"सपना आधी रात का"
" गीली बोझिल पलकें मुस्कुरा रही है "
रहने दो पल्लू को लहराता मत ड़ालो कमर के घोंसले में, पसीना पीता सिकुड़ जाएगा,
लगता है जैसे शहर के हर रास्ते समा गए हो दौड़ कर आकर तुम्हारी कमर के आसपास.!
वो हस्त मिलाप की मखमली छुअन आज छोटे गाँव की पगदंडीयों सी खुरदुरी लग रही है, हाथ में हाथ दो चुम्बन की मोहर से महका दूँ , कहो कैसा लगा?
थकान से निढ़ाल अर्धध्वस्त सी तुम बस मेरे पहलू में बैठकर मेरी बेतहाशा चाहत में ढूँढो सुकून के पल,
बिखरे जुड़े में बेमिसाल लगती हो,
आओ तुम्हारे बिखरे जुड़े से चुनकर जिम्मेदारीयों के कण पिरो लूँ मैं अपनी हथेलियों की लकीरों में.!
पूरे घर के कोने-कोने से आकर जो बस गई है तुम्हारे रोम-रोम में, मरी, मसाले फ़िनाइल, साबुन की
ये जो आती है खुशबू तुम्हारे बदन से हमारे असबाब की, नासिका को बहका रही है,
"मैं ऋणी हूँ तुम्हारा"
तुमने अपने पसीने से जो सिंचा है मेरे घर की नींव को.!
आओ आज सोख लूँ तुम्हारे तन से वो पसीना तुम्हारी पीठ से चुनकर जिम्मेदारी यों के ज़ख्मो को गले लगा लूँ,
मरहम लगाने दो मेरे लबों की खुशबू से,
तुम ठंडी फूँक की सरसराहट में बह जाओ,
पलकें मूँदे करवटों को भूलकर मेरे सीने पर सर रखकर सो जाओ.!
आधी रात को ये खुशी के आँसू से सजा गिलाफ़ हंसता क्यूँ है ?
ओह काश की ये सपना सुबह का होता सुना है सुबह के सपने सच होते है..!!!
दूर दूर बिस्तर के उस छोर से बेफ़िक्री के खर्राटों के शोर में दब गए है एहसास मेरे
गीली बोझिल पलकें मुस्कुरा रही है।।
(भावना ठाकर) बेंगलोर
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