सारा गरम-गरम आलू के पराठें खा रही थी कि तभी पास बैठी अम्माजी ने टोका, "बस-बस कितना खायेगी? कम खाना लड़कियों का गुण होवे है।"
सारा का मुँह छोटा-सा हो गया।
तभी राहुल भी खेल कर आ गया और ज़ोर से चिल्लाया, "माँ, मुझे भी भूख लगी है।"
रसोईघर से माँ ने ऊंची आवाज़ में कहा, "पहले हाथ-मुँह धो लो।"
राहुल खाना खाने बैठ गया। देखते ही देखते राहुल छ: पराठें खा गया।
सारा ने अम्माजी को कहा, "अम्मा, इसको भी तो मना करो। देखो कितने पराठें ठूँस रहा है।"
"अरे! क्यों टोक रही है उसको? खाने दे...डट कर खाना तो लड़कों का गुण होवे है।"
अम्माजी ने सारा को गुस्से से देख कर कहा।
रसोईघर घर में पराठे बना रही दोनों की माँ सब सुन रही थी। झट पराठे की थाली ले आई और सारा की थाली में दो पराठें रख दिएं।
सारा ने तिरछी नज़र से अम्माजी को देखा।
"खा ले, तुझे आलू के पराठें पसंद है ना...डट कर खा। अपनी इच्छाओं को मारना अवगुण होता है।"
दोनों की माँ ने अम्माजी को घूरते हुए कहा।
स्वरचित
दीपाली सनोटीया
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
Wahhh!
सामाजिक सोच कमोबेश ऐसी अब भी है
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