एक मुस्लिम गरीब लड़के की कहानी जो पढ़ना चाहता है
एक छोटे से शहर की तंग गलियों में, जहाँ धूप भी मुश्किल से पहुँच पाती थी, रहीम नाम का एक लड़का अपनी माँ के साथ रहता था। जब रहीम केवल तीन साल का था, तभी उसके अब्बा एक बीमारी से चल बसे। घर का सारा बोझ उसकी अम्मी, सकीना, के कंधों पर आ गया। सकीना घरों में साफ-सफाई का काम करती थी, लेकिन उसकी मामूली कमाई से घर का खर्च चलाना और रहीम को स्कूल भेजना नामुमकिन था।
रहीम की आँखों में हमेशा एक चमक रहती थी, एक चमक जो किताबों और ज्ञान की दुनिया को देखना चाहती थी। वह अक्सर गली के नुक्कड़ पर बनी लाइब्रेरी के बाहर खड़ा होकर अंदर झाँकता रहता, जहाँ बच्चे हँसते-खेलते पढ़ते थे। उसका सबसे बड़ा सपना था कि उसकी अम्मी को अब और किसी के घर में काम न करना पड़े।
एक दिन, रहीम ने अपनी अम्मी से कहा, "अम्मी, मुझे काम करना है। मुझे पढ़ना भी है।" सकीना ने पहले तो मना किया, लेकिन रहीम की ज़िद और आँखों में बसी उम्मीद देखकर वह मान गई। रहीम को शहर की एक छोटी सी परचून की दुकान पर काम मिल गया। दिन भर वह दुकान पर ग्राहकों की मदद करता, सामान उठाता और हिसाब-किताब में हाथ बँटाता। शाम होते ही, वह अपने बस्ते में किताबें और कॉपी-पेंसिल डालकर पास के 'शाम के मदरसे' में चला जाता, जहाँ गरीब बच्चों को मुफ्त शिक्षा मिलती थी।
मदरसे से लौटने के बाद, रहीम कभी नहीं सोता था जब तक कि वह अपनी अम्मी की मदद न कर ले। वह पानी भरता, खाना लगाने में मदद करता और छोटे-मोटे काम निपटाता। रविवार का दिन उनके लिए सुकून भरा होता था। उस दिन, रहीम अपनी अम्मी के पास बैठकर अपने बड़े-बड़े सपने बताता। "अम्मी," वह कहता, "मैं खूब पढ़ूँगा, बड़ा आदमी बनूँगा और फिर आप आराम करेंगी। आपको किसी के घर काम करने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी।" सकीना अपने बेटे के सिर पर हाथ फेरती और उसकी आँखों में झाँकती, जहाँ उसे अपने भविष्य की उम्मीद दिखती थी।
रहीम की उम्र के कई लड़के थे जो गरीबी और मुश्किलों से हार मानकर गलत रास्तों पर निकल जाते थे। कोई चोरी करता, तो कोई बुरी आदतों का शिकार हो जाता। लेकिन रहीम ने कभी अपना रास्ता नहीं भटकाया। वह हमेशा नेक और ईमानदार रहा। इतना ही नहीं, वह अपने दोस्तों और पड़ोस के लड़कों को भी समझाता, "देखो भाई, मुश्किल तो है, पर हार मत मानो। पढ़ाई ही हमें इस दलदल से निकाल सकती है। बुरे काम सिर्फ और दलदल में धकेलेंगे।" उसकी बातों का असर भी होता और कुछ लड़के उसकी सलाह मानकर सही रास्ते पर आ जाते।
नैतिक शिक्षा:
यह कहानी सभी गरीब छात्रों, माताओं और समाज के लिए एक महत्वपूर्ण संदेश देती है:
- गरीब छात्रों के लिए: परिस्थितियाँ कितनी भी विषम क्यों न हों, शिक्षा के प्रति आपकी लगन, कड़ी मेहनत और नेक इरादे आपको हर बाधा पार करने में मदद करेंगे। ज्ञान ही वह शक्ति है जो आपको गरीबी के बंधन से मुक्त कर सकती है। अपने सपनों को कभी मरने न दें।
- माताओं के लिए: आपकी तपस्या, त्याग और बच्चों के प्रति अटूट विश्वास ही उन्हें जीवन में सफलता की ओर ले जाता है। आपकी प्रेरणा और समर्थन उन्हें मुश्किलों से लड़ने की हिम्मत देता है।
- समाज के लिए: हमें रहीम जैसे बच्चों की मदद के लिए आगे आना चाहिए। शिक्षा हर बच्चे का मौलिक अधिकार है। समाज के रूप में हमारी यह ज़िम्मेदारी है कि हम ऐसे बच्चों को अवसर प्रदान करें, उन्हें सहारा दें ताकि वे अपनी क्षमता का पूरा उपयोग कर सकें और एक बेहतर भविष्य का निर्माण कर सकें। एक शिक्षित और नैतिक समाज ही प्रगति की राह पर चलता है।
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