"क्या सच में मिल रहे है सबको ये अधिकार"
@भावना ठाकर
10 दिसंबर' पूरी दुनिया में मानवाधिकार दिवस के रूप में मनाया जाता है। 11948 को संयुक्त राष्ट्र की साधारण सभा ने संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकारों की विश्वव्यापी घोषणा को अंगीकृत किया गया। जिसमें विचार, विवेक, धर्म, स्वतंत्रता तथा कहीं भी सभा आयोजन से लेकर सरकार बनाने तक के अधिकारों की जोगवाई मानव अधिकार कानून के तहत की गई है। हर मनुष्य के लिए मानव अधिकार सार्वभौमिक है जो मानव व्यवहार के मानकों को परिभाषित करता है। नगरनिगम से लेकर आंतरराष्ट्रीय कानून तक मानव अधिकार सुरक्षित है। पर जिस समाज में आज हम जी रहे है वहाँ तो हर तरफ़ गरीबी, भूखभरी और उत्पीड़न ही दिख रहा है। कहाँ है वे सारे अधिकार जिसका हर मनुष्य हकदार है। हर तरफ़ समाज में फैली असमानता का शोर ही सुनाई दे रहा है।
21वीं सदी में भी कुछ स्त्रियों के साथ कुछ नहीं बदला यातना, प्रताड़ना और क्रूरता से कुचली जाती है। बच्चों को आगवा करके भीख मंगवाने की गतिविधि जोर शोर से चल रही है, किसानों की खस्ता हालात के चलते खुदकुशी और आंदोलनों की भरमार बढ़ रही है, मज़दूरों का शोषण तो कहीं धर्मांधता के चलते समाज में कट्टरवाद और लव जेहाद जैसे गहरे मुद्दों पर धमासान होते रहते है। फुटपाथ पर कातिल ठंड में सड़कों पर सोते हुए ठिठुर कर जो लोग मर जाते हैं क्या उनके कोई मानव अधिकार नहीं है। शहीदों के परिवार के लिए, भूख से मरने वाले मजदूरों के लिए, गरीबी के कारण जो पढ़ाई नहीं कर पाते उनके लिए और उत्पीड़न की शिकार महिलाओं के लिए क्या मानव अधिकार कानून लागू नहीं होता। कितने मुद्दें गिनवाएं सरकार मानव अधिकार की बातें तो बड़ी जोर-शोर से करती हैं मगर जब देने की बारी आती है तो पीछे खिसकने लगते हैं। राज नेताओं को पता है कि यदि लोगों को उनके अधिकार मिल गये तो उनकी दुकान बन्द हो जायेगी। हमारे देश के संविधान में मानव को बहुत सारे अधिकार दिये गये हैं मगर उन पर अमल नहीं हो पाता है। मानव अधिकारों की रक्षा के लिये बनाये गये कानून महज कागजो में सिमट कर ही रह गए है।
वर्तमान समय में देश में जिस तरह का माहौल आए दिन देखने को मिलता है ऐसे में मानवाधिकार और इससे जुड़े आयामों पर सरकार को गौर करने की जरूरत है। देश भर में मॉब लिंचिंग की घटनाएँ, बच्चियों के साथ हो रहे बीभत्स कृत्य देश में मानवाधिकारों की धज्जियाँ उड़ाते दिखते हैं।
NHRC का काम है कि वह समाज में अंतरनिहित असुरक्षा की भावनाओं को मिटाने के लिए समाज में व्याप्त आंतरिक कुरीतियों एवं तंत्र में व्याप्त बुराइयों को मिटाएं तथा मानव अधिकारों से जुड़े गरीबी, भुखमरी, बेरोजगारी, कुपोषण, नशा, भ्रष्टाचार, विदेशी अतिक्रमण, शस्त्रों की तस्करी, आतंकवाद, असहिष्णुता, रंगभेद, धार्मिक कट्टरता वगैरह मुद्दों का योजनाबद्ध तरीके से निर्मूलन करें।
समाज में होने वाले मानव अधिकारों के उल्लंघन के प्रति समाज के हर व्यक्ति को जागरूक होने की जरूरत है अपने अधिकार के लिए अगर मानव ही जागरूक नहीं है तो फिर मानव अधिकार कानून का औचित्य क्या रह जाता है?
संक्षिप्त में कहा जा सकता है कि ‘‘मानव जीवन के समग्र विकास के लिए सभी अधिकारों की सुरक्षा एव क्रियान्वयन अनिवार्य है। हर नागरिक को अपने अधिकारों के प्रति जागरूक होकर कानूनन हक का उपयोग करके अपना विकास करना चाहिए। और सरकार को इस न्यायिक प्रक्रिया को देश के हर नागरिक को समझना चाहिए और हर अधिकार देने चाहिए।
बेंगुलूरु, कर्नाटक
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
No comments yet.
Be the first to express what you feel 🥰.
Please Login or Create a free account to comment.