प्रस्तावना:
यह कहानी लखनऊ के हुसैनाबाद मोहल्ले में रहने वाले इम्तियाज़ मियाँ की है, जो रेलवे वर्कशॉप में फिटर के पद पर कार्यरत थे। उन्होंने अपने सीमित साधनों के बावजूद अपने तीन बच्चों—आरिफ़, नजमा, और सलीम—को सिविल सेवा में स्थापित करने का सपना देखा और उसे साकार किया।
इम्तियाज़ मियाँ की मेहनत और संकल्प
इम्तियाज़ मियाँ हर सुबह फज्र की नमाज़ के बाद काम पर निकल जाते थे। उनका जीवन सादगीपूर्ण था, लेकिन उनके दिल में एक बड़ा सपना था—अपने बच्चों को उच्च शिक्षा दिलाकर उन्हें समाज में एक सम्मानित स्थान दिलाना। उन्होंने अपने बच्चों को हमेशा ईमानदारी, मेहनत, और सेवा-भावना का पाठ पढ़ाया।
कभी ईद के नए कपड़े टाल दिए जाते, कभी चप्पलें कई साल तक चलतीं, लेकिन किताबों और कोचिंग की फ़ीस समय पर जमा होती। मोहल्ले वाले कहते, "क्या मिलेगा इन किताबों से? कोई दुकान खोल लेते।" मगर इम्तियाज़ मियाँ मुस्कुराकर कहते, "मेरी दुकान है मेरी औलाद की तालीम।"
बच्चों की शिक्षा और संघर्ष
आरिफ़ ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से स्नातक किया। नजमा ने जामिया मिल्लिया इस्लामिया में पढ़ाई की और सलीम ने इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से। पढ़ाई आसान नहीं थी। न खाने का समय तय था, न सोने का। लेकिन एक चीज़ तय थी—अब्बू का भरोसा।
नजमा को अक्सर कोचिंग में ताने सुनने पड़ते, "तुम्हारी जगह कोई लड़का ले लेता तो ज़्यादा समझदारी होती।" लेकिन हर ताने के जवाब में अब्बू की एक बात याद आती: "बेटी, तुम्हारा नाम जब अफसरों की लिस्ट में आएगा, तो सबकी ज़ुबानें खामोश हो जाएंगी।"
सफलता की सुबह
साल 2022 की एक सुबह, जब UPSC का रिज़ल्ट आया, आरिफ़ को IAS मिला, नजमा को IPS और सलीम ने IRS में जगह बनाई। इम्तियाज़ मियाँ ने सजदा किया, मगर आंखों में आंसू थामे नहीं थम रहे थे।
पूरे मोहल्ले में लड्डू बांटे गए। मस्जिद के इमाम ने कहा, "इम्तियाज़ भाई ने साबित कर दिया कि मेहनत और नियत अगर साफ हो तो मुकद्दर खुद रास्ता बनाता है।"
समाज में पहचान और प्रेरणा
उनकी सफलता ने न सिर्फ़ उनके परिवार, बल्कि पूरे समुदाय के लिए उम्मीद की एक लौ जला दी। जो लोग तालीम से दूर भागते थे, अब अपने बच्चों को कोचिंग भेजने लगे। इम्तियाज़ मियाँ को लोग अब्बू नहीं, "रॉले मॉडल" कहने लगे।
भाइस्लाम में मेहनत और ईमानदारी का महत्व
इस्लाम में मेहनत और ईमानदारी को विशेष महत्व दिया गया है। हदीस में है: "जो अपने हाथों से कमाता है, वह सबसे अच्छा कमाता है।" (सुनन इब्न माजा: 2138)
कुरआन में कहा गया है: "और यह कि इंसान को वही मिलेगा जिसके लिए उसने मेहनत की है।" (सूरह अन-नज्म, 53:39)
इम्तियाज़ मियाँ ने यही उसूल अपने बच्चों में उतारे, और वही उसूल उन्हें बुलंदियों तक ले गए।
मुस्लिम युवाओं के लिए प्रेरणादायक प्रश्न
- क्या हम अपने जीवन में मेहनत और ईमानदारी को प्राथमिकता देते हैं?
- क्या हम अपने बच्चों को उच्च शिक्षा और सिविल सेवा जैसी प्रतिष्ठित सेवाओं के लिए प्रेरित करते हैं?
- क्या हम अपने समाज में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए प्रयासरत हैं?
- क्या हम इस्लाम के असल मूल्यों—न्याय, ईमानदारी और इंसानियत—को अपने पेशेवर जीवन में उतारते हैं?
- क्या हमारे घरों में तालीम की अहमियत है या महज़ तालीम की बातें हैं?
निष्कर्ष:
इम्तियाज़ मियाँ की कहानी हमें सिखाती है कि सीमित साधनों के बावजूद, अगर इरादे मजबूत हों और मेहनत ईमानदारी से की जाए, तो कोई भी सपना साकार हो सकता है। उनके बच्चों की सफलता इस बात का प्रमाण है कि इस्लाम में मेहनत, ईमानदारी, और सेवा-भावना को सर्वोपरि माना गया है।
प्रेरणादायक उदाहरण:
- परवीन तल्हा: भारत की पहली मुस्लिम महिला जिन्होंने भारतीय राजस्व सेवा में प्रवेश किया और बाद में यूनियन पब्लिक सर्विस कमीशन की सदस्य बनीं।
- अदीला अब्दुल्ला: केरल की पहली मुस्लिम महिला जिन्होंने सिविल सेवा परीक्षा पास की और विभिन्न उच्च पदों पर कार्य किया।
· शाह फैसल (IAS): जम्मू-कश्मीर से पहले UPSC टॉपर।
- अदीला अब्दुल्ला और परवीन तल्हा जैसी महिलाएं, जिनका ज़िक्र आपकी कहानी के अंतिम भाग में किया गया है, पूरी तरह से वास्तविक लोग हैं।
समाप्ति:
इम्तियाज़ मियाँ की कहानी हर उस माता-पिता के लिए प्रेरणा है जो अपने बच्चों के उज्ज्वल भविष्य का सपना देखते हैं। यह कहानी उन मुसलमानों को भी आवाज़ देती है जो संघर्ष कर रहे हैं—कि अगर नियत साफ हो और मेहनत सच्ची, तो रास्ता ज़रूर निकलता है।
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