कहानी शीर्षक: "बिल के उस पार"
सफ़दर अली को अस्पताल में भर्ती हुए छः दिन हो चुके थे। लिवर संक्रमण ने शरीर को खोखला कर दिया था और अब आईसीयू की सफेद रोशनी में उनकी साँसें मशीनों पर टिक रही थीं। उनकी पत्नी ज़ेबा, बुर्के के नीचे थकी हुई आँखों और कांपते होंठों के साथ, रोज़ सुबह से शाम तक उसी बेंच पर बैठती थी—जहाँ उसकी दुआएं, डॉक्टरों की रिपोर्टों से ज़्यादा असर नहीं दिखा पा रहीं थीं।
ज़ेबा को ना इलाज की बारीकियाँ समझ आती थीं, ना मेडिकल टर्म्स, ना बिलों में छपे शब्द। मगर जो समझ आता था, वो था काग़ज़ पर लिखा आँकड़ा—Rs 2,83,000।
“बीबी, कल तक ICU की पेमेंट करनी होगी। नहीं तो केस जनरल वार्ड में शिफ़्ट करना पड़ेगा,” एक वार्ड बॉय ने कहा, मानो चाय की दुकान पर उधार याद दिला रहा हो।
ज़ेबा का दिल बैठ गया। उसके गले में अटका आँसू अब आँख से बह चला। वो सरकारी स्कूल में टीचर थी। महीने की तनख़्वाह का तीन गुना बिल एक हफ़्ते में? कहाँ से लाती?
उसने काले बैग में रखा मोबाइल निकाला, वो जो सफ़दर ने ईद पर तोहफ़ा दिया था। मदद के लिए सबसे पहले मस्जिद के इमाम साहब का नंबर लगाया।
“अल्लाह सहारा है, बहन। हम चंदा इकठ्ठा करेंगे,” कहकर फ़ोन रख दिया गया।
फिर ज़ेबा ने स्कूल की प्रिंसिपल को कॉल किया।
“हम स्कूल के व्हाट्सएप ग्रुप में डाल देते हैं, मगर ऑफिशियली कुछ नहीं कर सकते,” प्रिंसिपल ने कहा।
ज़ेबा ने अपनी आख़िरी उम्मीद के तौर पर वक़्फ़ बोर्ड की वेबसाइट खोली—कहीं से कुछ नहीं निकला।
अगले दिन, जब सफ़दर की हालत थोड़ी और बिगड़ी, डॉक्टर ने फिर कहा: “Ma'am, liver transplant ज़रूरी है… और इसका खर्च़ लगभग 18 लाख होगा।”
ज़ेबा ने वहीं कुर्सी पर बैठकर अपने हाथों में चेहरा छिपा लिया।
उसे याद आया—जब मोहल्ले में नया मॉल बना था, सब लोग घूमने गए थे। जब फ़ुटपाथ पर एक बुज़ुर्ग औरत बेहोश पड़ी थी, कोई नहीं रुका था।
“हमारा क्या जाता है?”
उस वक़्त ज़ेबा ने सोचा था…
अब उसे समझ आ रहा था।
· क्या हमारी मस्जिदें, मदरसे, और वक़्फ़ संपत्तियाँ वाक़ई ज़रूरतमंदों के लिए खुली हैं या सिर्फ़ इमारतों में तब्दील हो गई हैं?
· क्या मुस्लिम समाज ने स्वास्थ्य और आपातकालीन सहायता के लिए कोई ठोस व्यवस्थाएँ बनाई हैं?
· क्या हम सिर्फ़ दुआओं और तसब्बुओं तक सीमित रह गए हैं, जब किसी को इलाज के लिए हाथ पकड़ने की ज़रूरत होती है?
· क्या समाज में कोई "ज़ेबा" अकेली नहीं होनी चाहिए?
प्रश्न आपसे, हमसे, हम सब से:
"जब कोई बीमार होता है, क्या हम केवल संवेदना भेजते हैं, या समाधान भी?"
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
No comments yet.
Be the first to express what you feel 🥰.
Please Login or Create a free account to comment.