जागो मोहन प्यारे

It's a time to think about our duties towards environment. If not now, when?

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Deepali sanotia
Deepali sanotia 20 Nov, 2022 | 1 min read

जागो किसानों जागो

ना जलाओ ये पराली

हो रही दु:खी हवा

क्यों अनुसरण में है ये प्रणाली

कब आएगी हवाओं से

सुकून भरी खबर?

कि भर रही है प्राणवायु

स्वच्छ हो रही है हर ड़गर।


जागो उद्यमी जागो

ना छोड़ो फ़िज़ाओं में ज़हर

रो रही हैं हवाएँ

तुम्हारी चिमनियों ने ढाया हैं कहर

क्या अपना नहीं सकते

कोई अन्य विकल्प?

भागीदार हो अर्थव्यवस्था के

तो क्यों लेते नहीं नया संकल्प?


जागो राहगीरी करने वालों जागो

ना उड़ाओ धुँआ

ये दम घोटने वाला है कुँआ

क्यों नहीं अपनाते

सेहत भरा उपाय?

नाप लो दूरियां चलकर

थोड़ा-बहुत सांझा मिलजुलकर

वाहनों का ना जुलूस निकालों

सार्वजनिक वाहनों के उपयोग की आदत डालो।


जागो नागरिकों जागो

शुरुआत करो घर से

अपनाओ नैसर्गिक पदार्थों को

बनाओ दूरियां रसायनों से

क्या बना नहीं सकते

हम शुद्ध वातावरण?

बनकर थोड़ा समझदार

कर नहीं सकते क्या प्रदूषण का हरण?


जागो मोहन प्यारे जागो

कैद हो गई थीं साँसें

विषाणु ने मलीन कर दी थी हर भोर

कैसे भूल गए तुम

वो मुश्किलों भरा दौर?

प्राणवायु ही बिकाऊ हो चली थी

घरों में बंद ज़िदंगी उबाऊ हो चली थी

संवेदनाएँ भी मूक हो गई थीं

ख़ुद ही में सिमटने को मजबूर हो गई थीं।


स्वरचित एवं मौलिक

दीपाली सनोटीया








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