शब्दों की खेती!! अप्रतिम विचार है।
कितने ख़ास हो जाते हैं हम इन शब्दों का साथ पाकर। इस पूरी धरती पर अभिमान के साथ विचरण करते हैं, कयोंकि ये शब्द हमे सबसे श्रेष्ठ होने का एहसास देते हैं। शब्द पल-पल, डगर-डगर बदल जाते हैं, पर समानता रहती है भावों में।
मगर क्या हमने कभी सोचा हैं कि यदि ये शब्द सिर्फ़ हमारी जागीर ना होकर सभी सजीव-निर्जीव का गहना होते तो!!!
कैसा होता दृश्य??
क्या हम हर बेज़ुबान जीव या वस्तु को अपनी मिल्कियत समझ पाते?? ये प्रकृति जिसने हमें बस दिया ही दिया है, क्या हम उसका इतना अंधाधुंध दोहन इतनी लापरवाही के साथ कर पाते??
नहीं ना।
ये धरती, ये आकाश, ये सूर्य, चंद्रमा, तारें ग़र शब्दों से लबरेज़ होते तो कहानी कुछ और ही होती।
अरर्र्र्र्र्रर....ये क्या!!! मेरे ज़हन में कुछ शब्दों की रेल-पेल चल रही है जो मुझे एक परिवार की अनोखी दुनिया में ले जा रही है।
इस परिवार को तो हम युगों-युगों से जानते है। चलिए चलते हैं, जल्द ही आप भी जान जाएंगें।
इस परिवार में कुछ भाइयों की एक बहन है।
'दीदी की हालत बड़ी नाज़ुक है। हम सब भाइयों को बिना विलंब किये चलना चाहिएं। दीदी की देखभाल हमें ही करनी होगी। देखो ना, दीदी के लाड़ले बच्चे ने दीदी की क्या हालत कर दी है। सुन रहे हो ना सब!' गुरु ने अपने कमरे से अपने भाइयों को ज़ोर से आवाज़ लगाई।
'हाँ, देखो ना...दीदी को कितना नाज़ था आपने इस समझदार बच्चे पर।' बुध ने अपने कमरे से झाकते हुए कहा।
'मेरी दीदी का दम घुट रहा है, हमे चलना चाहिएं।' नन्हे शनी ने रोते हुए कहा।
'अरे! दीदी का बच्चा बहुत ही उदंड है। कई बार मुझे भी परेशान करता रहता है। ना जाने उसे क्या चाहिए?
दीदी ने उसकी हर ख़्वाहिश पूरी की है, पर वो है कि उसका मन भरता ही नहीं है!'
मंगल ने चिंतित होकर कहा।
मंगल की बात सुन कर शुक्र ने भरे गले से कहा,
'नहीं..नहीं, हमे अब चलना चाहिएं। हमारी बहन की हालत बहुत गंभीर है। कितनी शीतल और शांत है हमारी बहन। सबके बारे में सोचती है, पर अपनी ही संतान से हार रही है। हमें अब बिना विलंब किए चलना चाहिएं।'
नन्हे शनी ने मौका मिलते ही अपनी दीदी को सबके आने की सूचना दे दी।
आई. सी. यू. के बेड पर लेटी उन सबकी प्यारी दीदी ने झट अपने भाइयों के नाम पैगाम भिजवाया,
मेरे प्यारे भाइयों,
मैं जानती हूँ कि तुम सब मुझसे बहुत प्यार करते हो। पर, मैं चाहती हूँ कि तुम सब यहाँ ना आओ। मैं तुम सभी के स्वभाव जानती हूँ। मेरे बच्चें तुम सबके स्वभाव को सह नहीं पाएंगें। मेरे एक बच्चे की गलतियों की सज़ा मेरे बाकी के बच्चों को भी मिलेगी। वो सब तो निर्दोष हैं। मैं ही देखती हूँ कि मुझे इस लाड़ले के साथ क्या करना है? इस पर मैनें खूब प्यार बरसाया है। मेरे अतिरिक्त लाड़-प्यार का ही इसने फ़ायदा उठाया है। मैं खुद इसे सुधरने का एक मौका देना चाहती हूँ। अगर, अबकी बार ये नहीं सुधरा तो मैं तुम सबको यहाँ आने से नहीं रोकूँगी।
तुम्हारी प्यारी दीदी
पृथ्वी
अपनी दीदी का विशाल हृदय देख सभी भाइयों की आँखें नम हो गईं।
गुरु ने कहा, "धन्य है हमारी जीवनदायिनी पृथ्वी दीदी।"
हम अब नहीं सुधारेंगे, तो फ़िर कब सुधरेंगें।
स्वरचित एवम् मौलिक
दीपाली सनोटीया
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