चलो शब्दों का संसार उडेल दूँ
मेरे भीतर भरी है समुन्दर जितनी विराट प्यास।
कड़वे समझौते की सुराही को पी सकोगे ?
मेरी मुट्ठीयों में बंद है बीमार सहनशीलता का मृत आकाश...
मेरी अतृप्तियों की कहानी का सार लिख दिया है अपने परिचय में, ढूँढो मेरे खामोश शब्दों में छुपा चित्कार...
गुमनाम, लक्ष्यहीन भटकाव के पथ पर खुद को ढूँढते उम्मीद के टीले पर टिकी एक शख़्सीयत को पूरा पहचान पाओगे क्या तुम ?
ना....कभी नहीं... मैं अभेद्य और अकथ्य हूँ, लुढ़क जाओगे मेरी पहचान को परखते सीमान्त तक आते-आते..!
मेरा कोई परिचय नहीं तिनके से वजूद की आदम कद प्रतिमा हूँ, फिर भी पहचान की भूखी....
तनया से भार्या तक के सफ़र में एकलता की क्षितिज पर डूब रही हूँ...
तन की भूगोल ही खंगालते हो मन के इतिहास में बसी मेरी लालायित कामना तरस रही है मुखर होने को।
बोलो मेरे नाम की तख़्ति लगा पाओगे अपने घर की दहलीज़ की दीवार पर..
करवा पाओगे इतना संक्षिप्त परिचय मेरा। या खुद के भीतर ही सिमटकर रहना है मुझे और कई सदियों तक क्वोरोन्टाइन।
#भावु
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