लघुकथा दशा और दिशा

लघुकथा के संबंध में एक व्यंग्य लघुकथा।

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Bhunesh Chaurasia
Bhunesh Chaurasia 08 Sep, 2021 | 1 min read

लघुकथा

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दशा और दिशा

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लेखक महोदय लघुकथा को लेकर इतने दिवाने हो चुके थे कि क्या कहूॅं‌?

जहां भी जाते लघुकथाएं उनका पीछा नहीं छोड़ती थी।

एक बार एक मित्र के घर गए, मित्र भी लघुकथा लेखक बात निकली और चल निकली।

लेखक महोदय सोच रहे थे अभी सुबह का समय है कम से कम चाय की तो पूछना चाहिए था लेकिन ये किया लघुकथा पर चर्चा करते करते दोपहर होने को आ गया। मित्र लेखक ले लघुकथा दे लघुकथा।

मित्र लेखक की श्रीमती जी कपड़ा धोकर बाहर निकली तो दोनों लेखक को बतियाते देखा तो औपचारिक रूप में नमस्ते भाई साहब आप कब आए और सब खैरियत।

लेखक ने औपचारिकता पूरी की जी सब खैरियत।

मित्र लेखक की पत्नी बोली साॅरी भाई साहब आपको चाय भी नहीं पूछा अभी बनाकर लाती हूॅं‌।

दोनों लघुकथा लेखक चर्चा में जुटे रहे।

तबियत खराब हो तो लघुकथा, शादी विवाह में जाना हो तो लघुकथा, किसी के मैयत पर जाना हो तो लघुकथा, बच्चों को स्कूल छोड़ने जाना हो तो लघुकथा, खरीददारी के लिए बाजार जाना हो तो लघुकथा, साइकिल पर, मोटर साइकिल पर,बस में ट्रेन में, हवाई जहाज में, धरती पर आसमान में आज लघुकथा कहां नहीं पहुंचा है।पर बातें अब भी जारी थी। लेखक की श्रीमती जी रसोईघर से अचानक प्रकट हुई ट्रे के अन्दर तीन कप लीजिए भाई साहब चाय पीजिए।

लेखक महोदय को भूख बहुत सता रही थी भाभी जी थोड़ा पानी मिलेगा।

लेखक की पत्नी यह भी कोई मांगने की चीज है भाई साहब मांगना ही था तो दो चार लघुकथा मांग लेते। हमारे घर में तो लेखकों का भरमार है।

लेखक महोदय चाय का कप उठाए और मुंह में लगाया ही था लेकिन ये किया भाभी जी कप तो खाली है।

लेखक की पत्नी किया कह रहे हैं भाई साहब चाय नहीं है।

लेखक महोदय जी भाभी जी लेकिन मैं तो सचमुच चाय बना कर लाई थी।पर वो किया है न कि आप लोग लघुकथा पर चर्चा कर रहे थे तो चाय लघुकथा बन गई।

कप को उल्टा लटकाते हुए ये देखिए तीनों कप में दो दो लघुकथाएं हैं।

सत्यानाश हो नास पीटे का कमा कर तो एक पैसा नहीं लाता खाली लघुकथा, लघुकथा, लघुकथा करते रहता है सोते जागते।

साॅरी भाई साहब मैं दूबारा बना लाती हूॅं‌।

छोड़िए भाभी जी अब मैं चलता हूॅं भोजन का समय हो गया है।

मित्र लेखक की पत्नी बोली अरे भाई साहब अभी लघुकथा का बाजार गर्म है आप लोग चर्चा करते रहिए तब तक मैं खाना बना लेती हूॅं‌ बच्चे भी स्कूल से आ ही होंगे।

लेखक महोदय पुनः मित्र लेखक से लघुकथा के संबंध में चर्चा करने में संलिप्त हो गए।

उधर मित्र लेखक की पत्नी जब रसोईघर में खाना बनाने गई तो आटा चावल दाल सब्जी तेल मसाले गायब होकर लघुकथा में परिवर्तित हो गई थी।

यह देखकर जमीन पर बेहोश होकर गिर गई थी।

उधर खाने के इंतजार में दोनों लेखक के पसीने छूट रहे थे। तभी स्कूल से लेखक मित्र के बच्चे स्कूल से वापस आ गए थे।

जो कि पसीने से भीगे हुए थे। आगंतुक लेखक महोदय को अंकल नमस्ते और सब बढ़िया।

उधर लेखक महोदय को भूख प्यास और चाय पानी की व्यवस्था न होने की वजह से जान सांसत में आ गई थी।

उठते हुए चलता हूॅं दोस्त लघुकथा पर चर्चा फिर कभी।

© भुवनेश्वर चौरसिया "भुनेश"

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Bhunesh Chaurasia

bhuneshchaurasia

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Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

  • Vinita Tomar · 3 years ago last edited 3 years ago

    सुंदर अभिव्यक्ति

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