"प्रकृति बनाम इंसान"
कुदरत बनाम इंसान की बात करें तो हम इंसानों ने प्रकृति के प्रति घोर अन्याय किया है। प्राकृतिक संसाधनों के अथक मानव दोहन से मौसम से लेकर जीवों को नुकसान, वन्य जीवों के आवासों का नुकसान, जीवों की जातियों की विलुप्तता, भूस्खलन, तूफ़ान, जंगलों में आग और ज्वालामुखी फटने जैसी अनेक घटनाएँ प्राकृतिक मौसम पैटर्न में बदलाव दिखाती है। अगर हमारी जीवनशैली और आदतें नहीं बदली तो प्रकृति अति भयंकर रुप धारण कर सकती है। पर्यावरण को संरक्षित करें नये पेड़ उगाएं और पुरानों का जतन करें।
प्रदूषण सिर्फ़ एक धुआँ गंदा पानी या कूड़े कचरे से ही नहीं फैलता, मानव सर्जित प्रदूषण के कई प्रकार है। जैसे कि
प्रदूषण के प्रमुख रूपों में वायु प्रदूषण, प्रकाश प्रदूषण, कूड़े, ध्वनि प्रदूषण, प्लास्टिक प्रदूषण, मिट्टी प्रदूषण, रेडियोधर्मी प्रदूषण, थर्मल प्रदूषण, दृश्य प्रदूषण और जल प्रदूषण शामिल हैं। मुफ़्त में मिल रहे हवा पानी ऑक्सीजन हरियाली की हमें लेश मात्र कद्र नहीं।
नदी , तालाब , समुद्र , हवा , पानी , जंगल , आकाश , मिट्टी , जीव , जंतु, वृक्ष सब में जीवन है और सबने हमें कुछ न कुछ दिया ही है, पर हमने बदले में प्रदूषण दिया है शोषण , दोहन किया है। कितने सारे जीव हमारे कारण विलुप्ति की कगार पर है। नदियों में गटर का और फैक्ट्रियों का गंदा जल बहाते है, वृक्षों को काट कर कांक्रीट के जंगल खड़े कर रहे है। समुद्र किनारे घूमने जाते है तो पानी की बोतलें और प्लास्टिक की थैलियां और रैपर दरिया में बहा देते है।
फ़र्क ये है कि खतरा अब इंसानों की ज़िंदगी पर मंडरा रहा है इसलिये दर्द और संवेदना प्रकट हो रही है। सोचिए आज जितना दर्द हमें हो रहा है उतना ही भले ये सारी चीजें निर्जीव लगे पर दर्द प्रकृति को भी होता है।
वायु प्रदूषण का प्रमुख कारण इसमें अनेक प्रकार की अशुद्ध गैसों का मिलना और वाहनों का धुआँ है। वायु में मानवीय गतिविधियों के कारण कार्बन डायऑक्साइड, कार्बन मोनो ऑक्साइड जैसे प्रदूषित तत्व भारी मात्रा में मिलते जा रहे हैं । जल में शहरों का कूड़ा-कचरा रासायनिक पदार्थ युक्त गंदा पानी बहाया जाता है। इससे जल के स्त्रोत जैसे-तालाब, नदियाँ,झीलें और समुद्र का जल निरंतर प्रदूषित हो रहा है ।
बढ़ती आबादी के कारण निरंतर होनेवाला शोरगुल से ध्वनि प्रदूषण फैल रहा है । घर के बरतनों की या अन्य चीज़ों की खट-खट, मशीनों की खट-खट और वाद्य-यंत्रों की आवाज़ें दिनों-दिन बढ़ती ही जा रही है । वाहनों का शोर, उपकरणों की आवाज़ें और चारों दिशाओं से आनेवाली विभिन्न प्रकार की आवाजें ध्वनि प्रदूषण को जन्म दे रही हैं। महानगरों में तो हर तरह का प्रदूषण इंसानों को क्षति पहुंचाने वाला बन गया है।
प्रदूषण के दुष्प्रभावों के बारे में विचार करें तो ये बड़े गंभीर हैं । प्रदूषित वायु में साँस लेने से फेफड़ों और श्वास-संबंधी अनेक रोग उत्पन्न होते हैं । प्रदूषित जल पीने से पेट संबंधी रोग फैलते हैं । गंदा जल, जल में रहने वाले जीवों के लिए भी बहुत हानिकारक होता है । ध्वनि प्रदूषण मानसिक तनाव उत्पन्न करता है । इससे बहरापन, चिंता, अशांति जैसी समस्याओं से दो-चार होना पड़ता है।
घरों से निकलता दूषित पानी बहकर नदियों में जाता है। कारखानों के कूड़े-कचरे एवं अपशिष्ट पदार्थ भी नदियों में ही छोड़ा जाता है। जल प्रदूषण से डायरिया, पीलिया, टाइफाइड, हैजा आदि खतरनाक बीमारियाँ होती है। अब हर जीवों को बीमारीयों से बचाना है तो
प्रदूषण को रोकना बहुत जरूरी है। पर्यावरणीय प्रदूषण आज की बहुत बड़ी समस्या है, इसे यदि वक़्त पर नहीं रोका गया तो हमारा नाश होने से कोई भी नहीं रोक सकता। पृथ्वी पर उपस्थित कोई भी प्राणी इसके प्रभाव से अछूता नहीं रह सकता। पेड़-पौधे, पशु-पक्षी सभी का जीवन हमारे कारण खतरे में पड़ा है।
हम इंसान गलती पर गलती किए जा रहे है सज़ा तो मिलनी ही है।
सारे प्रदूषण मानव जीवन को बीमार और तनावपूर्ण बनाने में अहम् भूमिका निभाते है। पहले के ज़माने में न इतनी सुविधाएँ थी, न आधुनिक टैक्नोलॉजी, न इतने वाहन थे। लोग पैदल या साईकिल चलाकर कहीं भी आते जाते थे और सही खान-पान था। लोगों ने कभी वाॅटर प्यूरिफ़ाई देखे नहीं थे, कहीं भी पानी पी लेते थे। खेतों से सब्ज़ियाँ तोड़ कर बिना धोए भी खा लेते थे, फिर भी न बीमार पड़ते थे न कैंसर और डायबीटीस जैसी बीमारियाँ देखने को मिलती थी। अब भी अगर हमारी आँखें नहीं खुली तो प्रकृति अपना रौद्र रूप दिखाएगी।
भावना ठाकर 'भावु' बेंगलोर
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