'खुद को मेरे नाम कर गई'
तितलियों के शहर से छलके हो सुनहरी सारे रंग जैसे दुनिया ही मेरी रंगीन हो गई, मिली नज़र महबूब से ऐसे घायल दिल के तार कर गई।
उफ्फ़ ये आलम मदहोशी का बयाँ क्या करूँ लफ़्ज़ों में इसे, ज़ुबाँ सिल गई पैर थम गए देखा उसने कुछ ऐसी चाहत से तीर आर-पार कर गई।
धड़कन भागी नैंन हंस दिए अदा ही उसकी जादूगरी थी, इश्क दे जाए दावत जिसको दिल वो काबू में कैसे रहे मन को बाग-बाग कर गई।
संदली उसकी जिस्म की खुशबू रोम-रोम बगियन सी कर गई, जानलेवा थी साहब की शौख़ी हम हंसते हंसते दिल हार दिए वो कुछ ऐसे हलाल कर गई।
करार दिल का लूट ले गई रातों में यादों की कसक भर गई, साँवली सी एक शौक़ हसीना पहली प्रीत का जाम पिलाकर खुद को मेरे नाम कर गई।
फ़किर था दिल कोरा सूखा बिन सूरज के आसमान सा, अपने उर के प्रेम घट से चार बूँद चाहत की चुराकर प्रेम सुधा मुझ पर बरसाकर जीने की सौगात दे गई।
भावना ठाकर 'भावु' (बेंगलोर, कर्नाटक)
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