।)



दृश्य 4 – शास्त्री जी की अनुभवी आंखें

शास्त्री जी (मुस्कुराकर):

"बेटा, तूने दिल की बात कह दी।

हमारे ज़माने में खेत में केंचुआ दिखे तो हम समझते – फसल अच्छी होगी।

अब तो लोगों को मिट्टी से नफरत हो गई है।"

फज़ल (सम्मान से):

"बिलकुल दादा जी।

आजकल लोग मिट्टी को गंदगी समझते हैं...

मगर यही गंदगी उनकी थाली में गेहूँ बनकर जाती है।

और ये केंचुए? ये किसान के सच्चे साथी हैं।

बिना कुछ माँगे, पूरी ज़मीन जोत देते हैं।"

शास्त्री जी:

"और बिना तनख्वाह के मेहनत करते हैं।

काश, लोग इतना समझ पाते जितना तू समझा रहा है।"


दृश्य 5 – आर्यन का मासूम सवाल

(एक छोटा लड़का – आर्यन – माँ का हाथ थामे आता है। अचानक वो रुक जाता है। एक केंचुआ उसके सामने रेंग रहा है।)

आर्यन:

"मम्मा! मम्मा! देखो साप जैसा कुछ चल रहा है!"

(फज़ल पास आता है और झुक कर बोलता है।)

फज़ल:

"नहीं बेटा, ये साँप नहीं है। ये केंचुआ है। इसका नाम है 'Earthworm'।"

आर्यन:

"ये करता क्या है?"

फज़ल:

"ये मिट्टी को अंदर से जोतता है।

जहाँ ये चलता है, वहाँ से हवा जाती है, पानी समाता है, और बीज उगते हैं।

तू जो सब्ज़ी खाता है ना, वो कहीं न कहीं इसके चलते उगी है।"

आर्यन (आँखें चमकाते हुए):

"तो ये मेरा भी दोस्त है?"

फज़ल (हँसते हुए):

"हाँ! तेरा भी और मेरा भी। और हर उस इंसान का दोस्त जो खाना खाता है।"

आर्यन की माँ:

"धन्यवाद भाई साहब। आज एक छोटा मगर बड़ा सबक मिला।"


दृश्य 6 – फुटपाथ पर एक छोटी सभा

(अब अदिति, शास्त्री जी और आर्यन तीनों खड़े हैं। फज़ल के चारों ओर। फज़ल उनकी ओर देखता है – जैसे किसानों का प्रतिनिधि हो।)

फज़ल:

"आप सब यहाँ शहर में रहते हैं, और मैं गांव से हूँ।

मगर जो धागा हम सबको जोड़ता है, वो मिट्टी है।

यहाँ लोग केंचुए को कीड़ा समझकर कुचल देते हैं...

मगर गांव में किसान उसे देख कर सुकून लेता है।

क्योंकि उसे पता है कि यही ज़मीन को ज़िंदा रखेगा।"

अदिति:

"पर शहरों में तो ऐसा ज्ञान कहाँ... हम तो बस दौड़ में लगे हैं।"

फज़ल:

"ज्ञान नहीं तो संवेदना ही सही।

कभी-कभी बस पाँव उठाकर देखना काफ़ी होता है।

अगर हम एक छोटा जीव बचा सकते हैं, तो क्यों ना बचाएं?"

शास्त्री जी (भावुक होकर):

"बेटा, तूने सही कहा।

जिस समाज को ज़मीन से रिश्ता तोड़ देना आता है,

वो रिश्तों की अहमियत भी भूल जाता है।"


दृश्य 7 – सिनेमाई सीन

(फज़ल अपने झोले से थोड़ी मिट्टी उठाता है, उस मिट्टी में एक केंचुआ रेंग रहा है। सब उसे ध्यान से देखते हैं।)

फज़ल (धीरे-धीरे, भावनात्मक स्वर में):

"देखिए...

ये मिट्टी नहीं, जीवन है।

इसमें मेहनत भी है, उम्मीद भी।

और ये छोटा केंचुआ?

ये हमारा अनदेखा, अनकहा साथी है।

जिस दिन ये कम हुआ, उस दिन रोटी भी महंगी हो जाएगी।

मिट्टी भी बंजर और दिल भी।"

(आर्यन नीचे देखते हुए चलता है, हर केंचुए को ध्यान से देखता है।)

आर्यन:

"अब मैं किसी को कुचलूँगा नहीं।

वो भी तो मेरी तरह स्कूल जा रहा होगा… मिट्टी की क्लास में!"

(सब हँस पड़ते हैं। फज़ल आँखों में चमक लेकर दूर चलता जाता है।)



दृश्य 8 – अंतिम मोनोलॉग

(कैमरा धीरे-धीरे ऊपर उठता है। फुटपाथ पर लोग अब ध्यान से चल रहे हैं। कुछ लोग केंचुए को देख मुस्कुरा रहे हैं।)

फज़ल (आवाज़ में गहराई):

"मैं एक किसान का बेटा हूँ।

मुझे पता है ज़िंदगी कहाँ पलती है – ज़मीन की कोख में।

ये शहर चमकता है, मगर इसकी नींव वही मिट्टी है जो गांव में सड़कों से दूर सांस लेती है।

अगर हम उसे मारते रहेंगे, तो हम भी धीरे-धीरे मरेंगे...

बिना आवाज़ के... बिना मिट्टी के..."

(बैकग्राउंड में कविता जैसे शब्द)

"जो रेंगता है ज़मीन पर,

वो थामे है आसमान को।

न कुचलिए उसे,

क्योंकि वो पालता है हमें… चुपचाप।"


समाप्त

संदेश:

"ज़मीन पर चलिए, मगर ज़मीन को समझकर चलिए।

क्योंकि वहीं से जीवन उगता है।"

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