fazal Esaf
fazal Esaf 28 May, 2025
"इबादत की स्याही"
साफा बाँधकर, जुनैद हर शाम मस्जिद की दीवार से पीठ टिकाकर लिखता था — शायरी नहीं, दुआओं की शक्ल में अपने जले हुए ख़्वाब। लोग कहते, “किसने देखा है किताबों से रोज़ी आती है?” वो मुस्कुराकर जवाब देता, “क़लम तो अल्लाह का नाम है — जब लिखता हूँ, तो इबादत होती है।” एक रात, बिजली चली गई। अँधेरे में जुनैद ने मोमबत्ती जलाने की बजाय माँ की हथेली थाम ली और कहा, “रौशनी यहाँ से आती है।”

Paperwiff

by fazalesaf

28 May, 2025

कभी-कभी सबसे रौशन अल्फ़ाज़ अँधेरे वक़्तों में ही लिखे जाते हैं। (Sometimes, the brightest words are written in the darkest hours.)

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