मां के बिना कोई मायका होता है क्या बार बार रेहा के दिमाग में यही लाइन आ रही थी। जो उसकी मां के निधन पर सुगंधा मौसी ने कही थी।वाकई ये सब रेहा महसूस कर रही थी कि मां के बिना मायका ही नहीं होता।चाहे भाई भाभी के लिए कितना भी कुछ कर लो वो उसके मां-बाप के जैसे नहीं बन सकते।
रेहा का भाई हमेशा से ऐसा नहीं था लेकिन अभी कुछ सालों से वह काफी बदल गया था।रेहा को आज भी याद है। जब उसकी शादी हुई थी उसका यही भाई हर दूसरे तीसरे दिन फोन करता था और हर 15 दिन में उसको मिलने चला आता था। अक्सर कहता था रेहा दीदी तेरे बिना तो घर सूना लगता है। यह सुनकर रेहा को खुशी के साथ-साथ अपने मायके में अपनी अहमियत पता लगती थी कि चलो उसके जाने के बाद उसको इतना याद किया जाता है पर जब से रवि की शादी हुई थी तब से उसका ना केवल आना जाना कम हो गया था बल्कि अब तो वह फोन भी नहीं करता था।रेहा सब समझ ती थी कि शादी के बाद रवि की जिम्मेदारियां बढ़ गई हैं इसलिए वही हाल चाल पूछने के लिए फोन करती थी।
रेहा जब भी मायके जाती तो उसकी भाभी गीतिका उसे देखकर कभी खुश नहीं होती। अभी तो रेहा ऐसी ननदों में से नहीं थी जो जाकर अपनी भाभी को परेशान करें।वो तो हमेशा अपनी भाभी के साथ सहेलियों की तरह बर्ताव करती थी और सब काम मिलजुलकर करने में विश्वास करती थी। फिर भी गीतिका उसे कभी खुश नहीं लगती थी ना ही वो कभी रेहा को फोन करके बुलाती थी और ना ही उसके आने पर कोई खुशी दिखाती थी।पर एक बात रेहा नोट करती उसकी भाभी रवि के सामने हमेशा खुद को खुश दिखाती कि जैसे उसे रेहा के आने की बहुत खुशी है। पर ये सब भी ज्यादा दिनों तक नहीं चल सका।अब गीतिका ने ये नाटक करना भी छोड़ दिया था और ना जाने रवि के दिमाग में मां और रेहा के प्रति क्या क्या भर दिया था।अब वो खुले आम रेहा के आने पर अपनी नाराज़गी दिखाती।रेहा ने एक दो बार रवि को बताने की कोशिश भी की पर रवि अपनी पत्नी के बारे में कुछ सुनने को तैयार ही नहीं था।
और तो और रेहा ने देखा वो तो उसकी बूढ़ी मां के लिए खाना भी नहीं बनाती थी। जबसे उसकी बेटी हुई थी तबसे उसे खाना समय पर ना बनाने का बहाना मिल गया था। बच्चे तो दादा दादी को भी प्यारे होते हैं पर सास ससुर के मांगने पर भी वो अपनी बच्ची को ना देने के बहाने बना लेती।उसे शायद डर था कि बच्ची अपने दादा दादी के साथ ज्यादा घुल मिल ना जाए।
और पापा सब कुछ जानते हुए भी चुप रहते थे। रेहा की मां काफी बूढ़ी हो गई थी बुढ़ापे में आकर गठिया की बीमारी ने उन्हें जकड़ लिया था पहले वो जो थोड़ा बहुत खाना बना लेती थी अब इस बीमारी ने रही सही कसर वो भी खत्म कर दी थी। अब तो वो गीतिका के भरोसे रह गई थी खाना दे दिया तो ठीक नहीं तो भगवान का नाम लेती थी। ऐसे ही दिन कट रहे थे कि 1 दिन सुबह रेहा के पास उसके पापा का फोन आया कि उसकी मां नहीं रही।ये सब सुन रेहा सुन्न रह गई। उसके पति विकास ने उसे संभाला और उसकी मां के अंतिम दर्शन के लिए उसे लेकर उसके मायके पहुंचे।
मां के क्रिया कर्म के बाद रेहा घर लौट गई पर अब उसे अपने पापा की बहुत चिंता सताने लगी कि उसकी भाभी उसके पापा को दो वक्त का खाना समय पर देगी या नहीं। इसी कारण हर महीने मायके का एक चक्कर जरूर लगाती। जब भी मायके जाती तो उसे देख उसकी भाभी बिल्कुल भी खुश ना होती। लेकिन अपनी भाभी की बेरुखी को दरकिनार करते हुए वह अपने पिता की 2 दिन तक अच्छे से देखभाल कर के तीसरे दिन लौट जाती। पिता उसको कुछ बताते तो नहीं थे लेकिन उनकी हालत रेहा को पता लग रही थी।
एक बार रेहा को बाजार में उसके मायके की पड़ोसी मिश्रा आंटी मिली।जिनके पति उसके पापा के बहुत अच्छे मित्र थे। मिश्रा आंटी ने हाल-चाल पूछने के बाद उसे बताया कि गीतिका उसके पापा को समय से खाना तक नहीं देती।कभी किटी पार्टी में,तो कभी बाजार या कभी घूमने चली जाती है।पीछे उसके पापा भूख से बेहाल होकर कभी चाय पी लेते हैं कभी बिस्किट खाते हैं।खाना तो बनाना आता नहीं उन्हें। यह सब सुन रेहा बहुत दुखी हो गई और अगले हफ्ते ही वह अपने मायके पिता से मिलने गई। उसने देखा वहां पर उसकी भाभी के मायके वाले आए हुए थे।भाभी उनके साथ बहुत ही खुश थी।जो भाभी रेहा के आने पर सर दर्द और कमर दर्द के बहाने से कमरे से ही नहीं निकलती थी। आज कैसे भाग भाग के अपने मायके वालों के लिए पकवान बना रही है।जिसे अपने ससुर का दो वक्त का खाना बनाने में आलस आता है वो कैसे आज इतनी फुर्ती से सब काम कर रही है।जब रात को गीतिका के मायके वाले चले गए तो फिर से अगले दिन उसका नाटक शुरू हो गया वह सुबह नाश्ता बनाने के लिए किचन में ही नहीं आई ताकि रेहा का नाश्ता ना बनाना पड़े।
रेहा मिश्रा आंटी से तो काफी कुछ सुन चुकी थी तो उसने सोचा चलो खुद ही बना लेती हूं और जब तक मैं हूं तब तक तो पापा को अपने हाथ से खाना बनाकर खिला दूं।यही सोच किचन में पापा के लिए रोटी बना रही थी तो पीछे से उसके पापा आए और बोले," बेटा मुझे भी रोटी बनानी सिखा दे, कभी-कभी खाना बनने में देर हो जाती है या तुम्हारी भाभी कहीं बाहर होती है तो मुझसे भूख सहन नहीं होती। बी पी की दवाई भी लेनी होती है। "
पापा के मुंह से यह सुन रेहा पीछे पलट कर भी नहीं देख पाई। उसकी आंखों से टप टप आंसू बहने लगे कि देखो क्या समय आ गया है। एक समय था जब अपने पापा की उंगली पकड़कर उसने चलना सीखा था और आज पापा को बुढ़ापे में रोटी बनाना सिखाना पड़ेगा। क्या उसके पापा की किस्मत इतनी खराब है कि उन्हें बुढ़ापे में खाना भी नसीब ना हो पायेगा। उसके पापा ने बड़े ही मन से रोटी बनानी सीखी। इस बार रेहा 2 दिन ज्यादा रुक गई ताकि अपने पापा को अच्छे से रोटी बनाना सिखा सके।जब उसके पापा ने रोटी बनाई तो जो खुशी उनके चेहरे पर थी वो किसी गोल्ड मेडल को जितने से कम नहीं थी।
पापा को रेहा से खाना बनाना सीखते देख गीतिका अंदर से जल भुन गई।रात को रेहा को सुनाते हुए रवि को कहने लगी कि कुछ लोग तो बिना बुलाए आ जाते हैं हमारे घर में।रवि ने उसे ये तक ना बोला कि तुम मेरी बहन के बारे में ऐसा क्यूं बोल रही हो।वैसे बात भी सही है अगर भाई ही अपनी बहन की कदर नहीं करेगा तो भाभी क्या करेगी।
रेहा जबसे मायके से लौटी थी वह बहुत ही उदास थी। विकास ने कई बार उससे उसकी उदासी का कारण पूछा पर वो बता नहीं पाई। उसको इतना उदास देखकर विकास बहुत ही दुखी हो गए और उसे अपनी कसम दी कि अगर वो अपनी उदासी का कारण नहीं बताएगी तो वो खाना भी नहीं खाएंगे। विकास की जिद के कारण रेहा को सब बताना पड़ा। अगले दिन जब विकास ऑफिस से आए तो वो रिया को आवाज लगाने लगे। जैसे ही रेहा बाहर आई तो उसने देखा विकास के साथ उसके पापा भी थे। उन्हें देखकर रेहा बहुत हैरान हो गई और आंखों ही आंखों विकास से पूछा तो उस समय विकास सिर्फ मुस्कुरा दिए।पापा और विकास को खाना खिला कर रेहा पापा को आराम करने के लिए अंदर ले गई।
बाहर आकर रेहा ने विकास से पापा के आने के बारे में पूछा तो विकास बोले," रेहा तुम औरतें भी तो अक्सर हमारा कितना ख्याल रखती हो, हमारे लिए अच्छा अच्छा खाना बनाती हो, हमारे मां-बाप का ध्यान रखती हो, घर परिवार देखती हो, कहते हैं ना आदमी के दिल का रास्ता उसके पेट से होकर जाता है तो मैंने सोचा क्यों ना मैं भी अपनी बीबी के दिल का रास्ता देखुं कहां से होकर जाता है। तो मुझे उस रास्ते में तुम्हारे मां-बाप की खुशी दिखी।अब मां तो हैं नहीं पापा है। जिन पापा ने तुम्हें पाल पोस कर बड़ा किया और पापा को दुखी देखकर तुम्हारे दिल में खुशी कैसे हो सकती है। तो मैंने सोचा क्यों ना मैं यह खुशी तुम्हें दे दूं। क्या सिर्फ औरतों का ही फर्ज होता है अपने पति को अपने परिवार को खुश रखना। क्या हम पतियों का कोई फर्ज नहीं होता। तुम भी अपना परिवार छोड़ कर आई हो इसी भरोसे की पीछे कोई है जो तुम्हारे मां बाप का ध्यान रखे और जब वो इंसान(भाई) ही धोखा दे जाए तो मां-बाप की चिंता होना तो लाजमी है।जैसे तुमने मेरे मां-बाप को अपने मां-बाप समझा। वैसे ही मैं भी तुम्हारी मां बाप को अपने मां-बाप के समान ही समझता हूं। लेकिन हां हम आदमियों को कुछ बातें देर से समझ आती है। उसके लिए मैं माफ़ी चाहूंगा और हां तुम सोच रही होगी कि पापा मेरे साथ कैसे आ गए तो हुआ यूं कि मैं अगले हफ्ते टूर पर जा रहा हूं 15 दिन के लिए और पापा को तुम्हारे साथ रहने के लिए लाया हूं ताकि तुम अकेली ना रहो और अब आगे तुम सोच लेना उनको किस तरह से रोके रखना है।एक बात और कि ये घर सिर्फ मेरा नहीं हमारा है। तुम जो भी फैसला लेगी उसमें मैं हमेशा तुम्हारे साथ रहूंगा। तुम्हारा और मेरा रिश्ता दिल का रिश्ता है।
ये सब सुन रेहा विकास के गले लग गई आज वो सब कुछ भूल जाना चाहती थी। उसे हमेशा लगता था कि विकास उसका जन्मदिन ,शादी की सालगिराह भूल जाते हैं कोई गिफ्ट नहीं लाते पर आज विकास ने उसे बहुत बड़ा गिफ्ट दे दिया था।
दोस्तों माना कि सभी ननद रेहा के जैसे नहीं होती पर क्या शादी के बाद बेटी को अपने मायके से रिश्ता खत्म कर देना चाहिए?क्या बेटी सिर्फ अपने मायके में लेने ही आती है?क्या शादी के बाद उसके अपने मायके से सब अधिकार छिन गए हैं?क्या वो अपना बचपन, अपना आंगन नहीं याद कर सकती कुछ दिन आकर।अगर सब भाभियां गीतिका की तरह हो जाएं और ननद से उसका मायका छीन लें और उस पर अपना एकाधिकार रखें तो खुद उन्हें भी अपने मायके का मोह छोड़ देना चाहिए क्योंकि अपने मायके में तो वो भी अब किसी की ननद बन चुकी हैं या एक दिन बन जाएंगी।वैसे तो सभी रिश्तों
का अपना महत्व होता है और हर रिश्ता वक्त मांगता है।
ससुराल में पति के बाद पत्नी अगर किसी के ज्यादा करीब होती है तो वो है ननद।ननद भाभी में आपसी समझ हो तो वो चाहे तो सही बहनों या पक्की सहेलियों की तरह भी रह सकती हैं।
धन्यवाद।
चेतना अरोड़ा प्रेम
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