माँ हूँ मैं – सलमा की कहानी"
गाँव का नाम था फकीरपुर। हर घर में या तो मजदूरी होती थी या सुबह की अज़ान और आरती साथ-साथ गूँजती थी। उसी गाँव में एक विधवा माँ रहती थी — सलमा बी। उम्र साठ के करीब, लेकिन चेहरे पर कुछ ऐसा तेज़ कि लगता जैसे इम्तिहान को आज भी आँख में आँख डालकर देख सकती हो।
उसका बेटा रामिज — जवान, मेहनती, और गाँव का सबसे सीधा लड़का। खेतों में काम करता, नमाज़ भी पढ़ता, लेकिन ज़माना कभी-कभी सच्चाई से डरता है।
झूठा इल्ज़ाम
एक दिन गाँव में चोरी हुई — ठाकुर हरबंस लाल के घर से नक़द और ज़ेवर गायब। गाँव की पंचायत बैठी और बिना सबूत रामिज को चोर ठहरा दिया। क्यों? क्योंकि वो गरीब था, अकेला था, और सच्चाई का पल्लू थामे रहता था।
पुलिस आई, और बिना कोई सुनवाई के रामिज को जेल भेज दिया गया।
गाँव वाले चुप रहे।
माँ का तूफ़ान
सलमा बी तीन दिन तक बिना खाए-पीए थाने और कचहरी के चक्कर काटती रही। कोई वकील पैसे के बिना केस नहीं लड़ना चाहता था। लेकिन माँ ने हार नहीं मानी।
उसने कहा –
"मैं माँ हूँ, खुद को बेच दूँगी पर अपने बेटे की इज़्ज़त नहीं बिकने दूँगी।"
उसने सिलाई की मशीन गिरवी रखी, कानों की बालियाँ बेचीं, और एक सच्चे वकील को खोज निकाला – वकील दयानंद मिश्र जो सिर्फ सच्चाई के लिए लड़ते थे।
सबूत की खोज
सलमा खुद चप्पल घिसते हुए गाँव में गवाह ढूँढने निकली।
एक बूढ़ी औरत ने बताया —
"उस रात रामिज तो मेरे लिए दवा लेने गया था शहर। मैंने देखा था।"
दूसरे दिन उसी दवा की दुकान से सलमा ने बिल निकाला जिसमें तारीख और समय साफ लिखा था।
फिर मंदिर के पुजारी ने बताया —
"रामिज उस रात 9 बजे तक झाड़ू लगा रहा था। चोरी तो 8 बजे हुई थी।"
न्याय का सूरज
तीन महीने बाद — अदालत का फैसला आया।
"रामिज निर्दोष है। पुलिस ने बिना सबूत गिरफ़्तार किया। दोषियों की पहचान की जाएगी।"
लोगों की आँखों में पानी था। सलमा के चेहरे पर सबर की रौशनी थी।
जब रामिज जेल से निकला, तो सलमा ने बस इतना कहा —
"बेटा, बुराई को हराना है तो डरना नहीं, बल्कि लड़ना पड़ता है – माँ की तरह।"
अंतिम संदेश – माँ और मासूमों के लिए
"हर माँ के भीतर एक वकील, एक जज और एक योद्धा छिपा होता है।
जब उसका बच्चा निर्दोष हो, तो दुनिया की हर दीवार छोटी पड़ जाती है।
सलमा बी ने साबित किया —
माँ की ममता, अगर सच्चाई से जुड़ जाए, तो वो जेल की सलाखें भी मोम कर देती है।
यह कहानी हर उस माँ के लिए है जिसने कभी सच के लिए अकेले संघर्ष किया — और हर उस निर्दोष के लिए, जो बस चाहता है... इंसाफ।"
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