चाय-पोहे और ट्रे

बेटियाँ मतबल पराया धन। बस अच्छा घर और अच्छा वर। उनका मन, उनकी पसंद या उनकी इच्छा का मोल ही कितना होता है?

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Deepali sanotia
Deepali sanotia 29 Jun, 2021 | 1 min read
Scribble life story

ये उन दिनों की बात है जब शहर के बीचो-बीच हमारा घर था। थोड़ा पुराना, टीन की छत वाला घर जहाँ हम अपने संयुक्त परिवार में रहते थें।

दादा-दादी, एक तलाकशुदा बुआ, बड़े पापा-बड़ी मम्मी, उनके तीन बच्चें, मम्मी-पापा और हम तीन भाई-बहन। हाँ..दो बुआएँ और भी थीं, जो छुट्टियों में मायके आ जाया करती थीं। तब घर में हम पूरे के पूरे दस बच्चें हो जाते थें। दिन भर धमा-चौकडी लगी रहती थी।

हमारे घर की परिस्थिती ऐसी थी कि थोड़ा था और थोड़े की ज़रूरत थी, लेकिन मन की श्रीमंती बहुत थी। ना जाने कितने त्राण पा जाते थें।

चूँकि घर बीच शहर में था और हमारे समाज का मांगलिक भवन भी घर के एकदम पास था, तो आए दिन हमारे घर पर मेहमानों का ताता लगा रहता था। जब भी कोई मांगलिक कार्य होता, चाहे करीबी रिश्तेदार हो या दूर दराज़ के, सब के सब हमारे ही घर आ धमकते थें। कोई मिलने, तो कोई सिर्फ तैयार होने या आराम फ़रमाने आता था।

दादा जी को लोगों की शदियां जमाने का कुछ विशेष ही शौक था। ना जाने कितनी लड़कियों के देखने-दिखाने के कार्यक्रम हमारे ही घर पर चलते थें। उम्मीदवार लड़की, अंजान लड़के वालों के सामने चाय-पोहे का ट्रे लेकर पहुँच जाती थी। बेचारी कापते हाथों से सबको पोहे की प्लेट देती और प्लेट लेते समय सबके सब उसे अपलक देखते रहतें। कभी लड़की की ऊँचाई नापी जाती, तो कभी उससे ढ़ेर सारे प्रश्न पूछें जाते। कभी बात बनती थी, तो कभी नहीं बनती थी। कभी-कभी तो सगाई भी हमारे ही घर हो जाया करती थी। कई बार ऐसा भी हुआ कि बात बनते-बनते कुछ ही दिनों में टूट भी जाया करती थी। हमारे घर में ऐसे-ऐसे खतरनाक पर रोमांचित करने वाले दृश्य प्रसारित होते थें, जिनके चर्चें महिनों चलते रहते थें।

जिस घर में परायों की बेटियों का तमाशा बनता था, वहां घर की बेटियाँ कैसे बची रह सकती थीं। वैसे भी बेटियाँ मतलब पराया धन, यही सोच हमारे घर में सर्वोपरी थी। जितनी जल्दी हो सके बस कोई अच्छा घर-वर मिल जाएं और बेटी के हाथ पीले कर घर वाले गंगा नहा लें।

हमारे घरवालों की ऐसी सोच का सबसे बड़ा शिकार बनी थी हमारी नीलम दीदी। नीलम दीदी हमारे बड़े पापा की बड़ी बेटी थी। घर के सभी बच्चों में सबसे बड़ी। मात्र 15-16 वर्ष की उम्र से ही आए दिन उनको ना जाने कैसे-कैसे अंजान लोगों के सामने चाय-पोहे का ट्रे लेकर जाना पड़ता था। उस समय बच्ची ही तो थी नीलम दीदी।

बस घर में ये फ़रमान सुना दिया जाता था कि मेहमान आने वाले हैं। दादी और बड़ी मम्मी झट कोई अच्छी सी साड़ी निकालते, दीदी को पहनाते, धीरे से चलने, कम बोलने, मेहमानों के सामने कम हंसने की हिदायत दी जाती और हमारी नीलम दीदी गुड़िया की तरह ये सब करती। नाज़ुक से हाथों में होता चाय-पोहे वाला ट्रे।

मेहमान आते, चाय-पोहे का आनंद उठाते, खूब बातें करते और थोड़े दिनों में जवाब देंगे, ऐसा कह कर चले जातें। फ़िर पैगाम आता..आपकी लड़की बहुत दुबली है, छोटी लगती है, ऊँचाई कम है और भी ना जाने क्या-क्या?

अब भला 15-16 वर्ष की लड़की बच्ची नहीं है तो क्या है! उस उम्र में पूरी तरह से शारीरिक विकास भी नहीं होता, तो लोग रिजेक्शन नहीं करेंगे तो और क्या करेंगे?

पता नहीं ये बात हमारे घर के बड़ो को क्यों समझ में नहीं आती थी। ना जाने किन-किन को घर आने के न्यौते दे देते थें।

जब कभी किसी कार्यक्रम में जातें और जहां पता चलता कि कोई शादी लायक लड़का है तो झट कह दिया जाता कि हमारी लड़की है, हमारा घर पास में ही है, आज ही आ जाओ लड़की देखने। कभी-कभी तो हमारे घर वाले उन लोगों को अपने साथ ही घर ले आते थें।

झट भीतर आ कर कहते, "चाय बनाओ, पोहे बनाओ, नीलम को तैयार करो और बाहर भेजो।"

फ्रॉक-मिडी पहनने वाली नीलम दीदी को अंदर की ओर दौड़ लगानी पड़ती थी और फिर वही रिजेक्शन। अब हमारे घर वालों को कौन समझाता कि किशोरावस्था में यूं बार-बार लोगों के सामने जाना और रिजेक्शन जैसी बातों का सामना करने से एक बच्ची के मन पर क्या प्रभाव पड़ता था।

वो सिलसिला यूं ही चलता रहा, जब तक कि नीलम दीदी की शादी नहीं हो गई। नीलम दीदी के जीवन में वो चाय-पोहे और ट्रे के सिलसिले पूरे 35 बार चले थें। हम बच्चों ने गिन रखा था। 35 वीं बार में नीलम दीदी की शादी तय हो गई थी, तब दीदी 22 या 23 साल की थी। नीलम दीदी हमारे घर से विदा हो गई थी। मुझे उस चाय-पोहे के ट्रे से इतनी चिढ़ थी कि मैने अपने आप से वादा किया था कि मैं कभी किसी के सामने ये चाय-पोहे वाला ट्रे नहीं ले जाऊंगी। मुझे ये अरेंज मैरिज वाला सिस्टम ही समझ में नहीं आता। बहुत झोल-झाल होता है इस सिस्टम में। ये मेरे व्यक्तिगत विचार हैं।

स्वरचित

दीपली सनोटीया



















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Deepali sanotia

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Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

  • Ruchika Rai · 3 years ago last edited 3 years ago

    ये दिखाने की रस्म बहुत गंदी होती

  • Charu Chauhan · 3 years ago last edited 3 years ago

    👍

  • ARCHANA ANAND · 3 years ago last edited 3 years ago

    बेहतरीन लेखन

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