"आरु ssssss चलो नीचे आ जाओ ....खाना तैयार है।"
टेबल पर प्लेट रखते हुए रीमा ने आरु को आवाज़ लगाई।
"आरु ssssss आरु ssssssss दरवाज़ा बंद कर के रखते हैं, ये दरवाजें ही हटा देने का मन करता है अब तो.....
मेरा मोबाइल कहाँ है!", रीमा ने मोबाइल ढूँढ़ते हुए बड़बड़ाया।
चिल्लाते-चिल्लाते रीमा का गला सूख गया। गला साफ़ करते हुए झट मोबाइल में एक नंबर डायल किया।
"हैलो, क्यो बेटा, मेरी आवाज़ नहीं आ रही है क्या?"
"क्या है मम्मा?"
"बेटा नीचे आ जाओ, खाना परोस दिया है।"
"आ रही हूँ मम्मा बस पांच मिनट।"
पूरे पंद्रह मिनट हो गएँ आरु नहीं आई। खाना ठंड़ा हो गया। परेशान होकर रीमा ऊपर गई और आरु के कमरे का बंद दरवाज़ा खड़-खडाया।
दरवाज़ा खोलते से ही आरु: "मम्माssss शांति बनाए रखोंsss कहा ना आ रही हूँ। जाओ, नहीं खाना मुझे खाना।"
आरु ने रीमा के मुँह पर ज़ोर से दरवाजा बंद कर दिया।
आजकल हर घर की यही कहानी है। सचमुच हम माँओ को और कोई काम नहीं है। बहुत मजबूत होती हैं हर माँ। रीमा ने फ़िर दरवाजा खड़-खडाया। आरु ने खट से दरवाजा खोला, धम्म-धम्म करके नीचे चली गई। पूरा कमरा बिखरा हुआ था। रीमा ने मौका पाकर पूरा कमरा व्यवस्थित किया। दरवाजे को एक चपत लगाई और नीचे आ गई। आरु को खाना खाते देख चैन की सांस ली और अपने काम में लग गई। टीनएजर्स को टेकल करना सचमुच बहुत टेढ़ी खीर है।
आज पूरे छह महीनें हो गएँ हैं आरु को हॉस्टल गए, अब उसका कमरा हमेशा साफ़ ही रहता है। रीमा सुबह से लगी है तैयारियों में, क्योकिं छुट्टियों में आरु आ रही है। रीमा ने राधा से कह दिया कि वो अगले दिन जल्दी आ जाए ताकि आरु के आने से पहले घर के सारे काम निबट जाएं।
राधा बोले बीना नहीं रह सकी,"क्या करोगे भाभीजी इतनी सफ़ाई करवा कर? आरु दीदी तो आते से ही सब उथल-पुथल कर देगी। आपको जितनी ज्यादा सफ़ाई पसंद है आरु दीदी उतनी ही ज्यादा अस्त-व्यस्त।"
रीमा को उस वक्त राधा की बात अच्छी नहीं लगी,पर वो कह तो सही रही थी।
अगले दिन आरु आ गई। आते से ही रीमा के गले लग गई,"ओ मम्मा आई मिस्ड यू ।"
रीमा की आँखें भर आईं।
आरु ने रीमा के गले में झूमते हुए कहा," ओ मेरी सेंटी मम्मा, शुरू हो गया आपका इमोशनल अत्याचार। मम्मा मैं अपने कमरे में जा रही हूँ, मैंने अपने कमरे को बहुत मिस किया है। मेरा कमराssssss "
गदर मचाते हुए आरु अपने कमरे में चली गई।
पीछे से रीमा कहती रह गई,"अरे कुछ खा तो ले फ़िर जा ऊपर।"
"नहीं मम्मा, पहले मैं नहाउंगीssss "
करीब आधे घण्टे बाद रीमा ऊपर गई, उसने सोचा कि अब तक तो आरु ने पूरा कमरा बिखेर दिया होगा। उसका सामान भी अनपैक करना था। आरु नहा रही थी। रीमा ने कमरे में नज़र घुमाई। पूरा कमरा साफ़-सुथरा चमक रहा था। सूटकेस भी अलमारी के ऊपर रखी थी। पलंग पर आरु का हैंडबैग रखा था। रीमा ने उसे प्यार से छुआ और वापस रख दिया। रीमा खिड़की का पर्दा ठीक से बंद करने के लिए उठी और कुछ पल वही खड़े होकर बाहर निहारने लगी, तभी आरु पीछे से आकर रीमा से लिपट गई और कहने लगी,
"मम्मा, कितना मिस किया मैंने अपको; मम्मा मैं तो पूरी की पूरी आपकी ही कॉपी हूँ। मम्मा, पता है जैसे आप यहाँ मुझसे परेशान रहती थी वैसे ही वहाँ हॉस्टल में मैं अपनी रूममेट से परेशान रहती हूँ। वो रूम को बहुत गंदा रखती है। जब भी मुझे आपकी याद आती, ना जाने कैसे मेरे हाथ आपकी ही तरह झट-झट रूम साफ़ करने में जुट जातें। पूरे हॉस्टल में मेरा रूम सबसे साफ़ रहता है। हमारी हॉस्टल इनचार्ज सबसे मेरी खूब तारीफ करती, तब मुझे आप पर बहुत गर्व होता है। ये सब मैंने आपसे ही सीखा हैं। आप मेरी रोल मॉडल हो।"
रीमा ने आरु के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा," मेरा प्यारा बच्चा, आइ एम प्राॅउड ऑफ़ यू, अब चलो कुछ खा लो।"
हम बड़े हमेशा चाहते हैं कि हमारे बच्चों में अच्छी आदतें हो, पर हम अपना स्वयं का अवलोकन नहीं कर पाते। क्या अच्छी आदतें हमारी दिनचर्या का हिस्सा हैं?
ये बच्चें हमें ही देख कर, सुन कर बड़े होते हैं। प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से हमारा ही अवलोकन करते रहते हैं और एक दिन हमारा ही अनुसरण करने लग जाते हैं। बच्चों में बदलाव हममें बदलाव से ही आता है और आएगा भी, हम उनके रोल मॉडल जो होते हैं।
स्वरचित एवम् मौलिक
दीपाली सनोटीया
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