(उलझे हुए रिश्तों को संभालो)
मौन रिश्ते मुरझाया करते है संवाद का खाद और अपनेपन की नमी से सिंचा कीजिए
तू तू मैं मैं की तान में उलझो मत जो उलझे रिश्ते की डोर तो सुलझाया करो।
अच्छे समय पर इतराओ नहीं बूढ़े रिश्तों से हाथ छुड़ाओ नहीं, अपनों से उम्मीद नहीं यकीन रखो मुनाफ़े की आस नहीं ताउम्र का साथ रखो.!
सबके दिल में दर्द रहता है कोई मुझे समझ नहीं पाया, खुद से कोई सवाल क्यूँ नहीं करता कि तू कितनों को समझ पाया.!
मुश्किल की घड़ी में अपनों का हमारा हाथ थामना ब्याज है बोई हुई फ़सल का,
देखभाल और सौहार्द भाव से अपनों की परवाह किया करो।
मिलावटी रिश्तों का दौर है मुखौटे से सजे चेहरे से असलियत उधड़ भी जाए तो क्या हुआ, प्रेम के धागे से रफू लगाकर रिश्तों का पहरन पहन लिया करो.!
खुद को खास दूसरों को आम ना समझो,
अहं के धुँए में बिखरे रिश्ते फिर हर कोई तलाश करता है सबकुछ लूट जाने के बाद ही जो है जैसा है अपनों को अपना लिया करो।।
(भावना ठाकर, बेंगुलूरु)#भावु
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