हैलो दोस्तों आज की मेरी कहानी है, नैनसुख और उनकी प्रियतमा की।
वैसे तो नैनसुख सीरियस टाइप के इंसान हैं। पर कभी-कभी इनके साथ कुछ ना कुछ अजब-गजब किस्से हो जाते हैं। जिससे उनकी प्यारी प्रियतमा नाराज़ हो जाती हैं। जब प्रियतमा कुछ कहती हैं तो वैसे तो नैनसुख ना सुनते पर जिस बात से उनका कोई वास्ता नहीं होता वह पता नहीं कहां से सुन लेते हैं।
हुआ यूँ कि एक दिन नैनसुख सुबह-सुबह योग प्राणायाम कर रहे थे। प्रियतमा भी कमरे में कुछ साफ़- सफ़ाई कर रही थी। उनकी कामवाली बर्तन साफ कर रही थी। प्रियतमा कामवाली को कमरे में बुलाना चाह रही थी। कामवाली को रखे हुए अभी चार दिन ही हुए थे तो प्रियतमा उसका नाम भूल गई। तो उसने बुलाया," अरे क्या नाम है तुम्हारा इधर आओ ज़रा। "इससे पहले काम वाली आती तुरंत ही नैनसुख जो अनुलोम विलोम कर रहे थे, एक नाक से सांस ऊपर खींचा ही था प्रियतमा की बात सुन के सांस रोके हुए झट से कामवाली का नाम 'गीता' बोल पड़े और फिर दूसरी तरफ से सांस बाहर छोड़ा।
यह सब देखते ही प्रियतमा को हंसी के साथ-साथ गुस्सा भी आया। जनाब को शादी की सालगिरह और बीवी का जन्मदिन तो याद रहता नहीं और चार दिन पहले आई कामवाली का नाम बहुत अच्छे से याद है।
ऐसा ही एक किस्सा तकरीबन कुछ साल बाद फिर से हुआ। प्रियतमा ने एक और कामवाली रखी उसने अपना नाम सुनहरी बताया था। पर एक दिन अपना कार्ड बनवाने आई तो उसमें उसका नाम फुरफुरी बर्मन था। क्योंकि सोसायटी के नियमों के अनुसार काम वाली का कार्ड बनवाना जरूरी था। तो प्रियतमा ने उसका कार्ड बनवाया और उसने बातों बातों में नैनसुख को भी बताया इसका नाम तो फुरफुरी बर्मन है। पर हमें तो अपना नाम सुनहरी बताती है। शायद थोड़ा अजीब नाम है इसीलिए छुपाती है। खैर बात आई गई हो गई।
दो महीने बाद सुनहरी किसी कारण वश अपने गांव चली गई और उसके वापिस आने की उम्मीद छोड़ प्रियतमा ने सोचा सोसायटी के आफिस जाकर उसका नाम कटवा देते हैं। प्रियतमा नैनसुख को लेकर सोसाइटी ऑफिस चल पड़ी। वहाँ जाकर संबंधित अधिकारी को नाम कटवाने को बोला तो उसके नाम पूछने पर सुनहरी नाम बताया। दस से 15 मिनट तक चेक करने के बाद भी इस नाम की कोई काम वाली नजर नहीं आई कंप्यूटर में। सारे रजिस्टर चेक कर लिए गए। अधिकारी ने कहा कहीं ऐसा तो नहीं उसका नाम कुछ और होगा कार्ड पर। तो प्रियतमा को याद आया कि हां उसके कार्ड पर तो कोई और नाम था। उसने दिमाग के घोड़े दौड़ाना शुरू किए ही थे कि झट से नैनसुख बोल पड़े उसका नाम तो फुरफुरी बर्मन था। प्रियतमा कभी अधिकारी को तो कभी नैनसुख को देखें। कभी अपनी किस्मत को कोसे कि कैसे अनाड़ी सैंया से पाला पड़ा।
अधिकारी ने झट से नाम ढूंढा और काटा। प्रियतमा नाराज होकर चल पड़ी और जी भर के नैनसुख को सुनाया। नैनसुख बेचारे हैरान-परेशान और सोचे मैं तो मदद करता हूँ पर यह हर बार गलती कहाँ हो जाती है। 😥
अगले दिन वैलेंटाइन डे था। अभी तक प्रियतमा का गुस्सा शांत नहीं हुआ था। उसने सोचा इतना सुनाने के बाद एक गुलाब मिल ही जाएगा।
लेकिन हाय रे किस्मत!! नैनसुख तो फ्रिज से गोभी निकाल गए कि आज मैं गोभी के पराठे खाऊंगा। इतना सुनना था की प्रियतमा सब छोड़ घर से बाहर निकल गई। पार्क में लगी सैर करने। सुबह का समय था तो काफी चहल-पहल थी पार्क में। उधर नैनसुख हैरान-परेशान थे कि तभी एक लड़के को गुलाब के फूल ले जाते देख झट से उससे एक गुलाब लिया। अपनी टी-शर्ट में छुपाया ओर पहुंच गए प्रियतमा के पीछे पार्क में। लगे उसे बुलाने प्रियतमा कहां मानने वाली थी। तो उसके सामने घुटनों पर बैठकर बड़े स्टाइल से गुलाब निकाला प्रियतमा की तरफ बढ़ाया ये नजारा देख सैर करते हुए लोग रुक गए और उन्हें देख कर मुस्कुराने लगे। प्रियतमा ने तो अपना सिर पीट लिया। वैसे तो आज तक घर में तो एक गुलाब दिया नहीं और अब खुलेआम इतने लोगों के सामने शाहरूख खान बन रहे हैं।
मारे शर्म के झट से घर की ओर भागी और अच्छे से सोच लिया अब ना करेंगे ऐसे अनाड़ी सैंया से शिकायत।
और अनायास ही गुनगुनाने लगी ,बलमा अनाड़ी मंगा दे घोड़ा गाड़ी के तेरे संग मेरा लागे ना जिया......
दोस्तों कैसी लगी नैनसुख और प्रियतमा की नोकझोंक भरी कहानी।
कॉपीराइट @ चेतना अरोड़ा प्रेम।
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
मजेदार 👌
Charu ji thanks
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