Deepali sanotia
28 Jun, 2021
ना कश्ती ना छुटपन
छपड़-छपड़ पानी के छीटें,
तन-मन पर पड़ जाते थें।
एक कागज की कश्ती में हम,
दूर-दूर तर जाते थें।
छुटपन कुछ बेबाक सा था,
बारिश से अनुराग सा था।
हरण हुआ अब बचपन है,
ना कश्ती, ना छुटपन है।
Paperwiff
by deepalisanotia
28 Jun, 2021
Microfable contest #कागज की कश्ती
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