रे मनुज

इस धरा पर मनुष्य से अक्लमंद दूसरा कोई जीव नहीं है। फिर भी अपनी मूर्खतापूर्ण लालसा के वशीभूत होकर मनुष्य स्वयं को मिले उपहार प्रकृति की अवहेलना करता है।

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Deepali sanotia
Deepali sanotia 12 Aug, 2022 | 0 mins read
nature # humen being #hindipoetry

रे मनुज तू धरा का अनुज है,

जिसकी गोद में पल कर,

जिसकी छाती को छल कर,

तुने रस पान ही किया है।


तू निर्बुद्धि, अबोध ये धरा है,

इसकी कोख में रह कर,

इसकी आंतों को कस कर,

तू अपने दंभ में जिया है।


रे मनुज तू रुदन कर,

अपने कृत्य को दफ़न कर,

ऋण मुक्त कर ख़ुद को,

तुने मद अभिमान का पिया है।


सूखता नीर, धरा को लगी पीर है,

तुझे दण्ड मिले संकल्प है,

तू धरा के लिए विकल्प है,

तू किस सोच में जिया है।


रे मनुज तेरे संचार ने,

तेरे स्वार्थी व्यवहार ने,

हर एक लघु जीव का भी

देख, त्राण हर लिया है।


टूटते पहाड से,

सरकते पठार से,

सविता की आंच से,

तूने अब तक सबक़ नहीं लिया है।


अनल लिपटे जंगल,

झुर्रीदार सूखती धरा,

ज़हर उगलती नालियां,

देख, तूने क्या कर दिया है?

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स्वरचित एवं मौलिक

दीपाली सनोटीया






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Deepali sanotia

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Comments

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  • Sushma Tiwari · 2 years ago last edited 2 years ago

    अद्भुत! 🙏

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