सोने की चिडिया मेरा देश हुआ करता था
स्मृद्ध संस्कृति सुनहरी सभ्यता इसका भेस हुआ करता था
जहाँ धर्म भी सुनहरा माटी भी सुनहरी
घर-घर में चमकते सोने का प्रवेश हुआ करता था
कभी सोने की चिडिया मेरा देश हुआ करता था...
हम अपने देश को भारत माँ कहते हैं, एक माँ जो कभी सोने की चिडिया कहलाती थी। एक स्मृद्ध सभ्यता जिसकी कल्पना करते ही सब कुछ सुनहरा ही जान पड़ता है, आँखों में पीली सी चमक कौंध जाती है। यहाँ हर त्योहार कुछ खास होता है और उसे खास बनाने में सोने का योगदान सदियों से चला आ रहा है।
सोना सदा से ही भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक मजबूत आधार स्तंभ रहा है। भारत में सोना धन और बचत के भंडार के रूप में कार्य करता है और इसका पारम्परिक व धार्मिक महत्व है। भारत पूरी दुनिया में सोने का सबसे बड़ा आयाताक देश है। इसलिए जब भारत की इम्पोर्ट वैल्यू बढ़ती है तब नेट एक्सपोर्ट वैल्यू घट जाती है और इसके कारण जी डी पी में कमी आती है। चूकी सोना बहुलता में आयात किया जाता है सोने के उपभोक्ता भारतीय मुद्रा को सोने में खर्च करते हैं वो भी विदेशी मुद्रा के मानक में (मुद्रा विनिमय)।
सोने के लिए भारतीयों का प्रेम किसी से छुपा नहीं है, अनुमानों के अनुसार भारत में लगभग 23,000 से 24,000 टन सोना है, इसमें से ज़्यादातर घरों की अलमारियों में बंद है।
रत्न और आभूषण उद्योग का देश की कुल GDP में करीब 7% योगदान है। कुल मर्चेंडाइज़ एक्सपोर्ट में इसका हिस्सा 15.71% है। देश के जेम्स और जुलरी सेक्टर का ग्लोबल खपत में करीब 29 फीसदी योगदान है।
वर्तमान में भारत में भौतिक सोने की खरीद के लिए मानक मूल्य 10 ग्राम है, जिसे आमतौर पर 'तोला' कहा जाता है। भौतिक दुकानों के माध्यम से हम इसे खरीद सकते हैं, लेकिन हम जिस रिटेलर से खरीद रहे हैं यह उस पर निर्भर करता है कि वो शुद्ध है या नहीं। हर विक्रेता अपनी लागत, प्रशासनिक लागत और मार्क अप के आधार को जोड़ कर अलग-अलग मूल्य निर्धारित करता है। शुद्धता एक बड़ी चिंता है। भौतिक सोने को सुरक्षित रखने के लिए लॉकर में रखते है जिसका बैंक द्वारा वार्षिक शुल्क लिया जाता है। इसके बावजूद सोने की सुनहरी पीली चमक युगों-युगों से निगाहों का केंद्र रही है।
सोने के भाव में तरलता होने के कारण सोने का निवेश व धन संचय में उपयोग किया जाता है। स्टॉक्स, बॉण्ड, रियल इस्टेट प्रॉपर्टी की तरह सोने को भी आसानी से तरल मुद्रा में परिवर्तित किया जा सकता है इसलिए वित्तिय संपदा के रूप में हर वर्ग के लोगों द्वारा सोने का चयन किया जाता है,चाहे गरीब हो या अमीर। आभूषणों की चाहत और कीमतों में लगातर बढ़ोतरी के कारण सोना हमेशा से ही आकर्षण का केंद्र रहा है।
1977 के पहले गोल्ड स्टैंडर्ड सिस्टम ऑफ़ एक्सचेंज रेट था जिसमें हर देश को अपनी मुद्रा गोल्ड की टर्म में डीफ़ाइन करनी होती थी जिसके कारण एक देश की मुद्रा का मानक दूसरे देश की मुद्रा के मानक में स्थिर था। हर देश ने अपनी मुद्रा को गोल्ड की यूनिट दी थी। जैसे-
1UK £=4 gm. gold
1US $=2 gm. gold
1£=2$
डॉलर और पौंड में विनिमय दर 1:2 थी। लेकिन 1977 से इसे फॉलो करना बंद कर दिया गया, क्योंकि सोने की मांग बढ़ गई थी, पर पूर्ति नहीं हो पा रही थी। इतना सोना था ही नहीं कि मुद्रा को तृप्त कर सके। भौतिक सोने की आवक कम थी।
वर्तमान में भी वस्तुस्थिति वैसी ही है। सोने की आवक कम है। खनन के कारोबार ने प्रकृति के परिवार में खलल डाल दिया है।धरती का सीना और कितना छलनी करेंगे हम, पर्यावरण और संपूर्ण इको सिस्टम के लिए ये घातक है।
जब भौतिक धातु की कमी सी जान पड़ती है, तब मात्र एक ही पर्याय रह जाता है वो है डिजिटल गोल्ड में निवेश। हम भारतीयों को नई तकनीकी को अपनाना होगा। ऐसी तकनीक जो सोने को बहुत आसान, सुरक्षित और लागत प्रभावी बनाती है।
डिजिटल गोल्ड के रूप में खरीदे जाने वाली प्रत्यैक इकाई की ग्यारंटी 99.9% शुद्धता की होती है, जो शुद्धता के उच्चतम स्तर पर है।
सोने की मांग हमेशा से ही मजबूत और स्थाई रही है। इसकी मांग अच्छे और बुरे दोनों समय बनी रहती है। सोने को हमेशा से ही एक भरोसेमंद, सुरक्षित और भव्य संपदा के रूप में देखा जाता रहा है। भारतीय अर्थव्यवस्था में सोने का आर्थिक योगदान है। यदि सोने को अधीक प्रभावशाली तरीके से मुद्रिकृत किया जाता तो इसके आयात को कम किया जा सकता था।
जरूरत जागृत होने की है। ये नया भारत है, यहां अब हम सोने में रोज़ ही निवेश कर सकते हैं। बूंद-बूंद से सागर भरता है तो क्यों ना आज ही से श्री गणेश कर ले।
स्वरचित एवम् मौलिक
दीपाली सनोटीया
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