कैसी ये महामारी है
जो इस देश को लगी
जब ये देश आज़ाद हुआ
तभी से इसे ये बिमारी लगी
अफ़सर हो या चपरासी
नौकर हो या अधिपति
भ्रष्ट सी हो गई लगतीं
निम्न से उच्च की मति
एक कुर्सी से दूसरी कुर्सी तक
बस सबके दाम बढ़ते जातें हैं
यहाँ रंक से राजा तक सब
अतिरिक्त कमाई पाते हैं
दिखावे की चकाचौंध में
कमान अंधी होती जाती है
अंदर से खोखली होकर
यहाँ खूब रिश्वत पाती है
महामारी भ्रष्टाचार की
देश को ही भटकाती है
यहाँ अन्धोँ की सरकार बनती है
और बस यही ढर्रा चलाती है
यहाँ जान की तो कीमत नहीं
चुप रहने वाला ही है हर पल सही
समझदार को समझ सब आता है
गूँगा बन जमा लेता है मुँह में दही
स्वरचित एवम् मौलिक
दीपाली सनोटीया
16/04/2021
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
Woww
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