गांव और इंसाफ़
एक छोटे से गांव में, जहां हिंदू और मुसलमान बरसों से प्रेम और सौहार्द से रहते थे, अचानक एक तूफ़ान आ गया। देश के किसी और हिस्से में एक आतंकवादी हमला हुआ था, और उस हमले की वजह से गांव का माहौल बिगड़ने लगा। कुछ कट्टरपंथी और नासमझ ग्रामीण इकट्ठे हुए और गांव के मुस्लिम परिवारों को धमकाने लगे।
उनका गुस्सा इस हद तक बढ़ गया कि उन्होंने मुस्लिम परिवारों को उनके घर खाली करने के लिए कहा। वे उन्हें गंदी गालियां देते और उन पर आतंकवादियों का समर्थक होने का आरोप लगाते। गांव के कुछ मुस्लिम परिवार, जो बरसों से वहां शांति से रह रहे थे, डर और अपमान से सहम गए।
उन्हीं परिवारों में से एक बूढ़ी मुस्लिम महिला, सलमा बेगम, अपनी बहू और पोतों के साथ रहती थीं। उनके पति का कई साल पहले देहांत हो चुका था और यही गांव उनका घर था। जब पड़ोसियों का झुंड उनके दरवाजे पर आया और उन्हें धक्के मारकर बाहर निकालने की कोशिश करने लगा, तो सलमा बेगम बुरी तरह डर गईं।
तभी, गांव के एक बुद्धिमान और सम्मानित हिंदू व्यक्ति, पंडित रामलाल, अपनी पत्नी सीता देवी के साथ वहां पहुंचे। पंडित रामलाल ने भीड़ को शांत करने की कोशिश की। उन्होंने कहा, "यह तुम लोग क्या कर रहे हो? क्या हो गया है तुम्हें? सलमा बेगम और उनके परिवार ने कभी किसी का बुरा नहीं किया। ये बरसों से हमारे साथ रह रहे हैं।"
गुस्साई भीड़ में से एक आदमी चिल्लाया, "लेकिन वे मुसलमान हैं! और मुसलमानों ने ही वो हमला किया है!"
पंडित रामलाल ने गहरी सांस ली और बोले, "क्या तुम समझते हो कि अगर देश के किसी कोने में कोई बुरा काम करता है, तो उसके धर्म के सभी लोग दोषी हो जाते हैं? अगर ऐसा है, तो सोचो... हमारे देश के कितने ही ऐसे हिंदू हैं जिन्होंने भ्रष्टाचार किया है, देश के भेद बेचे हैं या बुरे काम किए हैं। क्या उन सबकी वजह से पूरे हिंदू समुदाय को दोषी ठहराया जा सकता है? क्या हर हिंदू को उसके घर से निकाल देना चाहिए?"
उनकी पत्नी, सीता देवी, भी आगे आईं और कोमल लेकिन दृढ़ स्वर में बोलीं, "यह कैसी बात कर रहे हो तुम लोग? सलमा बेगम ने तुम्हारे खेतों में काम किया है, तुम्हारे बच्चों को प्यार दिया है। जब तुम्हारे घर में कोई मुसीबत आई, तो ये सबसे पहले मदद के लिए दौड़ी थीं। आज तुम इनके साथ ऐसा बर्ताव कर रहे हो?"
सीता देवी ने आगे कहा, "अगर कोई मुसलमान आतंकवादी है, तो वह बुरा इंसान है, आतंकवादी है। उसका धर्म नहीं। उसी तरह, अगर कोई हिंदू बुरा काम करता है, तो वह बुरा इंसान है, अपराधी है। उसका धर्म दोषी नहीं है।"
पंडित रामलाल ने अपनी बात जारी रखी, "आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता। आतंकवादी सिर्फ़ इंसानियत के दुश्मन होते हैं। हमें मिलकर ऐसे बुरे लोगों का विरोध करना चाहिए, न कि आपस में नफ़रत फैलानी चाहिए। सलमा और उनका परिवार हमारे गांव का हिस्सा हैं, और हम उन्हें कहीं नहीं जाने देंगे।"
उनकी बातों का गांव के कुछ समझदार लोगों पर असर हुआ। उन्हें एहसास हुआ कि गुस्से में और डर में वे गलत कर रहे थे। धीरे-धीरे भीड़ शांत होने लगी। पंडित रामलाल और सीता देवी ने सलमा बेगम और उनके परिवार को सहारा दिया और उन्हें भरोसा दिलाया कि पूरा गांव उनके साथ है।
उस दिन, गांव के लोगों को एक बड़ा सबक मिला। उन्हें समझ आया कि किसी एक बुरे व्यक्ति के काम के लिए पूरे समुदाय को दोषी ठहराना अन्याय है। धर्म के नाम पर नफ़रत फैलाना और लोगों को डराना गलत है। सच्ची इंसानियत और समझदारी इसी में है कि हम एक-दूसरे का सम्मान करें और मुश्किल समय में एक-दूसरे का साथ दें।
सबके लिए सबक:
- किसी एक व्यक्ति के गलत काम के लिए पूरे समुदाय को दोषी ठहराना अन्याय है।
- धर्म के नाम पर नफ़रत फैलाना और भेदभाव करना समाज के लिए हानिकारक है।
- हमें मुश्किल समय में एक-दूसरे का साथ देना चाहिए और इंसानियत को सबसे ऊपर रखना चाहिए।
- बुद्धिमान और समझदार लोगों को आगे आकर गलत विचारों का विरोध करना चाहिए और शांति और एकता बनाए रखने में मदद करनी चाहिए।
- आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता, यह मानवता के खिलाफ अपराध है और हमें मिलकर इसका मुकाबला करना चाहिए।
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