प्रकृति और मैं

प्रकृति और मैं

Originally published in hi
Reactions 0
380
Deepali sanotia
Deepali sanotia 09 Oct, 2021 | 1 min read

मैं और प्रकृति क्या जुदा हैं?

मेरा होना ही तो प्रकृति है

प्रकृति है तो ही तो मैं हूँ

ये प्रकृति मेरे लिए माँ का आँचल है

इसके उष्ण सीने का दूध पीकर ही तो मैं बढ़ा हूँ

भूल करता हूँ मैं जब मैं सिर्फ़ मैं रहता हूँ

मेरी भूल को सुधारना भी तो प्रकृति है

ये प्रकृति पिता की फटकार है

इसके प्रलय से मैं थरथराता हूँ

फ़िर भी इसी को दुख दिए जाता हूँ

मैं और प्रकृति क्या जुदा हैं?

मेरा मैं का दंभ मुझे गर्त में धकेलता है

मुर्छित सा पड़ा रहता हूँ मैं

ये प्रकृति ही मुझे उठाती है

गिर कर उठने का पाठ भी तो यही पढ़ाती है

मेरा होना ही तो प्रकृति है

प्रकृति है तो ही तो मैं हूँ

प्रकृति और मैं क्या जुदा हैं?

मैं जन्म लेता हूँ, पलता हूँ,

फ़िर एक दिन नष्ट भी हो जाता हूँ

प्रकृति हर हाल में मुझे संभालती है

मैं न होकर भी यहीं कहीं होता हूँ

और फ़िर एक दिन पुन: जन्म लेता हूँ

मेरे हिस्से हर बार ही प्रकृति का आँचल आता है

मेरा रोम-रोम प्रकृति के चरणों में ही शिश झुकाता है

मेरा होना ही तो प्रकृति है

प्रकृति है तो ही तो मैं हूँ

मैं और प्रकृति क्या जुदा हैं?












0 likes

Published By

Deepali sanotia

deepalisanotia

Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

Please Login or Create a free account to comment.