इश्क के रंग

इश्क के रंग

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Bhavna Thaker
Bhavna Thaker 25 Mar, 2022 | 1 min read

'इश्क के रंग'

सौ रंग बिखर गये हवाओं में रंगी जो तेरे इश्क के जलवों में बालों से उभरा रंग श्याम घटा बन बरसे मेघ..


तनमन मेरा भीग गया अब तरसे मेरे नैंन

छू लिये तूने गाल गुलाबी कुमकुम केसर जर गया शाम हुई सिंदूरी सज गई

नैंन मिलाकर तुमसे साजन

रतजगे मेरे बन गए..

 

सुबहा गुलाबी आँखें देखे भोर नशीली सज गई चुरा ली मेरे लब की लाली 

होंठ तेरे रसीले भँवरा ठग गया आन बसा मेरे कोरे कुँवारे लब पर..

 

हरी चुड़ियाँ खनके खनखन 

झुमके नीले पीले, चुनरी गोटेदार सरक गई यूँ कुछ-कुछ उर से मेरे

होली के दिन रंग गये मुझको अपने सौ-सौ रंग में

कैसे चढ़े अब रंग कोई दूजा 

पक्के तेरे सब रंग है..


"अब यादों की गगरी छलके"


कोई ऐसी स्निग्ध शाम होती है 

जिस में आहिस्ता-आहिस्ता दुधिया आसमान केसरिया धनक में ढल जाता है वैसे भीतर के रंग भी बदलते रहते है...


एक साथ असंख्य भाव, असंख्य बातें, और प्रियजन की यादें उमड़ कर मन की धरा पर छाते समग्र अस्तित्व को रंग जाती है... 


कुछ-कुछ साफ़, सुथरे, सुंदर एहसास आँखों की रंगत बन जाते है, कुछ हल्के होते सरक जाते है दूर सुदूर...


थोड़ा एकांत, थोड़ी उदासी और थोड़ा अंतर्मन का द्वंद साथ में एक याद 

हाँ तुम्हारी याद इन सारे एहसासों में कोकटेल बनकर घुल जाती है, 

तब हल्की सी इमानदार मुस्कान होंठों को छेड़ जाती है..


डूबते सूरज की तरह भीतर भी कुछ डूब रहा होता है 

स्मरणीय लाल, गुलाबी, हरा, जामुनी किसी फ़ड़फ़ड़ाती लहराती ओढ़नी की भाँति लहराते..

और तमस की परत छा जाती है कायनात के साथ भीतर भी...


ये इश्क के सतरंगी रंग है

भावना ठाकर 'भावु' बेंगलोर

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Bhavna Thaker

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