"हर चेहरे पर लगे मोहरे का मतलब समझाती है, चुनौतियों से भरी ज़िंदगी हर रंग से रुबरु करवाती है"
हमारा देश अनेकता में एकता का मतलब समझाता है। हर त्यौहार का एक मकसद होता है, हर त्यौहार एक सीख देता है। होली रंगों का त्यौहार है जो कहता है ज़िंदगी के रंग कई रे। होली के दिन गीले शिकवे भूलकर अपने वजूद के हर मोहरे उतारकर एक दूसरे पर अपनेपन का रंग उड़ेलकर दुश्मन भी गले मिल जाते है।
गौर से देखें तो महज़ इन्द्रधनुष में ही हर रंगों का संयोजन नज़र नहीं आता, ज़िंदगी भी पग-पग हमें एक नये रंग से मुलाकात करवाती है। धवल से लेकर स्याही के बीच छुपे हर रंगों की पहचान करवाती है। दुन्यवी हर शैय के रंग अलग-अलग अर्थ समझाते है। खुशियों के सब रंग निराले होते है, जब कोई खुशी हमारी दहलीज़ पर दस्तक देती है तब हरसू हर नज़ारा रंगीन महसूस होता है। मन गाता है, नाचता है, झूमता है और धरती स्वर्ग सी सुंदर लगती है तो आसमान इन्द्रधनुषी वितान नज़र आता है। इससे विपरित उदासीयों का रंग नीला, काला, स्याही, मटमैला दिखता है। जब मन उदास होता है, मन को दु:ख की परछाई छूती है तब केसरिया रंगों से गहराई खूबसूरत शाम भी सुकून नहीं देती, हर तरफ़ काले साये और सन्नाटों की सरगम सुनाई देती है। पूजा का रंग गुलाल, अबीर से सजा धूप-दीप की खुशबू से सराबोर सात्विक भाव जगाता शांतिप्रिय होता है।
प्यार, इश्क, मोहब्बत का लाल चटक, रक्त वर्णित रंग दो दिलों के मिलन का सफ़र समझाता है, कहता है दिल्लगी न करो किसीसे दिल की लगी को मायने देकर प्रियतमा की मांग में कुमकुम भरकर इश्क को मुकम्मल मंज़िल दे दो।
मानवता का रंग धवल है मन में किसीके प्रति उठता सौहार्द भाव प्रार्थना से कम नहीं। प्रार्थना सुकून देती है तब मन धवल रुई के फाहों सा हल्का और प्रसन्न दिखता है। दोस्ती का ना कोई रंग है, दो यारों के स्पंदनों से बंधी दोस्ती हर रंगों में ढ़ल जाती है। दोस्ती न हरा देखती है न केसरिया, एक दूसरे के सुख दु:ख के साथी मस्त फ़किरे यारों की यारी पर कुर्बान हो जाते है।
आशा उम्मीद और तमन्नाओं का नारंगी रंग कहता है, उम्मीद पर ही तो दुनिया कायम है। सूरज रोशनी का स्त्रोत है, सूरज को देखकर आँखें मूँद लेने पर आँखों के पटल पर नारंगी रंग उभरता है, जो यही समझाता है कि आशा हमें एक दिन आफ़ताब सी चमकाएगी आशा का दामन कभी न छोड़ना।
मन को कचोटते वैधव्य के हर रंग फ़िके होते है। हर रंग शर्मा जाते है विधवा के तन पर लिपटे सफ़ेद पहरन को देख। दुनिया राचे हर रंग में विधवा का हर रंग है फ़िका, लकीरें उसकी बेरंग सी सुख संपन्न न लिखा। घिर जाती है विधवा तम की गर्ता में, गम के अँधियारों में, क्या उसको कोई दे सकता है धूप का एक टुकड़ा?
सियासती साज़िश के मारे दो रंग हरा और केसरिया ज़ाहिर सी बात है जात-पात के नाम पर बदनाम है बेचारे। बेदाग धवल तिरंगे को यही दो रंग शान से सजाते भाईचारे का अर्थ समझाते है। पर नफ़रत, धर्मांधता और कट्टरवाद के रंगों में रंगे इंसान के दिमाग को नहीं समझा पाता।
रात भले स्याही सी काली हो उज्जवल चाँद की रोशनी में सज सँवरकर मद्धम बहती गुलाबी भोर से जा मिलती है सुबह होते ही तब रात भोर के मिलन पर आदित की कोख से उभरती सुनहरी खिलती किरणें हर दिल को लुभाती आह्लादित करती है।
प्रकृति हरियाली ठहरी, आँखों में उजियारे भरती धान पाक से सजी सजीली कितनी सुहावनी लगती है। नभ कभी दुधिया तो कभी नीला तो कभी घटाटोप मेघसभर श्यामरंगी दिखता है कायनात के हर ज़र्रे में रंग भरकर कुदरत ने करिश्मा किया है। पर यारों एक मानव को दी ये नेमत उपरवाले ने, मतलबपरस्त मानव बिन होली के भी कितने रंग बदलता है। इंसान माहिर है भावों के पीछे अपने चेहरे का असली रंग छुपाने में। कभी-कभी मेरे दिल में ख़याल आता है कि जरूरत के हिसाब से मोहरा बदलते इंसानों को देख हंसता होगा गिरगिट भी, इंसान के आगे नतमस्तक होते खुद को बौना समझते।
भावना ठाकर 'भावु' (बेंगलोर, कर्नाटक)
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
No comments yet.
Be the first to express what you feel 🥰.
Please Login or Create a free account to comment.