देवभूमि में सन्नाटा

मनुष्य जब सीमाओं को पार कर जाता है तो नदियाँ भी सीमाएँ तोड़ देती हैं।

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Deepali sanotia
Deepali sanotia 04 Jun, 2021 | 1 min read

उत्तराखंड की नदियों ने

खूब मचाया शोर हैं,

देवभूमि में छा रहा

सन्नाटा घनघोर है।

 

कुदरत क्यो मचा रही

रह-रह कर उत्पात है?

क्यो मानव नहीं कर रहा

इस डर को आत्मसात है?

 

टूट चुके हैं बँधन तेरे

अब कुदरत ने तुझे घेरा है,

सबक सिखाने, तुझे छकाने

ये नदियों का ही तो फेरा है।

 

शक्ति पाने की चाहत में

उस शक्ति को तू भूला है,

देख दंभ अपनी रचना का

वो शक्ति आग बबूला है।

 

आँख खोल तू, संभल जा अब भी

शक्ति तेरे साथ है,

तेरा लालन करती, तुझे उठाती

ना रहता तू अनाथ है।

 

तू योग्य है सब अच्छा कर

ये तेरी ही कर्मभूमि है,

तेरा ताप हरने, तुझे मुक्त करने

ये तेरी ही देवभूमि है...

ये तेरी ही देवभूमि है।

 

(स्वरचित एवम् मौलिक)

 

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Comments

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  • Charu Chauhan · 4 years ago last edited 4 years ago

    बहुत खूब ?

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