दरख़्त

पिता एक दरख़्त है।

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Deepali sanotia
Deepali sanotia 02 Jul, 2022 | 1 min read

वो दरख़्त जिसके इर्द-गिर्द बचपन बीता था, वो आज भी लहलहा रहा है मेरे गाँव में। वो तब भी और आज भी मेरे बाबूजी जैसा ही है। सबको सूकून, आश्रय और त्राण देने वाला। पिता एक दरख़्त ही तो होते है जिनके होने से धूप भी पिघल जाती है और बारिश की बौछार बन कर हमे तरबतर कर जाती है। हम झूमती टहनियों से शोर मचाते हैं और उस दरख़्त की जड़े हमे बाँधे रखती हैं।

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