राजन और सिया की शादी को 5 साल हो गए थे और उनका 3 साल का एक बेटा भी था।सिया घर के कामों में निपुण एक अच्छी गृहणी थी। वैसे वो एक भोली भाली लड़की थी जिसको कोई चालाकी नहीं आती थी। राजन सिया के इस भोलेपन के मुरीद था और अक्सर उसकी तारीफ करता था।
वैसे राजन भी दिल का साफ था वह खुद भी दुनिया की चालाकियों से बहुत दूर था। और उसको इंसानों की ज्यादा परख नहीं थी इसलिए वह जल्दी ही धोखा खा जाता था।
कुल मिलाकर दोनों पति पत्नी साफ दिल के थे।
सिया में फिर भी लोगों की परख थी वो अक्सर राजन को समझाती भी थी कि लोग जैसे सामने से दिखते हैं जरूरी नहीं वे अंदर से भी वैसे ही हों।
ऐसी ही एक बार राजन अपने एक दोस्त विवेक के साथ उसके एक कुलीग रोहन से मिलने उसके घर गए। वहां रोहन की पत्नी श्रुति ने हाथ जोड़कर उन्हें नमस्कार किया इस बात ने राजन को बहुत प्रभावित किया उसे लगा कि रोहन की पत्नी कितनी संस्कारी है हाथ जोड़कर नमस्ते करती है। आजकल की लड़कियां तो ऐसा नहीं करती। वह जब से रोहन से मिलकर आया तब से वो सिया को श्रुति की तारीफें करते नहीं थक रहा था कि भाभी जी बहुत संस्कारी हैं। यह सुनकर सिया को थोड़ा अजीब लगा क्या हाथ जोड़कर नमस्ते करने पर ही संस्कार दिखते हैं? क्या हम किसी को बिना हाथ जोड़ें नमस्ते कर दे या फिर हेलो हाय करें तो क्या हमारे अंदर संस्कार नहीं है।
एक दिन सिया को भी मौका मिल ही गया श्रुति से मिलने का क्योंकि रोहन ने विवेक और राजन को परिवार सहित अपने घर चाय पर बुलाया था जब वे लोग गए तो वहां सिया श्रुति को नोटिस कर रही थी उसे भी श्रुति ठीक लगी।
कुछ दिन बाद राजन के मकान मालिक ने मकान खाली करने को बोला तो राजन नया घर पता कर रहा था तो उसे रोहन से पता चला कि उनकी सोसाइटी में उसके फ्रेंड का एक घर खाली है। राजन ने वह घर किराए पर ले लिया जब राजन और सिया वहां शिफ्ट हुए तो सिया बहुत खुश थी कि चलो श्रुति से तो उसकी जान पहचान थोड़ी हो ही गई थी तो अब उसको किसी दोस्त की कमी नहीं खलेगी। यह सोचते सोचते एक हफ्ता बीत गया लेकिन रोहन और श्रुति ने उनके साथ कोई कांटेक्ट नहीं किया उन्हें तो लगा था शायद वह लोग उन्हें अपने घर एक - दो दिन खाने को बुलाएंगे जब तक उनका सामान सेट ना हो जाए पर ऐसा कुछ नहीं हुआ।
एक हफ्ते बाद जब सिया अपने बेटे के साथ पार्क गई तो उसे दूर से श्रुति अपनी फ्रेंड्स के साथ ग्रुप में बैठे हुई दिखी। यह देख सिया ने श्रुति की तरफ मुस्कुरा कर अभिवादन किया। लेकिन यह क्या श्रुति अपने फ्रेंड्स ग्रुप से निकल कर दो मिनट के लिए सिया से मिली और फिर वापस अपने ग्रुप में जाकर बैठ गई। सिया को थोड़ा सा अजीब लगा उसे तो लगा था कि अब श्रुति उसे अपने फ्रेंड्स के साथ भी परिचय करवाएगी। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ फिर अगले दिन जब सिया शाम को अपने बेटे के साथ कुछ सामान लेने जा रही थी तो सामने से श्रुति अपनी फ्रेंड के साथ सैर करते हुए दिखी। तब भी श्रुति ने सिर्फ हाथ हिला कर इतिश्री कर ली।
दो तीन बार जब ऐसा हुआ तो सिया को बहुत गुस्सा आया और उसने अपने पति राजन को जाकर सारी बात बताई और कहा कि आपकी भाभी जी तो वाकई बहुत ही संस्कारी हैं, इतनी संस्कारी किसी से ढंग से बात तक नहीं करती हैं और ना जाने किस घमंड में रहती हैं।संस्कारी लड़कियां ऐसी होती हैं तो अच्छा है मैं इतनी संस्कारी नहीं हूं।
यह सब सुन राजन को भी बहुत बुरा लगा क्योंकि जब से वो लोग वहां शिफ्ट हुए थे तो उसने भी यही महसूस किया था कि रोहन ने उनको एक फोन तक नहीं किया। ना ही राजन के फोन का उत्तर दिया। अब सिया और राजन ने समझ लिया था कि वो लोग उनके साथ दोस्ती नहीं रखना चाहते।
सिया ने भी वहां फ्रेंड्स बना ली। कुछ दिन बाद राजन को विवेक से पता चला कि रोहन ने राजन के बारे में विवेक से कहा है कि राजन तो बहुत ही मतलबी है।इस बात पर विवेक को विश्वास नहीं हुआ क्योंकि वो राजन को 5 साल से जानता था।
ये सुन राजन को बहुत बुरा लगा और उसने रोहन और उसकी पत्नी के व्यवहार के बारे में विवेक को बताया तो विवेक को भी उनका व्यवहार अच्छा नहीं लगा। चूंकि विवेक रोहन का सीनियर था तो रोहन को विवेक के साथ अच्छा व्यवहार करना पड़ता होगा।
दोस्तों आपको क्या लगता है कि पैर छूना,घूंघट डालना या हाथ जोड़कर नमस्ते करना ही अच्छे संस्कार की निशानी है?
मेरे विचार से तो अगर दिल में इज्ज़त हो तो चाहे पैर छुओ या ना छुओ,घूंघट डालो या ना डालो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।संस्कार किसी दिखावे के मोहताज नहीं होते।इंसान हर बार दिखावा नहीं कर सकता क्योंकि इंसान जो है वहीं दिखता है। वो कुछ समय तो दिखावा कर लेगा पर हमेशा नहीं क्यूंकि एक ना एक दिन सच्चाई सामने आ ही जाती है।
हमने तो ऐसे लोग भी देखें हैं जो भले ही बाहर से बड़े संस्कारी लगे पर अंदर से बहुत चालाक और मतलबी होते हैं।बहुत ही कम लोग ऐसे होते हैं जो जैसे बाहर से दिखते हैं वैसे अंदर से भी हों।आपकी क्या राय है जरूर बताइएगा।
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धन्यवाद।
कॉपीराइट @ चेतना अरोड़ा प्रेम।
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