मेरे लिये समय जैसे रुक सा गया था, आज वेलेंटाइन डे पर भी एक जवान खूबसूरत लड़की अकेले 14 फरवरी की शीत शाम गोआ के समुद्र तट की गीली रेत पर बैठे सर्च लाईट के बिम्ब की जलती बुझती रोशनी को देखकर समय बिता रही थी।
शाम रात के मध्य पहर में बैठे मैं सुन रही थी कुछ तिलीस्मी संगीत, एसा लग रहा था जैसे दूर-दूर बैठा कोई माउथ ओर्गन पर किसीकी याद को दर्द की तपिश में शेक रहा हो.!
कौन होगा? एक तलब उठी ओर,
सहसा ही पैर उस दिशा में चल पड़े, पता नहीं कितने कदमों की दूरी नाप ली पता ही नहीं चला, जैसे-जैसे करीब होती चली दिल की धड़कन एक खुशबू महसूस करने लगी मानों कोई मेरे अपने की कशिश खिंच रही हो।
गहराई शाम के झीने अंधेरे में एक साया नज़र आया जो मेरी तरफ़ पीठ किये बैठा बैठा माउथ ऑर्गन बजा रहा था, मैं चुपके से एक पत्थर पर बैठकर उसकी मोहक तान सुनने लगी दर्द के साथ एक कशिश थी ओर हाँ बीच-बीच में कुछ रोमांटिक धून सी भी बजा लेता था शायद दर्द जब बढ़ाया जाता था, लगभग आधा घंटा बीत गया ना उसे वक्त का पता चला ना मुझे अचानक से संगीत बहता बंद हुआ तो मेरी आँखें खुली.!
वो जाने के लिए उठ खड़ा हुआ जैसे ही वो पीछे मूड़ा मैं खड़ी हो गई, पूनम की रात थी तो एक दूसरे को स्पष्ट तो नहीं फिर भी दिखाई दे रहे थे इस निर्जन बीच पर हम दो अन्जाने असमंजस में थे की क्या बोले, कुछ नहीं सुझा तो मैंने बात की शुरुआत की, "हाय मैं तान्या" आप इतना सुंदर माउथ ऑर्गन बजा रहे थे की मैं खुद ब खुद यहाँ तक खिंची चली आई सच में बहुत अच्छा लगा।
मेरी बात को काटते हुए वो बोला पर मुझे अच्छा नहीं लगता कोई मेरी तारिफ़ करें,
मुझमें एसा कुछ खास नहीं मैं बस अपना दर्द भुलाने के लिए पिछले 4 साल से वैलेन्टाइन डे पर इस जगह पर आता हूँ मेरी फेवरिट धून बजाता हूँ तो दिल को सुकून मिलता है, वैसे मेरा नाम आलोक है , ओर उसने हाथ के इशारे से चलने के लिए कहा ओर बोला चलते चलते बात करते है ना, ओर मैं उसकी गहरी आवाज़ से उन्मादीत होती उसके साथ चलने लगी।
कुछ दूर जाते ही फूटपाथ की लाईट में अब एक दूसरे को हम साफ़ देख रहे थे मैं उसकी पर्सनैलिटी से अभिभूत हो गई 6 फूट लंबा, गोरा, सिल्की बाल ओर फ्रेमलैश चश्मे में जायन्ट लग रहा था, वैसे मैं भी कम सुंदर नहीं हूँ तो एक नज़र मुझे देखते ही बंदे की आँखें चमक उठी इतना तो मुझे भी महसूस हुआ.! खामोशी तोड़ते हुए वो बोला "नाइस टु मिट यू" वैसे लगता है आपको भी समुन्दर किनारे शाम बिताना अच्छा लगता है, मैं क्या बोलूँ एक अकेली लड़की को क्या समुन्दर, क्या बीच बाज़ार पर हमममम से काम चल गया, चलते-चलते दोनों ने एक दूसरे के बारे में बहुत कुछ जान लिया आलोक की गर्लफ्रेंड चार साल पहले एक कार एक्सिडेंट में चल बसी थी, मौली नाम था बस उसके गम में वो दुनिया से मुँह मोड़ बैठा था, पर मेरे बारें में जानने के लिए वो कुछ खास उत्साहित नहीं खास उत्साहित नहीं लगा जायज़ है अपनी प्रेमिका को वो बेइंतेहाँ प्यार करता था तो अब ओर किसी लड़की में इन्ट्रेस्टेड नहीं था।
पर मुझे जो फीलिंग्स आज तक किसीको देखकर नहीं आई वो आलोक के प्रति आकर्षित कर रही थी तो सामने से ही अपना मोबाइल नंबर दिया ओर कहा की मैं गोआ में नई हूँ ओर बिलकुल अकेली खास दोस्त भी नहीं मेरे क्या आप मेरे दोस्त बनेंगे ?
आलोक ने कुछ सेकेंड सोचकर हाथ आगे किया ओर कहा या स्योर व्हाय नोट पर, आहहह उसका हाथ अपने हाथ में लेते ही मेरे हाड़ में एक कंपकपी गूँज उठी, पहली बार किसी मनपसंद लड़के की छुअन से मानों बिजली कोंध गई रोम- रोम में फरवरी के शीत मौसम में भी पसीज गई,ओर झट से हाथ छुड़ाकर बाय बोलती आगे बढ़ गई।
घर आकर सोफे पर आँखें मूँदे बस वही जादुई स्पर्श को बार-बार महसूस कर रही थी क्या ये उपर वाले का कोई इशारा था आलोक आज वेलेंटाईन डे के दिन ही क्यूँ मिला?
पर जो भी था ये इत्तेफ़ाक़ बड़ा सुहाना था सोचते-सोचते कब नींद आ गई पता ही नहीं चला सुबह उठी तो नौ बज गए थे दस बजे ऑफिस पहुँचना था तो फ़टाफ़ट नहा धोकर तैयार हो गई।
आग जो लगी थी दिल में ऑफिस में मन कहाँ लगने वाला था बार-बार मोबाइल चेक कर रही थी आलोक के मेसेज या कोल के इंतज़ार में, एसी फ़ितरत तो नहीं थी मेरी न जाने क्या हो गया था मुझे एक दिन नहीं बीत रहा था, शाम जल्दी ऑफिस से निकलकर कोफ़ी शोप में कोफ़ी पी कर समुन्दर किनारे आ गई काश की आलोक दिख जाए, उफ्फ़ मैं भी ना क्या पता आलोक को तो मैं याद भी आती होंगी या नहीं।
तीन दिन बीत चुके मेरी हालत पागलों सी थी आज मेरा सब्र टूट गया बस अब ओर इंतज़ार नहीं करना मैं खुद फोन करती हूँ करके मोबाइल हाथ में लिया की मोबाइल पर रिंग बजी ओ माय गोड ओर एक इत्तेफ़ाक़ मेरा शिद्दत से याद करना ओर आलोक का फोन आना, मैं खुशी के मारे हैलो तक नहीं बोल पाई तो आलोक ने कहा हैलो ये तान्या का ही नं है ना ?
मैंने हकलाते हुए हाँ हाँ कहा जी मैं तान्या, कुछ औपचारिक हाय हैलो के बाद आलोक ने कहा मैं दो दिन से कुछ काम में उलझा था आज छुट्टी है तो सोचा अपनी फ्रेंड के साथ कुछ समय बिताया जाए आज फ्री हो क्या ?
"मेरे मन में लड्डू नहीं एक साथ मिठाई की पूरी दुकान फूटी" मैं मन में बोली पागल तुम्हारे लिए हज़ारों काम कुर्बान ओर खुद पर काबू पाते बोली जी थोड़ा ऑफिस वर्क है पर इट्स ओके बाद में कर लूँगी बताईये कब ओर कहाँ मिलना है ?
आलोक ने कहा आज शाम डीनर पे चलते है रात 8 बजे होटेल होली डे इन में रेडी रहना मैं लेने आऊँगा।
मैं सातवें आसमान पर उड़ने लगी
ओफ्फो अभी तो दोपहर के 3 बजे है कब शाम होगी कब 8 बजेंगे कब आलोक को देखूँगी।
पर, पर, पर आज मुझे थोड़ा सज-धज कर जाना था तो पार्लर चली गई ओर टोटली ट्रीटमेंट करवा कर अप टु डैट हो गई घर आते 6 बज गये सीधा तैयार होने लगी, मेरा फेवरिट ब्लेक ईवनिंग गाउन, फ्लौरासेंट रेड लिपस्टिक, लंबे वाले डायमंड इयरिंग, ओर खुले स्टेपकट बालों में रेडी होकर खुद को आईने में देखा तो खुद के ही प्यार में पड़ गई आलोक की क्या बिसात थी मन ही मन मैं पागल सोच रही थी कहीं आज ही प्रपोज़ ना कर दें।
गाड़ी के होर्न ने खयालों को ब्रेक लगा दी ओर दरवाजे की घंटी बजी तो दिल एक धड़क चुक गया, दरवाजा खोलते ही हेंडशम आलोक मुस्कुराहट के साथ हाथ में एक यल्लो रोज़ लिए खड़ा था, ये मेरी प्यारी दोस्त के लिए हमारी दोस्ती के नाम बोलकर गुलाब मेरे हाथों में थमा दिया मेरा दिल थोड़ा निराश हुआ साला रेड रोज़ की आस लगाए बैठा था, उतावला कहीं का।
पर ओके आज पीला गुलाब मिला है क्या पता आगे जाकर लाल गुलाब की खुशबू ही नसीब हो.! मेरे खयालों को ब्रेक लगाते आलोक बोला वाउ स्टनिंग यू लुकिंग वेरी प्रिटी, मन में फिर चॉकलेट फूटी पर जताया नहीं, आलोक की गाड़ी में उसकी बाजु वाली सीट पर बैठना कई कल्पनाओं को परवाज़ दे गया खूब सारी बाते की हम दोनों ने पर जिसका मुझे इंतज़ार था उसकी पहल ही नहीं कर रहा आलोक, एक इशारा नहीं मिल रहा उसकी तरफ़ से की दोस्ती के आगे भी कोई फीलिंग है उसके मन में आज तो मेरा सजना सँवरना बेकार गया।
एसे ही मिलने मिलाने में 6 महीने बीत गए पर आलोक मेरी भावनाओं को छूना ही नहीं चाहता था जब जब मिलता था एक फोर्मालिटी ही महसूस होती रही, "अकडू कहीं का" ओर कितना इंतज़ार करना होगा पता नहीं परआज अचानक मम्मी का फोन आया तनू तेरे लिये दो तीन रिश्ते आये है कुछ दिन घर आजा, देख ले अगर कोई पसंद आए तो, मेरे पैरों तले से ज़मीन खिसक गई क्या करूँ ? आलोक ने तो दिल के दरवाज़े पर ताला ही लगा लिया है झाँकना जितना भी खुला नहीं जोड़ा,
ये किस दोराहे पर लाकर खड़ा कर दिया था ज़िंदगी ने, मम्मी पापा ने ढूँढे हुए रिश्ते आजमा लूँ की आलोक की फीलिंग बदलने का इंतज़ार करूँ, सारे खयालों के बीच मन के चंचल ओर बेकल कोने से एक बचकाने खयाल ने सर उठाया "क्यूँ ना मैं खुद आलोक को सामने से प्रपोज़ कर दूँ"
आईडिया तो बुरा नहीं पर बाप रे क्या एक लड़की होकर लड़के के सामने अपने प्यार का इज़हार करना ठीक लगेगा क्या सोचेगा आलोक, पर इस खयाल पर दिल मुझसे नाराज़ हो गया बोला पगली तुझे मेरा तो कुछ खयाल ही नहीं, प्लीज़ अब चुप रहने का वक्त नहीं पूरी ज़िंदगी किसी अनमने इंसान के साथ बिताना चाहती है की अपने सपनों के राजकुमार के साथ.!
द्वंद्व को छोड़ ओर इस पार या उस पार का युद्ध खेल ले बिना लडें हारने से अच्छा है हिम्मत कर लें सोच ही रही थी की रेडियो मिर्ची पर मेरे हौसलो को परवाज़ देने के लिए ही मानों किसीकी फरमाइश पर आशा जी का गाया सोंग बजा,
"वो हसीन दर्द दे दो जिसे मैं गले लगा लूँ,
तुम्हें तुम से माँगती हूँ, ज़रा अपना हाथ दे दो,
मुझे आज जिंदगी की वो सुहाग रात दे दो जिसे लेके कुछ ना माँगू
और माँग में सज़ा लूँ"
मैंने भी मन ही मन आलोक के अकडूपन को ललकारा,
दिन में तुम आफ़ताब से
रात में चाँद आसमान का
अटारी तेरी सोने की
दहलीज़ पे चमक चाँदी की
वजूद मेरा मिट्टी सा
क्यूँ आऊँगी तुम्हारी नज़रों में
एक भी राह तो जाती नहीं मेरे घर से निकलती
तेरी गलियों की ओर
तो क्या हुआ की
आसमान बहुत दूर है मेरे सपनो का
पर हक तो है फिर भी
नाचीज़ को सपना देखने का
सुना है तकदीर से बदनसीबी का पत्ता भी हटता है कभी-कभी
तो क्यूँ नाम लूँ मैं भी रुकने का .!
देखे है हमने भी जनाब इत्तेफ़ाक़ होते हुए।
ओर एक ठोस निर्णय के साथ आलोक को फोन लगाया सामने से हैलो सुनते ही ज़ुबान ने लड़खड़ाना चाहा पर अगर आज हिम्मत नहीं कर पाई तो कभी नहीं कर पाऊँगी ये सोचकर एक श्वास में बोल गई, आलोक प्लीज़ कुछ भी करके आज शाम उसी जगह पर मिलने आ जाना जहाँ हम पहली बार मिले थे, मुझे तुमसे कुछ डिस्कस करना है मेरी ज़िंदगी का सवाल है, आलोक कोई सवाल करें उससे पहले मैंने काॅल काट दिया। धमासान मचा था मेरे भीतर बस आधे दिन की दूरी थी मेरी ज़िंदगी के अच्छे बुरे फैसले के बीच पर अब जो होगा देखा जायेगा सोचकर शाम के इंतज़ार में बोझिल लम्हें बीत रहे थे.!
6 बजते ही चाय पी कर नार्मल तैयार हुई ना कोई साज शृंगार ना मेकअप बस जिन कुर्ती पहनकर निकल गई, अब जो हूँ जैसी हूँ यही हूँ आलोक के फैसले को उपरी मोहरे से नहीं रिझाना.! रास्ते में से एक शोप से रेड़ रोज़ ले लिया पाने की तमन्ना थी देना पड़ रहा था।
समुन्दर किनारे की एक मनचाही खुशबू ओर माहौल से मन को कुछ अच्छा लगा, अभी तक आलोक दिख नहीं रहा इंतज़ार करते उसी पत्थर पर बैठ गई जहाँ पहली बार आलोक को महसूस किया था कुछ सोचने के मूड़ में कहाँ थी मैं बस चुप चाप लहरों को बिना वजह चट्टानों से टकराती देखने लगी।
कब आलोक ने पीछे से आकर मेरी आँखों पर अपनी हथेली रख दी पता ही नहीं चला मैं उठ खड़ी हुई आलोक मेरी आँखों को पढ़ने की कोशिश करने लगा पर मेरी पलकों पर ठहरी दो बूँद को देखकर बोला हहहममम तो मेटर कुछ ज़्यादा सिरीयस लग रही है?
बताईये देवी जी आपकी ज़िंदगी का कौनसा सवाल मेरी राय पर अटका है ?
मैंने हिम्मत जुटाने के लिए गहरी साँस ली ओर आलोक की प्रश्नार्थ भरी नज़रों का सामना ना करना पड़े इसलिये आँखें बंद कर ली ओर घुटनों के बल बैठकर लाल गुलाब आलोक के सामने पेश करके एक ही साँस में एक ही वाक्य बोल पाई विल यू मैरी मी ?
शायद इस हमले के लिए आलोक तैयार नहीं था या मेरी बात उसे पसंद नही आई पता नहीं क्या था पर कुछ देर की खामोशी मुझसे बर्दाश्त नहीं हुई तो आँखें खोलकर आलोक का चेहरा पढ़ने की कोशिश करने लगी जो मंद मंद मुस्कुरा रहा था, आज भी मैं उसके भाव का अनुमान नहीं लगा पाई तो दोनों हाथों से काँधे से मुझे उठाते हुए बोला पगली तुमने देर कर दी कल ही मेरी सगाई फिक्स हो गई, कुछ दिन पहले प्रपोज़ करती तो बात बन सकती थी।
मेरे ख़्वाबों के महल ढ़हते हुए नज़र आ रहे थे मैं अपने आप को संभाल नहीं पाई ओर आलोक के सीने पर मुक्के मारती चिल्ला चिल्ला कर रोने लगी, व्हाय ? क्यूँ ? मुझमें क्या कमी है, क्या मैं सुंदर नहीं हूँ? क्या पढ़ी लिखी नहीं, क्या तुम्हारे काबिल नहीं हूँ क्यूँ कभी मुझे उस नज़र से नहीं देखा तुमने या अपने लायक नहीं समझते मुझे ? मैं फूट फूटकर रोने लगी, अचानक से आलोक ने मुझे बाँहों में भर लिया ओर पीठ सहलाते चुप कराते बोला अरे अब रोना बस भी करो, मेरी पगली तनू मेरी कोई सगाई फिक्स नहीं हुई मजाक कर रहा था, तुम्हे जो पाएगा वो कोई ख़ुशनसीब ही होगा कैसे सोच लिया तुमने की तुम मेरे काबिल नहीं आई लव यू बेबी, मैं बस सही वक्त का इंतज़ार कर रहा था पर तुमने मुझे सरप्राइज़ कर दिया, ब्रावो प्राउड ऑफ यू।
अब मुझे ना कुछ कहना था ना कुछ सुनना था मैं आलोक के अस्तित्व में खुद के वजूद को ढ़ाल देना चाहती थी,
हाँ ये वही आबशार था जिसको ये नदी हर वैलेन्टाइन डे पर सालों से ढूँढ रही थी,
आज भी इत्तेफ़ाकन
"खुशी की चरम कहूँ या आश्चर्य"
मेरे फेवरिट सोंग को आलोक ने माउथ ऑर्गन पर छेड़ दिया, "आज फिर तुम पे प्यार आया है बेहद ओर बेशूमार आया है"
चार आँसू छलके चार आँखों से
गूँगे लम्हें थिरकने लगे, चार होंठ मरकने लगे, माउथ ऑर्गन से बज रही रोमांटिक लय एसा लग रहा था जैसे पीपल की पत्तियों पर गिरती बरखा की बूँदें गाती हो,
दो दिल अब महसूस कर रहे थे जैसे संसार के शिखर पर विराजमान हो, ना अल्फाज़ मायने रखते थे ना शिकवे गिले, बस एक मौन की भाषा ने जंग छेड़ रखा है प्यार की सरगम बज रही है।
अब जादुई शाम रात की मखमली चद्दर ओढ़कर बिछ रही थी कायनात पर,
ओर मैं एक पहचानी आगोश में लरज़ते पिघल रही थी,
आज मुझे ईश कहे कोई वरदान माँग,
बेजिज़क कह दूँ इस आने वाली रात की सुबह कभी न हो.!
आज मैंने चाँद को पा लिया था मैं अपने चाँद के बालों को सहलाने लगी
मेरी अठखेलियों से शर्माकर आसमान के चाँद ने चेहरा छुपा लिया बादलों के झुरमुटों में।
(इबादत में असर हो तो होते है ना इत्तेफ़ाक़ कभी-
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